1920 में पहले रेडियो स्टेशन की स्थापना पीट्सबर्ग में हुई और जल्द ही बीबीसी और वॉइस आॅफ अमेरिका जैसे बड़े रेडियो नेटवर्क की स्थापना होती चली गई।
आल इंडिया रेडियो ने आज अपने सफर के नब्बे साल पूरे कर लिए। लगभग पूरे देश में इसकी पहुंच है। हर वर्ग, हर भाषा और हर क्षेत्र के लिए इसके कार्यक्रम हैं। इस लिहाज से यह दुनिया के बड़े रेडियो नेटवर्कों में शुमार है। मगर निजी कंपनियों को एफएम चैनल खोलने का अधिकार मिलने से जहां रेडियो की दुनिया में क्रांति-सी आई, वहीं प्रसार भारती के रेडियो चैनलों के लिए चुनौतियां भी खड़ी हुर्इं। .................
रेडियो के सफर और उपलब्धियों, उसकी दुश्वारियों के बारे में बता रहे हैं सुरेश वर्मा।
दुनिया के सभी राष्ट्रों में रेडियो की अपनी अलग शक्ति है। लुप्त होती विधाओं को सहेजने, नई तकनीक को प्रचलित और प्रसारित करने, संगीत की विविधता को लोकप्रिय बनाने और विज्ञापनों द्वारा वस्तु और सेवाओं की जानकारी पहुंचाने में रेडियो की अहम भूमिका रही है। हर्ट्ज, मैक्सवेल, फैराडे, मार्कोनी आदि वैज्ञानिकों के अविष्कारों का ही परिणाम हमारे सामने रेडियो के रूप में पूरी बीसवी सदी में छाया रहा। रेडियो शब्द की व्युत्पत्ति लैटिन ह्यरेडियसह्ण से माना जाता है। कुछ लोग इसे रोशनी की बीम ह्यरेह्ण से बना मानते हैं। 1881 में ग्राहमबेल ने ह्यरेडियोफोनह्ण पद का उपयोग किया था। 1906 में रेडियोटेलीग्राम प्रचलन में आया। 1907 में लीडी फारेस्ट के रेडियो कंपनी बनाने से इस शब्द को गति मिली। 1920 में पहले रेडियो स्टेशन की स्थापना पीट्सबर्ग में हुई और जल्द ही बीबीसी और वॉइस आॅफ अमेरिका जैसे बड़े रेडियो नेटवर्क की स्थापना होती चली गई। भारत में रेडियो क्लब द्वारा इसका प्रचलन हुआ और 1927 में पहला रेडियो स्टेशन मुंबई में आरंभ हुआ, जो 1936 में आल इंडिया रेडियो के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
1947 में विभाजन के बाद छह स्टेशन भारत में आए और तीन पाकिस्तान में चले गए। आज आजादी के सत्तर साल बाद भारत का प्रसारण तंत्र चार सौ बीस रेडियो स्टेशनों वाला विश्व के अग्रिम पंक्ति के प्रसारण संगठनों में से एक है। क्या रेडियो मात्र ध्वनि तरंग नहीं है। इसका चरित्र प्रदर्शित होता है ह्यबहुजन हिताय बहुजन सुखायह्ण से, जिसका अनुसरण शब्द, संगीत, सन्नाटा, ध्वनि प्रभावों के उचित मिश्रण से किया जाता है। पिछले नब्बे वर्षों के दौरान भारतीय रेडियो प्रसारण तंत्र ने अपने को एक इंटरैक्टिव, सूचनात्मक और मनोरंजक मीडिया के रूप में स्थापित किया है। आकाशवाणी विश्व के विशालतम प्रसारण संगठनों में से एक है। यह चार सौ बीस रेडियो स्टेशनों के जरिए भारत के बानबे प्रतिशत भूभाग और सवा सौ करोड़ देशवासियों तक पहुंचने का अनुपम साधन है। खास बात यह है कि तेईस भाषाओं और एक सौ छियालीस बोलियों में अपनी बात कहने में इसका कोई प्रतियोगी नहीं है। अपनी विदेश प्रसारण सेवा में यह ग्यारह भारतीय भाषाओं और सोलह विदेशी भाषाओं में सौ देशों तक अपनी पहुंच रखता है। आज विचारणीय बिंदु यह है कि इस निधि का सदुपयोग किस प्रकार किया जाए ताकि राष्ट्र विकास के पथ पर तेजी से अग्रसर हो सके।
रेडियो के स्वरूप में परिवर्तन और संशोधन सदा होते रहे हैं। कहां वह बड़े वॉल्व वाला ड्राइंगरूम में रखा रहने वाला मर्फी का स्थिर रेडियो, जो बाद में सॉलिड स्टेट हो गया और फिर चलता-फिरता दो बैट्री से चलने वाला ट्रांजिस्टर बन गया। ट्रंक के भार से किताब के वजन तक पहुंचने में रेडियो को एक लंबा समय लगा। कंधे पर लटकने वाले ट्रांजिस्टर को कान में लगा कर इअर फोन से सुनते युवा इस संस्कृति के वाहक हैं। आज मोबाइल फोन के माध्यम से रेडियो आपकी जेब में पहुंच गया है और इंटरनेट और एप्स के जरिए रेडियो ने विश्व भर में अपनी पहुंच बना ली है, जो पहले केवल सीमित क्षेत्र तक होता था।
विश्व के विकासशील राष्ट्रों की तीन-चौथाई जनता ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है, जहां निरक्षरता, अज्ञानता, निर्धनता, बेरोजगारी, रोगियों की संख्या अधिक है। ऐसे में रेडियो और परिवेर्तन के मध्य संबंध नजरंदाज नहीं किया जा सकता। ग्रामीण जनता के स्वास्थ्य, शिक्षा, चिकित्सा, कृषि और पशुपालन संबंधी सूचना को जनमानस तक उन्हीं की बोली या भाषा में पहुंचाने की शक्ति केवल रेडियो में है, जिसके माध्यम से सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास संभव हो सकता है। भारत जैसे विकासशील राष्ट्र में शिक्षा और सूचना के माध्यम के रूप में रेडियो की उपयोगिता और महत्ता आंकी नहीं जा सकती। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आकाशवाणी में अपने प्रसारण के माध्यम से देश की जनता में राष्ट्र, संस्कृति, अपनी गौरवशाली परंपरा और विकासात्मक गतिविधियों के प्रति चेतना उपजाने की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिकाने की अपार क्षमता है।
इस प्रसारण तंत्र द्वारा देश में सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक लक्ष्यों की प्राप्ति, राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने, आधुनिकीकरण को उन्नत करने और विज्ञान-प्रौद्योगिकी को बल प्रदान करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य कर सकने में सक्षम संचार माध्यम की अपार संभावनाएं हैं। संगीत, वार्ताओं, परिचर्चाओं, इंटरव्यू, रेडियो नाटकों, कहानियों, समाचार, शैक्षिक प्रसारण और बाहरी प्रसारण आदि के माध्यम से देश के हर आयु वर्ग तक पहुंच आकाशवाणी के पास है। साहित्यिक-सांस्कृतिक धरोहर की जो पूंजी आकाशवाणी के पास है, वह अद्वितीय है।
रेडियो और ग्रामीण विकास
रेडियो एक ग्रामीण विकास उपकरण है, जो किसी सामाजिक समूह की संचार आवश्यकताओं की पूर्ति का एक मंच उपलब्ध कराता है। यही नहीं, यह समय पर प्रासंगिक जानकारी प्रदान करने के लिए सबसे सरल और तीव्र गति का साधन है। सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक, आध्यात्मिक और आर्थिक मांगों की आवाज उठाने के लिए, सांस्कृतिक पहचान को पुनर्स्थापित करने में इसकी भूमिका सराहनीय है।
ग्रामीण क्षेत्रो में रेडियो समुदायों को उनके सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक वातावरण को प्रभावित करने वाले संवाद और निर्णय में हिस्सेदारी की शक्ति प्रदान करता है। यह एक व्यापक, सुलभ, किफायती और लोकप्रिय संचार का माध्यम है जो जागरूकता बढ़ाने, स्थानीय समुदायों को एक जुट करने के लिए प्रेरित करता है। ग्रामीण समुदायों की राय जानने, उनकी जरूरतों को समझने और नवजीवन की आकांक्षाओं के लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति के लिए रेडियो एक मंच प्रदान करता है। रेडियो की अपनी अनूठी विशेषता है। इसकी पहुंच ड्राइंग रूम या बेडरूम तक सीमित नहीं है, बल्कि रसोईघर, कार, स्टडी टेबल, खेत, बस, ट्रक, ढाबे, स्कूल, पंचायत और युवाओं की जेब तक सूचना, शिक्षा, मनोरंजन, प्रेरणा और मार्गदर्शन पहुंचाने का सबसे सस्ता, सरल और तीव्र माध्यम है।
इसकी संवेदना और शक्ति ध्वनि है- चाहे वह वाणी हो या संगीत, संवाद हो या ध्वनि प्रभाव, शब्द हो या गीत, जो चित्र यह मानस पटल पर बनाता है, उसका प्रभाव अतुलनीय है। मानसपटल पर बनने वाले इस कल्पना चित्र की अनुभूति वास्तविक चित्र से कहीं अधिक सुंदर, स्पष्ट, मधुर और गहरी होती है। आल इंडिया रेडियो ने आज अपने सफर के नब्बे साल पूरे कर लिए। लगभग पूरे देश में इसकी पहुंच है। हर वर्ग, हर भाषा और हर क्षेत्र के लिए इसके कार्यक्रम हैं। इस लिहाज से यह दुनिया के बड़े रेडियो नेटवर्कों में शुमार है। मगर निजी कंपनियों को एफएम चैनल खोलने का अधिकार मिलने से जहां रेडियो की दुनिया में क्रांति-सी आई, वहीं प्रसार भारती के रेडियो चैनलों के लिए चुनौतियां भी खड़ी हुर्इं। ....................
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