प्रति वर्ष 26जुलाई को देश कारगिल विजय दिवस मनाता है।यह वर्ष 1999 का वह ऐतिहासिक दिन है जब भारतीय सेना के जाबांज सैनिकों ने लगातार 60दिनों की कठिन लड़ाई के बाद लद्दाख की जोखिम और ग्लैशियर से भरी चोटियों पर स्थित अपनी चौकियों पर से दुश्मनों को भगाने में सफ़लता पाई थी । कारगिल युद्ध में विजय पताका फहराने वाले और शहीद होने वाले भारतीय सैनिकों को आज स्मृति दिवस पर सलाम करते हुए हमें यह भी जानना ज़रुरी है कि उन जोखिम भरे दिनों में आकाशवाणी कारगिल में नियुक्त प्रसारणकर्मियों ने भी अद्भुत साहस और धैर्य दिखाते हुए अपना प्रसारण जारी रखा था ।उनके जज़्बे और हौसलों को भी सलाम किया जाना चाहिए।ऐसे ही एक मेरे सहकर्मी और उन दिनों(1998से 2004तक) वहां नियुक्त कार्यक्रम अधिकारी जनाब हसन अब्बास रिजवी साहब अब भी हम सबके बीच मौज़ूद हैं जो अपनी आंखों के सामने के मंजर को याद करके अब भी रोमांचित हो उठते हैं।उनके वहां से मुझे भेजे गये अनेक पत्र अब भी मेरी जागीर बने हुए हैं । वे बताते हैं "....26 जुलाई 1998 से पाकिस्तानी फ़ौज की ओर से बराबर गोलाबारी हो रही थी ।मेरा स्टेशन (कारगिल)सीमा से कुल 5कि.मी.के भीतर आता है।नदी के दूसरी ओर एयरपोर्ट है।वहीं पर और भी सैनिक प्रतिष्ठानों के कार्यालय एवं वर्कशाप हैं,उसी पर गोला बारी होती रहती है जो मेरे केन्द्र से दो फर्लांग से कम दूरी पर है।...मैं यहां पर अभी तक सकुशल हूं...।"वे आगे भावुक हो उठते हैं और बताते हैं ..."..भागमभाग,गिरते शेल,बाज़ार बंद,कारगिल से अपना बसेरा छोड़कर सेफ ज़ोन की तलाश में भटकते लोग,..और मैं..डूबते जहाज के कप्तान की तरह रेडियो कारगिल के प्रसारण को जारी रखने के लिए संकल्पबद्ध था...अंदर से बेहद डरा हुआ लेकिन ऊपर से शांत.." !
अपने साथी जनाब हसन अब्बास रिज़वी के जज़्बे और हौसलों को प्रसार भारती परिवार का लाखों सलाम! करगिल के उस माहौल में आपने आकाशवाणी में अपनी यादगार सेवाएं दी थीं जो कि देश सेवा से किसी भी मायने में कम नहीं है!उन सभी प्रसारणकर्मियों की शान में ये पंक्तियां पेश हैं-
"हर दौर में किरदार के अपने हुए चर्चे,
तारीख़ लिखी पहले,आगे भी लिखेंगे ।"
ब्लाग रिपोर्ट : प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी,लखनऊ।मोबाइल 9839229128,darshgrandpa@gmail.com