पश्चिमी राजस्थान के सभी जि़ले जैसलमेर, बाड़मेर, पाली, जालोर, सिरोही, नागौर, बीकानेर और जोधपुर में अगर किसी भी रेडियो रसिक से पूछ लिया जाए कि आकाशवाणी जोधपुर के किस किरदार की प्रस्तुति उसे पसंद है ? तो दस में से नौ लोग यही कहेंगे - भौल जी । भौल जी बिल्कूल देसी, भोले, ग्रामीण व्यक्ति का किरदार है, जिसकी मासूम जिज्ञासाएँ हर श्रोता को उसको अपने पास पडौ़स का मानता है, और जब भौल जी रेडियो पर इन्टर्व्यू के दौरान किसी कृषि विषेशज्ञ से बात करते थे, और वो विषेशज्ञ अपनी बात भौल जी को समझाने में कामयाब हो जाता था तो भौल जी की बात को अंतिम सत्य मानते हूए सुनने वाले भी उसको मानते थे और रेडियो अपने प्रसारण का मकसद हासिल कर चुका होता था । ये भौल जी और कोई नहीं बल्कि श्री गोविंद नारायण त्रिवेदी हैं, जो भौल जी का स्टॉक कैरैक्टर निभाते थे । जोधपुर के चाँद पोल इलाके में पैदा हूए गोविंद त्रिवेदी को पिता माता से ज्या़दा सान्निध्य दादा दादी का मिला । माता पिता व्यवसाय के सिलसिले में चैन्नई चले गये थे और पढा़ई के सिलसिले में ये दादा दादी के पास जोधपुर ही रहे । कभी कभी दादा दादी अपने बेटे के पास चैन्नई जाते तो गोविंद अपनी अलग अलग बुआओं के यहाँ रह कर पढ़ते । दादा के रेडियो के शौक ने गोविंद को अपनी ओर खींचा । उनके दादा जी अपने वॉल्व वाले रेडियो पर बीबीसी, और आकाशवाणी से प्रसारित होने वाले समाचार, और हवामहल कार्यक्रम नियमित सुनते थे । दादा के साथ रहते हूए ही बाल गोविंद के कानों में देवकीनंदन पांडे की आवाज़ ने घर बना लिया, और साथ ही मन में एक विचार पैदा किया कि नौकरी करनी है तो अनाऊन्सर की ही करनी है । जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर से स्नात्कोत्तर करने के बाद इन्होंने 1984 से 1993 तक बतौर आक्समिक उद्घघोषक अपनी सेवाएं दी । इन्ही वर्षों में पश्चिमी राजस्थान में खुलने वाले नये आकाशवाणी केन्द्रों पर भी गोविंद त्रिवेदी ने अपनी सेवाएं दी । सितंबर 1993 में ये नियमित उद्घघोषक के लिए चयनित किये गये । एक कहावत है, "होनहार बिरवान के होत चीकने पात"। लगभग तीन दशक तक गोविंद त्रिवेदी ने इसी कर्त्व्यनिष्ठा का परिचय दिया । एक सफल हिन्दी उद्घोषक के रूप में इन्होंने श्रोताओं के दिलों पर राज किया । वर्ष 1995 में आकाशवाणी जोधपुर पर केन्द्र निदेशक के तौर पर श्री अनिल कुमार राम ने कार्यभार ग्रहण किया । अपने अनुभव के कारण उन्होंने अपना ध्यान ग्रामीण श्रोताओं पर केन्द्रित किया, और गोविंद त्रिवेदी को भौल जी का किरदार समझाया । शुरु में तो गोविंद त्रिवेदी थोडे़ आशंकित थे क्योंकि हर कोई शहरी श्रोताओं से रूबरू होना चाहता है, लेकिन दो महीने के प्रयोग के बाद जब राम साहब ने गोविंद को पूछा कि ग्रामीण कार्यक्रम ही करना है या हिन्दी उद्घघोषक की ड्यूटी ? तो गोविंद ने कहा, "भौल जी ही रहना चाहता हुँ । इयना प्यार मिला श्रोताओं का"। गोविंद सिर्फ आवाज़ के ही धनी नहीं थे । मैल्ट्ररॉन के ज़माने की डबिंड एडिट़िग हो या कूल एडिट पर प्रोडक्शन और डबिंग एडिट़िग, गोविंद की ऊँगलीयों में जादू है । बहुत उच्च कोटि के नाटक और रूपक आज भी आकाशवाणी जोधपुर और महानिदेशालय के संग्रहालय में डिजिटाईज़ रुप में पडे़ हैं । वो एक उच्च क्वालिटी के रेडियो ड्रामा कलाकार के साथ साथ थीयेटर भी करते थे । उनके द्वारा प्रस्तुत तेरह कडी़यों का धारावाहिक "आस्था के स्थान"श्रोताओं की माँग पर कई बार पुनः प्रसारित हो चुका है । खाली समय में गोविंद त्रिवेदी माऊथ आर्गैंन, हारमोनियम और कीबोर्ड भी बखुबी बजा लेते हैं और खाना खाने और बनाने का भी शौक रखते हैं । एक पुत्र और एक पुत्री के साथ इनका छोटा सा खुशहाल परिवार है ।
आकाशवाणी जोधपुर आज इनकी सेवानिवृत्ति पर इनके अच्छे स्वास्थय और खुशहाल जीवन की कामना करता है ।
Prasar Bharati Parivar wishes him a very happy, healthy, peaceful and contended retired life.
प्रेषक :- श्री. अनिल कुमार गुप्ता
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