अपनों से अपनी ही बात
सन 1978 से लेकर 2016 के आज के दिन जब सरकारी नौकरी की पूर्णता पर सेवानिवृत्ति के द्वार पर हूँ, तब इस प्रदीर्घ यात्रा के कई दृश्य और स्मृतिचित्र मानस पटल पर उभर रहें है । वैसे भी रेडियो माध्यम मन के कैनवास पर कल्पना की तुलिका से चित्र और दृश्य की निर्मिती का माध्यम है और इसीलिए उभर रहा है वह वाक्य, जब पहली नियुक्ति के समय तत्कालीन केन्द्र निदेशक श्री. राजेन्द्र प्रसाद ने कहा था कि आकाशवाणी में कार्य का मतलब है, ‘स्वान्त सुखाय श्रोता हिताय’ अर्थात् अपने समाधान और श्रोता के हित में कार्य का सम्पादन । और मुझे यह परितोष है कि उनके इस वाक्य के अनुपालन में हमने अपने सर्वोच्च को भले ही न छूआ हो पर श्रेष्ठ के देने का प्रयास जरूर किया । उन्होंने यह भी कहा था कि] ‘शायद विभाग आपको कुछ न दे सकें, मैं तो आपको कुछ दे ही नही सकता,’ और उनकी यह बात आज का वर्तमान है । इस कटू सत्य को स्वीकारना ही पडेगा । लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि आकाशवाणी एक कलाकार को, प्रोडयूसर को, या कहें की प्रोग्रामर को बहोत कुछ देती है, जिसे मैने अनुभव किया है ।
प्रतिस्पर्धा के इस यु्ग में प्रतिबध्दता भी एक अहम पहलू है । आकाशवाणी को तय करना होगा की उसकी जमीन प्रतिबध्दता के लिए है या प्रतिस्पर्धा के लिए ।
जब भी साहित्य-संस्कृति और लोकजीवन में भूमिका की बात आएगी, आकाशवाणी के बिना बात पूरी न हो सकेगी । ऐसे समय में, जब Meaningless pleasure अर्थात् अर्थहीन प्रसन्नता बढती जा रही हो, उसे अर्थपूर्ण प्रसारण बनाने में आकाशवाणी की भूमिका आज भी महत्वपूर्ण है । हम सभी आकाशवाणी के सहयोगी मित्र जानते है, कि वर्तमान अंदर और बाहर भी अत्यंत संघर्षपूर्ण है । और ऐसे समय में अपना संकल्प और क्षमता ही आधार है । कहना होगा, दुहराना होगा :
लाख पतझड के बावजूद /
मै अब भी वहीं खडा हॅूं /
मेरी ऑंखों में वसंत है /
सूखी बाहों में बल अनंत है ।
अपने अधिकारियों सहयोगियों, सहकर्मियों के प्रति आदर और आभार व्यक्त करते हुए सबके प्रति शुभकामना
विनम्र,
डॉ. सुनील केशव देवधर
09823546592
sunilkdeodhar@gmail.com
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