आकाशवाणी इलाहाबाद की अपनी पहचान रही है और शोहरत भी रही है। यहां साहित्यकारों की बात की जाये तो - डॉ. सुमित्रा नन्दन पन्त, इलाचन्द जोशी, जनाब रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी, डॉ. महादेवी वर्मा, डॉ. राम कुमार वर्मा, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, रमा शंकर शुक्ल रसाल, डॉ. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, डॉ. धर्मवीर भारती, ओंकार शरद, डॉ. जगदीश गुप्त, नरेश मेहता, कमलेश्वर, उपेन्द्रनाथ अश्क जैसी महान साहित्य सेवियों की फेहरिस्त रही है। जिनकी कविता कहानी रिपोर्ताज, शायरी हर दिन पूरे वातावरण को सृजनशीलता के भाव में तिरोहित रखती रही हैं।
यही नहीं, यहां की पहचान को आगे बढ़ाने वालों में बी.एस. बहल (निदेशक), डॉ. खेड़ा (निदेशक), सतीश चन्द श्रीवास्तवा (निदेशक), डॉ. सत्यदेव राजहंस, नर्मदेश्वर उपाध्याय, केशव चन्द वर्मा (प्रोड्यूसर) हीरा चड्ढा, कन्हैया लाल नन्दन (कवि, पत्रकार), कमलेश्वर (कथाकार), नरेश महत्ता (कहानीकार-पत्रकार), राम प्रकाश, डॉ. मधुकर (गंगाधर), डॉ. प्रमोद सिन्हा (लेखक-कहानीकार), कैलाश गौतम (व्यंग्यकार कवि लेखक) गांव-गांव के चितेरे, डॉ. जीवन लाल गुप्ता, एल.के. जोशी, शुभा मुद्गल जैसी न जाने कितनी विभूतियां जुड़ी रहीं, जिनकी सृजनशीलता ने बीबीसी लंदन तक अपनी पहुंच संजोई थी। आकाशवाणी इलाहाबाद केन्द्र को कई मानदण्डों पर सहेजने वालों में जहां कहानीकार डॉ. शान्ति मेहरोत्रा, विजय बोस, डॉ. विनोद रस्तोगी, विपिन शर्मा, राजा जुत्शी और श्रीमती कुसुम जुत्शी के योगदान को कभी भी कमतर नहीं आंकना चाहिए, क्योंकि जहां व्यवस्थाओं को अंजाम दिया जाता था। वहीं कलात्मक वैभव में कोई किसी का सानी नहीं था। कोई किसी से कम नहीं थे, सभी एक से बढक़र एक थे।
नरेश मिश्र जैसे लेखक ने तो गांव की धरती को लोकप्रिय बनाने में जो योगदान दिया, उसे स्वर्णिम पन्नों में लिखा जाना चाहिए। जग बौराना हो अथवा मतई भाई का चरित्र निभाना हो सभी जगह आगे रहे है। लोक संस्कृति प्रमुख युक्ति भद्र दीक्षिति (कजरी प्रसिद्ध) को आगे बढ़ाने वालों में रहे, तो डॉ. टी.एन. शर्मा (तबला वादक) विश्व प्रसिद्ध कलाकार यहीं रहे, जो गुदई महाराज जैसे तबला वादक के गुरु थे।
शुभा मुद्गल |
बसन्त लाल का सितार वादन हो अथवा डॉ. रामाश्रय झा जी जैसे ध्रुपद संगीत की दुनिया के बेताज ज्ञानी-विज्ञानी महान कलाकार, जिनकी गुणी शिष्या शुभा मुद्गल ने पूरे देश में लोक गायन परम्परा को अथवा आधुनिकतम गायकी में ठुमरी, दादरा के साथ नये प्रयोग की धर्मिता को शुभा मुद्गल की गायकी पर आज नई पीढ़ी गर्व करती है। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि शुभा मुद्गल मशहूर क्रिकेट कमेण्टेटर स्कन्द गुप्त जैसे ज्ञानी शिक्षाविद् की बेटी है। और वह आकाशवाणी इलाहाबाद में एनाउन्सर भी रही है। विविध भारती का प्रसारण हो अथवा अन्य कार्यक्रमों का प्रसारण वह श्रेष्ठ उदघोषिका की पहचान से भी तब जुड़ी रही है। आज उनको कौन नहीं जानता, नई पीढ़ी की वह चितेरी हैं।
पं. जसराज जी हो अथवा गिरिजा देवी जी यहीं कुमार गन्दर्भ जैसी विभूतियों के साथ इलाहाबाद की पहचान में कई आयाम जुड़ते रहे हैं। पं. हरि प्रसाद चौरसिया का बांसुरी वादन वह तो यहां प्राय: बांसुरी बजाते ही थे। एस.एल. कण्डारा जैसे ख्याति प्राप्त वायलिन वादक या बनारस की एम. राजम की वायलिन भी यहां गूंजती रही है। आजादी के दीवानों में भी महापुरुषों के नाम यहां से जुड़े रहे हैं। इस केन्द्र से जुड़ने वाले सभी गर्व करते रहे हैं। सरसंघ प्रमुख रहे रज्जू भैया के भावनात्मक जुड़ाव से भी लोग यहां जुड़े रहे हैं। मरवाहा जी और हरि मालवीय की उद्घोषणा के सभी श्रोता कायल रहते रहे है।
कैफी आज़मी |
साहित्य जगत की विराट विभूतियों में जनाब रघुपति सहाय फिराक गोरखपुर, जनाब फैज़ अहमद फेज, डॉ. महादेवी वर्मा, रमा शंकर शुक्ल रसाल, डॉ. राम कुमार वर्मा, डॉ. बी.डी. साही, डॉ. जगदीश गुप्त, डॉ. हरिवंश राय बच्चन, पं. इलाचन्द जोशी, पं. सुमित्रा नन्दन पन्त, सूर्यकान्त त्रिपाठी निरला, डॉ. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, डॉ. धर्मवीर भारती किन-किन का नाम लिया जाये, सभी यहां के आकाशवाणी से जुड़ी मोतियों की मणिमाला में पिरोई विभूतियां रहीं हैं। इनकी ऐतिहासिक रिकॉर्डिंगस यहीं संजोई रही है। इस केन्द्र की गरिमा राष्ट्रीय स्तर पर रही है - स्वयं फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार अथवा साहिर लुधियानवी कैफी आज़मी भी यहां से जुड़े थे।
कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द के पुत्र अमृत राय भले ही बहुत कम बोलते थे, किन्तु उनकी मधुर वाणी के सभी कायल रहे। महादेवी जी के घर पहुंचने वालों को मजाल है, उनकी बिल्लियों द्वारा आपका स्वागत न हो और उनके हाथों से बनाई चाय पीने को न मिले। वहां तो हर अतिथि पर अपना वात्सल्य भाव लुटा देती थीं। इलाचन्द जोशी जी ‘जहाज का पंछी’ जैसी कृति के रचयिता भले ही रहे हो, किन्तु अपने प्यार-स्नेह-दुलार करने वालों में शुमार करते थे। कामिल बुल्के जैसी महान हस्ती हो अथवा डिक्सनरी लिखने वाले बाहरी जी यहां से जुड़े रहे है। इलाहाबाद का अपना गौरव था, तो हर कुम्भ मेले का सीधा प्रसारण करने का गर्व यहां के कार्यक्रम निष्पादकों को रहा है।
अतीत में झांकिये तो यहां मैं चर्चा करना चाहूंगा, कुसुम जुत्शी की, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के बीच उनका सर्वाधिक लोकप्रिय कार्यक्रम तब चलता था, जिसमें लुक-छिप कर विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाली प्राध्यापिका डॉॅ. राज लक्ष्मी वर्मा की कक्षायें हो अथवा प. रामाश्रय झा की कक्षा या फिर अन्य कोई कक्षा उनके पढ़ाने के तरीके विद्यार्थियों के बीच संवाद गुप्त रुप में रिकॉर्ड कर रेडियो से जब प्रसारित किये जाते थे, तो धूम मच जाती थी। विश्वविद्यालय के सर सुन्दर लाल छात्रावास के भीतर विद्यार्थियों के क्रिया-कलापों, पढ़ाई-लिखाई, रगड़ाई, रैगिंग, सब कुछ रिकॉर्ड कर जब रेडियो पर आता था, तो चर्चा का आलम ही कुछ और होता और कार्यक्रम की सफलता कुसुम जुत्शी के झोले में जाती। टेलीविज़न नहीं था, किन्तु रेडियो की दुनिया घर-घर लोकप्रियता के शिखर पर रहती थी। आज क्या है, एफ.एम. न हो तो सब घिसे-पिटे अन्दाज में रहता है, जिसे सुधारना होगा।
ऐसे ही कमलेश्वर का आरम्भ करवाया कार्यक्रम परिक्रमा था, जो पूरे शहर की रिकॉर्डिंग कर पूरे शहर की सरगर्मी से अपने श्रोताओं को बांध कर रखता। सीधा कमेण्टरी करने वाले विपिन शर्मा की यादें ताजा बनी रहती थी। कैलाश गौतम का गांव समाज का विशेष फीचर पूरे कथानक को जन्म देता था। आस-पास के क्षेत्र में कहीं कोई भी तब अछूता नहीं था। रेडियो से यह इस केन्द्र की बहुत बड़ी उपलब्धि रहीं। भइया विजय बोस और दीदी निर्मला तो बच्चों की चहेती ही थी। किन्तु स्थितियां आज भिन्न है। अब एक तो दूरदर्शन और तमाम चैनलों का संजाल है, ऐसे में रेडियों कोैन सुनता है। पर मैं तो कहूंगा - ‘लौटा जमाना रेडियो का’ आज एफ.एम. रेडियो ने कहानी बदल दी है, जिसकी आधार शिला वर्षां पहले रखी गई थी। शेष फिर...
द्वारा अग्रेषित :- श्री. जावेंद्र कुमार ध्रुव