किसी भी देश के सामाजिक और बौद्धिक विकास का ग्राफ वहां के लोगों की सोच, विचार और कम्युनिकेशन में निहित होता है. संभवतया इसी सोच ने संचार के भिन्न-भिन्न माध्यमों को जन्म दिया होगा. ताकि संवादों के जरिये विचारों और अभिव्यक्तियों का आदान-प्रदान हो सके. इसमें सबसे सस्ता मगर शक्तिशाली माध्यम है रेडियो. यूं तो रेडियो की खोज सन 1900 में एक इटालियन वैज्ञानिक गुल्येल्मो मार्कोनी ने किया था, लेकिन इसका सही मुल्यांकन 12 फरवरी 2012 को किया गया, जब दुनिया के विरान से विरान क्षेत्रों में इसकी पहुंच को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (United Nations Educational Scientific and Cultural Organization) (युनेस्को) ने इस दिन को ‘विश्व रेडियो दिवस’ के रूप में शुरु करने का फैसला किया. मकसद था दुनिया के प्रमुख रेडियो प्रसारकों, स्थानीय रेडियो स्टेशनों और विश्व के सभी रेडियो श्रोताओं को एक मंच पर लाना. इसके बाद से प्रत्येक 13 फरवरी के दिन हम अंतर्राष्ट्रीय ‘रेडियो दिवस’ मना रहे हैं.
आज सूचना और प्रसारण के क्षेत्र में आये दिन नये-नये आविष्कार हो रहे हैं. कुछ खोजें तो चौंकाने वाली हैं. कम्प्यूटर, मोबाइल, लैपटॉप में भी आये दिन कुछ न कुछ नये फीचर्स विकसित हो रहे हैं. ‘डिजिटल इंडिया’ के आइने से हम अपने देश की संपूर्ण व्यवस्था का अवलोकन कर सकते हैं. हजारों किमी की दूरियां चुटकियों में सिमट गयी हैं, लेकिन इसके बावजूद रेडियो की लोकप्रियता का ग्राफ कम नहीं हुआ है. प्राप्त आंकड़ों के अनुसार आज विश्व की 95 प्रतिशत जनसंख्या तक रेडियो की पहुंच बन चुकी है, दूरदराज के ग्रामीण और अत्यंत पिछड़े इलाकों तक कम लागत में पहुंचने वाला संचार का सबसे सस्ता और सुगम साधन बना हुआ है. यही वजह है कि आज भी हमारे देश के गांव-खेड़ों के लोग रेडियो से ही अपना मनोरंजन हासिल करते हैं. देश दुनिया की खबरों से वाकिफ होते हैं. संभवतया संचार के इस सबसे सस्ते और सशक्त माध्यम का मूल्यांकन करने के बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ‘मन की बात’ संपूर्ण देशवासियों से शेयर करने के लिए रेडियो को चुना होगा. लगभग 50 बार आम जनता से ‘मन की बात’ कर चुके प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों रेडियो की अहमियत पर एक सच्ची घटना शेयर करते हुए बताया, -‘यह सन 1998 की बात है. मैं बीजेपी कार्यकर्ता की हैसियत से हिमाचल प्रदेश में कार्य कर रहा था. एक शाम मैं हिमाचल की पहाड़ियों के बीच टहलते हुए जा रहा था. ठंड दूर करने के इरादे से मैंने चाय की एक छोटी-सी दुकान के पास रुककर चाय पिलाने के लिए कहा. चाय वाले की यह दुकान एक ठेले पर थी. अकेला होने के कारण वह स्वयं बर्तन धोकर ग्राहक को चाय पिलाता था. उसने मर्तबान से एक लड्डू निकाल कर मुझे देते हुए कहा, साहब पहले लड्डू खाकर मुंह मीठा कीजिये, फिर चाय भी पिलाता हूं. मैंने हैरान होकर पूछा भई बात क्या है! कौन सी खुशी है हमें भी बताओ. उसने कहा, अभी आप जब यहां आये तो रेडियो पर खबर आ रही थी कि हिंदुस्तान ने पड़ोसी देश पर बम फोड़ा, यह कहते हुए उसने रेडियो का वॉल्युम बढा दिया. खबर जारी थी. मैं सोच रहा था, एक सामान्य इंसान इस बर्फीली पहाड़ियों के बीच चाय बेचते हुए पूरे दिन रेडियो सुनता होगा. उसके लिए यही उसका असली जीवन साथी था.
भारत संपूर्ण विश्व में अपनी अनेकता में एकता के लिए विख्यात है. यहां हर दो-तीन किमी की दूरियों पर बोलियां बदल जाती हैं. इसे एक सूत्र में पिरोने के लिए जहां हिंदी सबसे बेहतर माध्यम बनी, वहीं संचार तंत्र के माध्यम से रेडियो ने घर-घर घुसपैठ बनाई. भारत में सन 1927 में दो प्राइवेट ट्रांसमीटरों द्वारा मुंबई और कोलकाता (कलकत्ता) रेडियो का प्रसारण शुरु हुआ. इसके बाद 1936 में ऑल इंडिया रेडियो की शुरुआत हुई. धीरे-धीरे इसकी प्रगति हुई. समाचार, मनोरंजक प्रोग्राम, शैक्षणिक प्रोग्राम, कृषि जगत हर क्षेत्र में रेडियो की घुसपैठ बनती गयी. समय के साथ संचार और उसके माध्यमों में पारदर्शिता लाने के लिए सरकारी संस्था प्रसार भारती का गठन हुआ. इसके पश्चात आकाशवाणी और दूरदर्शन अस्तित्व में आये. सन 1991 में रेडियो के एक और विकसित रूप एफ एम की शुरुआत हुई. आज प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ से रेडियो को एक नया आयाम मिला है. जिससे भी
इसकी लोकप्रियता में वृद्धि हुई है.
स्रोत और श्रेय :- https://hindi.latestly.com/india/world-radio-day-2019-138647.html/amp
द्वारा योगदान :- झावेन्द्र कुमार ध्रुव, रायपुर