-- यूनुस ख़ान
विविध भारती के साठ बरस पूरे होने पर साठ अंकों की अनियमित श्रृंखला।
पिछली कड़ी में मैंने बताया था कि क्यों हुई थी विविध भारती की स्थापना। मैंने बताया था कि असल में रेडियो सीलोन की बढ़ती लोकप्रियता का मुकाबला करने के लिए एक वेरायटी रेडियो चैनल की परिकल्पना की गयी। लेकिन इसके पीछे सिर्फ इतनी ही अवधारणा नहीं थी। इस दूसरी कड़ी में आपको बतायें कि आकाशवाणी के भीतर इसके कारण क्या थे। असल में उन दिनों लगातार ये महसूस किया जा रहा था कि आकाशवाणी के कार्यक्रमों में एकरसता आ रही है। वार्ताएं लंबी होती थीं, बारह से पंद्रह मिनिट की वार्ताएं। ज्यादातर लंबे कार्यक्रमों की वजह से श्रोताओं का टिके रहना मुश्किल लगता था। पंडित नरेंद्र शर्मा ने अपनी एक वार्ता में ये बताया भी है कि उन दिनों ज्यादा ज़ोर बुद्धिजीवियों के लिए कार्यक्रमों की प्रस्तुति पर था। मनोरंजन का तत्व कम था। ये सब अनायास ही हो गया था। बदलाव की सख्त ज़रूरत थी।
इस तरह से ‘ऑल इंडिया वेराइटी प्रोग्राम’ की अवधारणा शुरू हुई। और इसका चीफ प्रोड्यूसर पंडित नरेंद्र शर्मा को बनाया गया। पंडित नरेंद्र शर्मा बॉम्बे टॉकीज़ से लंबे समय तक जुड़े रहे थे और उनकी प्रतिष्ठा साहित्य और फिल्मों दोनों में समान रूप से थी। उन्होंने ‘विविध भारती’ के हर पहलू की परिकल्पना तैयार की।
बाद में पंडित नरेंद्र शर्मा ने इसे आकाशवाणी का ‘पंचरंगी’ कार्यक्रम कहा। ‘पंचरंगी’ का मतलब था, पांचों या समस्त कलाओं का इस चैनल में समावेश होगा।
एक और बहुत ही दिलचस्प बात थी विविध भारती से जुड़ी हुई। विविध भारती की शुरूआत में ओरीजनल कार्यक्रमों के चैनल के रूप में नहीं सोचा गया था। चूंकि इसके लिए अलग से बजट की व्यवस्था नहीं थी इसलिए विविध भारती अपनी शुरूआत में ‘लाइब्रेरी ब्रॉडकास्ट’ था। यानी देश भर में फैले आकाशवाणी के केंद्रों से ये कहा गया कि वो अपने सबसे दिलचस्प और छोटी अवधि के कार्यक्रमों के टेप मुंबई में भेजें। रोचकता और छोटी अवधि सबसे बड़ी शर्त रखी गयी थी। यहां टेप का मतलब है बाक़ायदा मैग्नेटिक-टेप। जिन पर लंबे समय तक रेडियो के कार्यक्रम तैयार किये जाते रहे। आज भी ‘विविध भारती’ की लाइब्रेरी का एक हिस्सा है ‘गोल्ड-कॉपी’। मुझे ये नाम भी अद्भुत लगता है। इस ‘गोल्ड कॉपी’ लाइब्रेरी में टेप संग्रहीत हैं और हर टेप के अंदर एक क्यू-शीट है। मैंने स्वयं इन क्यू-शीट्स को देखा है। और दिग्गज प्रसारकों की लेखनी उन पर देखी है। पंडित नरेंद्र शर्मा की हैंड-राइटिंग भी वहां मौजूद है। बाक़ायदा तारीखों के साथ। बहुत रोमांच होता है जब कभी मिसाल के लिए अमृतलाल नागर की आवाज़ में उनकी लिखी व्यंग्य वार्ता हाथ लगती है—‘अगर आदमी के दुम होती’। और फिर किसी दिग्गज ब्रॉडकास्टर की फाउंटेन पेन से लिखी क्यू शीट। या बच्चन जी की कविताएं। या महादेवी वर्मा या हरिशंकर परसाई की रिकॉर्डिंग। लखनऊ, इलाहाबाद, जबलपुर, जलंधर, दिल्ली तमाम केंद्रों का योगदान है ये। यानी विविध भारती को बनाने में देश के तमाम आकाशवाणी केंद्रों ने अपनी सर्वश्रेष्ठ रिकॉर्डिंग भेजकर महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस परंपरा की निशानी आज भी मौजूद है। ‘हवामहल’ की वो उद्घोषणा जिसमें आप नाटक के नाम के साथ सुनते हैं—ये हमारे जयपुर केंद्र की पेशकश थी। या फलां केंद्र की पेशकश थी। इस तरह विविध भारती बरसों बरस लाइब्रेरी ब्रॉडकास्ट की अवधारणा को चरितार्थ करती रही।
श्रृंखला #साठ_बरस_की_विविध _भारती की इस दूसरी कड़ी में चलते चलते आपको ये बता दें कि शुरूआत में ये सोचा गया था कि विविध भारती 15 अगस्त 1957 को काम करना शुरू कर देगी। पर सीमित संसाधनों की वजह से ये संभव नहीं हो पाया। इसलिए टीम ने और समय की मांग की। इस तरह विविध भारती बजाय 15 अगस्त के 3 अक्तूबर 1957 को शुरू की गयी। साठ अंकों की इस श्रृंखला को धीरज से पढ़ते रहिए। अभी आपको बहुत सारी बातें पता चलेंगी। ‘हवामहल’ से लेकर ‘जयमाला’ तक के बारे में। शुरूआती टीम के बारे में। विविध भारती के हर उस पहलू के बारे में जिसके बारे में आपकी जिज्ञासा है। अपनी राय और टिप्पणियां भेजते रहिए। आपके सवाल इस श्रृंखला के अगले अंकों का स्वरूप भी तय कर सकते हैं।
इस श्रृंखला के साथ हिमोजी के लिए मशहूर बेमिसाल अपराजिता चित्रों की जुगलबंदी कर रही हैं। यह चित्र इस श्रृकड़ी के लिए विशेष रूप से रचा गया है।
Source and Credit : Yunus Khan