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आकाशवाणी गोरखपुर के से.नि.कार्यक्रम अधिकारी डा.रवीन्द्र नाथ श्रीवास्तव उर्फ़ जुगानी भाई पर शोध प्रबंध । Inbox x

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आकाशवाणी गोरखपुर के से.नि.कार्यक्रम अधिकारी और जुगानी भाई नाम से विख्यात स्टाक कैरेक्टर डा.रवीन्द्र नाथ श्रीवास्तव पर दी.द.उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी एवं आधुनिक भारतीय भाषा तथा पत्रकारिता विभाग में शोध प्रबंध प्रस्तुत किया गया है। भोजपुरी की समकालीन काव्य चेतना और रवीन्द्र श्रीवास्तव जुगानी विषय पर प्रोफेसर रामदरस राय के निर्देशन में इसे पवन कुमार राय ने तैयार किया है।जुगानी भाई ने वर्ष 1978 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी में एम. ए .तथा उसके पहले बी.ए.एम.एस. करके फिजियोलॉजी की पढ़ाई की थी।उन्होंने गोरखपुर के आकाशवाणी केंद्र के ग्रामीण प्रसारणों की शुरुआत की थी । ग्राम जगत के कार्यक्रमों में उनके एक वरिष्ठ प्रसारक साथी (श्री हरिराम द्विवेदी उर्फ हरी भैय्या) द्वारा दिया गया नाम ‘जुगानी भाई’ पूर्वी उ.प्र.के खेत खलिहानों तक लगभग तीन दशक तक गूंजता रहा । इस लोकप्रिय उप नाम के आगे उनका अपना नाम रवीन्द्र श्रीवास्तव लगभग गुम ही हो गया।कम्पियरिंग के अलावा इन्होंने आकाशवाणी गोरखपुर के लिए 500 से अधिक लघु नाटिकाओं का लेखन निर्देशन भी किया ।आज भी भोजपुरी के इतिहास में अत्यंत लोकप्रिय ‘स्टॉक कैरेक्टर’ के रुप में ‘जुगानी भाई’ और खड़ी बोली में ‘लपटन साहेब’ का नाम लोगों की जुबान पर है। "राष्ट्रीय सहारा"दैनिक गोरखपुर में साप्ताहिक रुप से "बेंगुची चलल ठोंकावे नाल "नाम से जुगानी भाई स्तंभ भी लिख रहे हैं।रिटायरमेंट के बाद वे साहित्यिक गतिविधियों में संलग्न हैं ही , उनका कविकर्म शीर्ष पर है। जुगानी भाई को अभी पिछले वर्ष उ.प्र.हिन्दी संस्थान से लोकभूषण सम्मान, वर्ष 2013 में विद्याश्री न्यास का आचार्य विद्यानिवास मिश्र स्मृति सम्मान एवं विद्यानिवास मिश्र लोककला सम्मान मिल चुका है। न्यास के सचिव दयानिधि मिश्र के अनुसार लोक कवि सम्मान के लिए चयनित जुगानी भाई ने आकाशवाणी गोरखपुर को अपनी प्रतिभा से समृद्ध किया है। उनकी रचनाएं ‘मोथा अउर माटी’, ‘गीत गांव-गांव के’, ‘नोकियात दूब’ और ‘अखबारी कविता’ जैसी कृतियों की रचनाकर उन्होंने भोजपुरी की थाती बढ़ाई है।

श्री रवीन्द्र श्रीवास्तव को उ.प्र.हिन्दी संस्थान ने वर्ष 2015 के लिए भिखारी ठाकुर सम्मान भी दिया था।भोजपुरी भाषा के साहित्य को उच्चतम स्तर पर ले जाने में इनके योगदान को देखते हुए इन्हें यह पुरस्कार दिया गया था ।उनकी लिखी पुस्तकें "ई कइसन घवहा सन्नाटा","मोथा अउर माटी,""गीत गांव गांव,""नोकियात दूब,""अबहिन कुछ बाकी बा,""अख़बारी कविता,""खिड़की के खोली"आदि साहित्य जगत में सराही गई हैं ।उन्हें वर्ष 2001में संस्कार भारती,2002 में लोकभूषण,2004मेंभोजपुरी रत्न,2009में सरयू रत्न,2011में पं.श्याम नारायण पांडेय सम्मान तथा 2012में राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार मिल चुके हैं ।गोरखपुर विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. हरिशंकर श्रीवास्तव ने ठीक ही कहा था कि "धारा के उलट चलकर नई राह बनाना कठिन होता है। सुविधा संपन्न सरकारी पोषण से पली भाषाओं पर टूटने वालों की भीड़ लगी हुई है। परंतु लोक साहित्य का कोई पालनहार नहीं है। ऐसे में जिन गिने चुने लोगों ने आजीवन लोक भाषा के लिए संघर्ष किया उनमें एक जुगानी भाई भी हैं ।"गर्व है कि ब्लॉग लेखक को भी आकाशवाणी गोरखपुर में अपनी पोस्टिंग के दौरान "जुगानी भाई "का सुखद साहचर्य मिल चुका है । 

प्रसार भारती परिवार को अपने इस सदस्य पर गर्व और गौरव है। 

द्वारा योगदान :-श्री. प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी,कार्यक्रम अधिकारी, आकाशवाणी,(से.नि.),लखनऊ 
;darshgrandpa@gmail.com


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