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आकाशवाणी के से.नि.कार्यक्रम अधिकारी महामहोपाध्याय डा.रामजी मिश्र की पुस्तक: "शंकराचार्य और उनकी परम्परा !"

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जैसा कि सभी जानते हैं कि प्रसार भारती (आकाशवाणी-दूरदर्शन)के पास भारतीय संगीत और साहित्य के रिकार्डिंग्स की विपुल सम्पदा (आडियो -वीडियो रिकार्डिंग्स) प्रसारण की उन्नत टेकनालाजी के आधुनिकतम रुप में श्रोताओं के लिए उपलब्ध हैं।उसी प्रकार यह भी संज्ञान में लाना चाहूंगा कि इन संस्थाओं से सेवानिवृत्त या सेवारत कार्यक्रम,प्रशासन और इंजीनियरिंग की अनेक प्रतिभाएं अपने मूल दायित्व के कुशल निर्वहन के साथ -साथ आज भी अपने -अपने विशेषज्ञता के क्षेत्रों में परचम लहरा रही हैं।ख़ास तौर से सेवानिवृत्त लोगों के सामाजिक,शैक्षिक और साहित्यिक योगदानों से पाठकों को परिचित कराते रहने का एक यह भी उद्देश्य निहित रहता है कि लोग जान सकें कि रिटायर्ड लोग हाशिये पर गये लोग नहीं हुआ करते हैं। वे अपने सत्कर्मों और समर्पण भाव से आज भी सामाजिक योगदान देने में तत्पर हैं। संस्कृत साहित्य और अध्यात्म विधा में निपुण आकाशवाणी के सेवानिवृत्त कार्यक्रम अधिकारी हैं महामहोपाध्याय डा. रामजी मिश्र भी उन्हीं विभूतियों में से एक हैं ,जिनकी एक बहुचर्चित और प्रशंसित पुस्तक "शंकराचार्य और उनकी परम्परा"पुनर्मुद्रित होने जा रही है ।यह पुस्तक पहली बार वर्ष 2005 में छपी थी ।इस पुस्तक में आदिशंकराचार्य द्वारा स्थापित चारो पीठों पर नियुक्त सभी आचार्यों की तालिका ,समय और कालावधि इत्यादि का सविस्तार विवरण दिया गया है ।

पुनर्मुद्रित पुस्तक में सप्रमाण आदि शंकराचार्य के जन्म आदि के बारे में भी सामग्री दी जा रही है जो शिलालेख, प्रस्तर लेख, ताम्र पत्र आदि के रूप मे उपलब्ध प्रमाणों पर आधारित है। उ० प्र० के सुल्तानपुर जनपद के पाण्डेय पुर ग्राम में प्रतिष्ठित सरयूपारीण संस्कृतज्ञ ब्राह्मण पं० रघुपति प्रसाद मिश्र के यहाँ 7 मार्च 1955 को जन्मे महामहोपाध्याय उपाधि से विभूषित डा० रामजी मिश्र ने आकाशवाणी को 19 जनवरी वर्ष1984 से 31अगस्त वर्ष 2015 तक अपनी सेवाएँ देते हुए अवकाश लिया है ।लौकिक माता श्रीमती सीता देवी के इस सुयोग्य पुत्र को पारलौकिक मां सरस्वती का भरपूर आशीर्वाद मिला और इन्होंने अपनी प्रारंभिक एवं माध्यमिक शिक्षा गांव में पूरी करने के बाद उच्च शिक्षाएं इलाहाबाद वि० वि०,का० हि० वि० वि० वाराणसी और कुमायूँ वि० वि० नैनीताल में पूरी करते हुए सर्वोच्च अंकों में शास्त्राचार्य, एम० ए०, पी० एच० डी० और डी० लिट० उपाधियाँ हासिल की हैं।इनकी विद्वता और व्यक्तित्व को भरपूर सम्मान भी मिलता रहा है ।करपात्री पुरस्कार, सर्जना पुरस्कार,विविध पुरस्कार, आचार्य शंकर पुरस्कार, विश्व भारती पुरस्कार, काशीरत्न -प्रयाग-बरेली-साहित्य-भारत-जगनिक-अमरेश कवि, गौरव आदि सम्मान के साथ साथ आकाशवाणी महानिदेशालय द्वारा अखिल आकाशवाणी राजभाषा सम्मान से वर्ष 2011 एवं 2013 में सम्मानित किया जा चुका है ।आकाशवाणी में कार्यक्रम अधिशासी (संस्कृत उच्चरित शब्द)पद पर अपनी बहुमूल्य सेवाएं देते हुए भी इनका लेखन कार्य अबाध गति से चलता रहा और इसी के फलस्वरूप इनकी लिखी अब तक लगभग एक दर्जन संस्कृत की पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं ।कुछ महत्वपूर्ण पुरस्कृत पुस्तकों के नाम हैं- स्वामी करपात्री जी और उनका राजनीतिक दर्शन, धर्म और राजनीति, शंकराचार्य और उनकी परम्परा, रामानुजाचार्य और उनकी परम्परा, प्रमुख ऋषि-मुनियों की परम्परा, रामानन्दाचार्य और उनकी परम्परा, तीर्थोदकम(संस्कृत कविता संग्रह) काव्यांजलि, संस्कृतवाग विलास, बूंद से सागर तक(हिन्दी कविता संग्रह), सुधियों का दर्पण आदि ।दूरभाष पर डा० रामजी मिश्र ने ब्लाग लेखक को बताया है कि यह पुस्तक संगम नगरी इलाहाबाद में आयोजित होने वाले आगामी अर्ध कुम्भ से पहले पाठकों के लिए उपलब्ध हो जायेगी।ऐसे रचनाधर्मी सहयोगी को प्रसार भारती परिवार अपनी शुभकामनाएं दे रहा है।

ब्लाग रिपोर्ट : प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी,लखनऊ।मोबाइल नं.9839229128

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