अधिकारी पहले भी रहे हैं, अभी भी हैं, और आगे भी रहेंगे लेकिन जिन अधिकारियों में विद्वता के साथ मानवीयता, संवेदनशीलता और इंसानियत हो, ऐसे अधिकारी लोगों के दिलों में इतने गहरे पैठ जाते हैं कि उन्हें सेवानिवृत्त हुए चाहे कितने बरस हो जाए वो किवदंती की तरह लोगों की ज़बान पर मौजूद रहा करते हैं । ऐसे ही शख्स हैं, पूर्व महानिदेशक आकाशवाणी श्री मधुकर गायकवाड़ । गायकवाड़ साहब से मेरा कभी भी किसी तरह का कोई परिचय नहीं रहा जब तक मैं इस नौकरी में कुछ समझने लायक हो पाता तब तक वे सेवानिवृत्त हो चुके थे ।
अपने AIR इन्दौर कार्यकाल के शुरूआती दौर में मैं बार-बार यह नाम सुना करता था, जो कि किसी न किसी बारे में एक्जाम्पल के रूप में कोट किया जाता था । जिस तरह की गर्व भरी चर्चायें मेरे सीनियर गायकवाड साहब के बारे में किया करते थे उन चर्चाओं ने मुझे प्रेरित कर दिया कि मुझे किसी तरह उनसे मिलना है । और फिर शाहरूख खान की किसी फिल्म का वह डायलाॅग संशोधित रूप में साकार हो गया कि ‘‘आप जिस काम को दिल से करना चाहो उसे करने के लिए पूरी कायनात साजिश करने लगती है "और आखिर में उस कायनाती साजिश की बदौलत जब मुझे मुम्बई की जवाबदारी मिली तो मेरी विश लिस्ट में 2 नाम थे जिनसे मिलने की अभिलाषा तीव्रतम रूप में मन में हिलोरे ले रही थी ।
एक तो वर्तमान डीडीजी ई आशीष भटनागर और दूसरे सेवानिवृत्त आकाशवाणी महानिदेशक श्री मधुकर गायकवाड़ । भटनागर साहब की बात फिर कभी विस्तार से अभी तो मैं मधुकर गायकवाड़ साहब के रंग में रंगा हॅूं । ट्रांसफर कहीं भी हो जाए व्यक्तित्व आसानी से परिवर्तित नहीं होता सो जैसी मेरी काम करने की शैली है उसमें 8 घंटे की नौकरी के साथ—साथ बाद के बचे हुए 16 घंटों में मुम्बई में जो किया उससे पूरे महाराष्ट्र में बहुत से मित्र बन गये । इन्हीं में से एक आकाशवाणी मुम्बई के कार्यक्रम अधिकारी डाॅ. संतोष जाधव ने प्रसारण से जुडे़ मामले में चर्चा के दौरान मेरी दुखती रग को छेड़ दिया ‘‘ अरे इस पर तो गायकवाड़ साहब ने किताब लिखी हुई और उसको तो एसटीआयपी ;छ।ठडद्ध में ट्रेनिंग के दौरान पढ़ाया जाता है’’ । बस मैने डाॅ. जाधव को बीच में रोका और उन पर सवालों की झड़ी लगा दी- क्या आप गायकवाड़ साहब के संपर्क में हो, कहाॅं रहते हैं साहब । क्या आपके पास उनका कोई काॅन्टेक्ट नम्बर है । मेरी इन सारी जिज्ञासाओं को यहाॅं डाॅ.जाधव ने पूर्णत: शांत कर दिया और साहब का मोबाईल नम्बर भी दे दिया ।
फिर एक दिन बिना परिचय के हिम्मत कर के झिझकते हुए मोबाईल लगा दिया 3-4 रिंग के बाद मोबाईल पर धीर गंभीर लेकिन सधी हुई आवाज़ सुनाई दी मैने अपना परिचय दिया और कहा सर आपसे मिलना चाहता हॅं । जवाब मिला मै तो मुम्बई से काफी दूर वसई में फार्म हाउस पर रहता हॅूं कभी मुम्बई आकाशवाणी आउंगा तो बताउॅंगा । मैने निवेदन किया सर कोई बात नहीं मैं आपसे मिलने वहीं आ जाउंगा । उनका जवाब था ठीक है जब भी आओ काॅल कर के आना ताकि मैं वसई में अपने फ्लेट पर उपलब्ध रहॅूं और आपको कोई परेशानी न हो । मै हैरान रह गया मैं जिस पद पर कार्यरत हॅूं वह ऐसा तो नहीं है कि आकाशवाणी के सर्वाेच्च पद से सेवानिवृत्त हुआ व्यक्ति मेरे लिए अपनी उपलब्धता सुनिश्चित करे लेकिन उनके इस कथन ने उनमें छिपे सहृदयी व्यक्तित्व और उनकी इंसानियत का परिचय दे दिया था और इससे मेरे मन में उनके प्रति श्रद्धा और बढ़ गयी ।
इसी दौरान ज्ञात हुआ कि गायकवाड़ साहब इस वर्ष अमृत महोत्सव के दौर में हैं आनन-फानन में उनसे समय लिया इसी दौरान संयोग से अखिल भारतीय एससीएसटी एसोसिएशन के महासचिव श्री ओ पी गौतम जी का आना हुआ उनसे जिक्र के दौरान उन्होने कहा अरे साहब तो हमारे भी परिचित है मुझे भी उनसे मिलना है । इस तरह हम लोग निकल पडे उस शख्स से मिलने जिसे ब्राॅडकाॅस्टिंग इनसाइक्लोपीडिया कहा जाता है । निर्धारित समय से थोड़ा लेट, जब हम समय के पाबंद श्री गायकवाड़ साहब से उनके वसई स्थित घर पंहुचे तो वो हमारा ही इंतजार कर रहे थे । थोडी देर तक मैं अपने आपको सामन्य करने की कोशिश में लगा रहा जैसे तैसे उनके प्रभाव से बाहर आने की जबरदस्त कोशिश के दौरान ही औपचारिक मेल-मुलाकात हुई जैसे ही इससे मुक्त हुए उन्होने कहा बात-वात तो होती रहेगी पहले खाना खा लेते हैं । मैने कहा हाॅं सर आप चाहे तो लंच ले लीजिए हम इंतजार कर लेते हैं बोले मैं नहीं नहीं केवल मै नहीं हम सब लंच करेंगे । इस तरह लंच और लंच के बाद जब बात निकली तो गायकवाड़ साहब की यादों के पिटारे में से कई यादगार बातें निकलती रहीं और मैं हतप्रभ होकर उन्हें सुनता रहा ।
श्री मधुकर गायकवाड 14 जून 1941 को अहमदनगर के एक सामान्य परिवार में पैदा हुए थे । पिता का पैतृक व्यवसाय कृषि था जो कि पूरी तरह उस समय बारिश पर ही निर्भर थी जिस वर्ष बारिश नहीं होती थी उस समय कारपेंटर के रूप में कार्य कर के परिवार का भरण पोषण हुआ करता था । गायकवाड़ जी के उम्र के 5 वें पड़ाव पर पहुंचते पंहुचते ही माॅं की मृत्यु हो गयी । उनका बचपन दादी की गोद में ही गुजरा । प्रायमरी स्कूली शिक्षा नगर में ही हुई इसी दौरान दादी के अंग्रेजी पढ़ाये जाने से उन्हें अंग्रेजी में महारात हासिल हो गयी थी ।
हाईस्कूल के दौरान परिवार कल्याण शिफट् हो गया । रूईया काॅलेज मुम्बई से उन्होने 1963 में बीए किया फिलाॅसाफी एवं साईकोलाॅजी में एम.ए. करने के बाद उन्होने पत्रकारिता में गोल्ड मेडल हासिल किया और वे यहीं नहीं रूके उनकी इस अद्भुत विद्धता को देखते हुए उन्हें पत्रकारिता महाविद्यालय का प्रोफेसर नियुक्त किया गया जहाॅं वह हेड आॅफ जर्नलिज्म भी रहे । इनकम टैक्स आॅफिस में भी कार्यरत रहे फिर केन्द्र सूचना ब्यूरो में भी सेवा दी ।
और फिर केन्द्रीय लोक सेवा आयोग से 1979 में चयनित होने के बाद आकाशवाणी नागपुर में आपने केन्द्र निदेशक के रूप में ज्वाईन किया यह पहली नियुक्ति हुई जलगांव में । इसके पश्चात् 1982 में आपने नागपुर आकाशवाणी केन्द्र के निदेशक के रूप में ज्वाईन किया । 1984 से 1985 तक आकाशवाणी भोपाल के निदेशक रहे । 1986 से 1993 तक आकाशवाणी मुम्बई के निदेशक रहे । 1993 से 2001 तक आप देहली में उपमहानिदेशक के रूप में पदस्थ रहे । 2001 में आप आकाशवाणी के सर्वाेच्च पद पर पंहुचे यानि कि महानिदेशक के रूप में कार्य ग्रहण किया और इसी पद से सेवानिवृत्त हुए ।
अपने कार्यकाल के दौरान गायकवाड़ साहब ने कई क्रांतिकारी परिवर्तन किए । बाबा साहब डाॅ. भीमराव आम्बेडकर से वे अत्यधिक प्रभावित रहे हैं । सामाजिक उत्थान के रेडियो की भूमिका को वे अच्छे से समझते थे । क्रांतिकारी लेखक नरेन्द्र जाधव की किताब ‘‘आम्ही आणी आमचा बाप’’ का आकाशवाणी मुम्बई से लगातार 40 दिनों में पूर्ण प्रसारण किया जिसनेे उस समय श्रोता जगत में लोकप्रियता के नए आयाम हासिल किए थे ।
गायकवाड़ साहब समय के बड़े पाबंद रहे हैं और वे उसका दृढ़ता से पालन भी करते थे । इस बारे में एक किस्सा लोग बडे चाव से सुनाते हैं कि जब गायकवाड साहब स्टेशन डायरेक्टर हुआ करते थे तब उस जिले के कलेक्टर को रेकार्डिंग के लिए बुलाया गया निर्धारित समय से 2 घंटे उपर व्यतीत हो गये लेकिन कलेक्टर साहब न तो खुद पधारे न ही उनका कोई संदेश आया ।लगभग 4 घंटे बाद जब कलेक्टर साहब पधारे तो गायकवाड साहब ने उनकी रेकार्डिंग करने से ये कहते हुए इनकार कर दिया कि आकाशवाणी में हर काम समय से होता है और आपकी रेकार्डिंग का निर्धारित समय निकल चुका है अत: अब रेकार्डिंग संभव नहीं है । कलेक्टर साहब तिलमिला गये और येन केन प्रकारेण अपनी रेकार्डिंग के लिए कोशिश करते रहे लेकिन उनकी रेकार्डिंग फिर नहीं हो पायी । जनमानस से सुना गया ये किस्सा गायकवाड साहब की दंबगता और समय की पाबंदी को प्रकट करता है ।
गायकवाड साहब सरकार की नीतियों के तहत वीकर सेक्शन को आगे बढाने के लिए भी लगातार प्रयासरत रहे हैं भोपाल आकाशवाणी के डायरेक्टर के रूप में आपने मध्यप्रदेश के आदिवासी युवकों के करियर निर्माण हेतु महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है उस दौरान आपके द्वारा पर्सनालिटि बिल्डिंग हेतु वीकली करियर मैगजीन का प्रसारण शुरू किया जिसने उस दौरान युवाओं को करियर बनाने में बहुत मदद की ।
इसके अलावा आप व्यक्तिगत रूप से भी कमजोर वर्गो की सहायता के लिए सदैव सक्रिय रहे हैं । एमपीपीएससी प्रतियोगी परीक्षा हेतु आपने 15 दिन युवाओं को गाईड के रूप में प्रशिक्षित किया इस हेतु आपने किसी भी तरह का पारिश्रमिक लेने से भी इनकार कर दिया था और उस बैच में से 25 लोग एमपीपीएससी में क्लास वन आॅफीसर बने थे । श्री गायकवाड बताते हैं कि इस बात ने मुझे बडा आत्मसंतोष दिया था कि उन युवाओं को सही मार्गदर्शन मिलने से वे अपने करियर बनाने में सफल रहे ।
श्री गायकवाड प्रसारण क्षेत्र के चलते फिरते इनसाईक्लोपीडिया माने जाते हैं इस बारे में उनके बारे में किवदंती है कि उनसे प्रसारण संबंधी कोई भी बात चलते फिरते भी पूछ ली जाए तो वे बेहद सटीक जवाब दिया करते है । श्री गायकवाड का मानना है प्रसारण नैचुरल होना चाहिए । एनाउंसर को सामान्य लहजे में ही बात करनी चाहिए बनावटीपन प्रसारण को प्रभावित करता है । प्रसारण की भाषा, बोली नैसर्गिक होनी चाहिए । गायकवाड साहब लगभग 4 घंटे हमें समय दे चुके थे और बातें इतनी थी कि खत्म होना संभव नहीं था उस दिन बाते तो बहुत हुई पर मुझ जैसे सामान्य व्यक्ति को जितना समझ में आया मैने उसे शब्दों में उतारने की कोशिश की है । गायकवाड साहब का यह अमृत महोत्सव उनके जीवन का 75 वॉं वर्ष है उम्मीद करता हॅूं उनके 100 वें वर्ष पर पुन: उनसे एक लम्बी बातचीत कर सकॅूंगा ।
Blog Report-Praveen Nagdive, ARU AIR Mumbai