आम लोगों की यह धारणा है कि इन्द्रप्रस्थ (देश की राजधानी दिल्ली) की राजगद्दी पाने का रास्ता उ.प्र.से होकर ही जाता है ।कुछ हद तक यह सही भी है क्योंकि अधिकांश प्रधान मंत्री उ.प्र.ने दिए हैं।इस सूबे की राजनीतिक ही नहीं,सामाजिक-साहित्यिक,आपराधिक,प्राकृतिक लगभग सभी हलचल राष्ट्रीय फलक पर हमेशा सुर्खियां बटोरती रही हैं।इन दिनों सूबे की राजधानी यहां से छपने वाले प्रिन्ट मीडिया की आपसी प्रतिद्वन्दिता के चलते लोगों की चर्चा, आकर्षण और कौतूहल का विषय बन चुकी है ।अजीब बात है ना कि "आइना खुद अपने आपको आइना दिखा रहा है।"
मामला कुछ यूं है कि सूबे का सबसे ज्यादा सर्कुलेशन वाला अख़बार कौन है इसका श्रेय यहां से छपने वाले लगभग हर अख़बार लेने को आतुर हैं।अपने दावों के समर्थन में कोई ए.बी.सी.तो कोई ए.एस.सी.आई. तो कोई आई.आर.एस. जैसे सर्वे का सन्दर्भ दे रहा है।पाठकों की तो बल्ले बल्ले है क्योंकि "तूं आगे कि मैं आगे के "वाले इस कम्पिटिशन में उनको पांच रुपये तक पहुंच चुके मूल्य वाले पेपर इन दिनों ढाई से तीन रुपये में पढ़ने को मिल जा रहे हैं।हां,यह दूसरी बात है कि अख़बार वाले इस ऐलानी जंग में कभी कभी पूरा -पूरा पेज अपने दावों को पेश करने में बर्बाद किए जा रहे हैं।इसी तरह के "ऐलान- ए- जंग"की एक और कड़ी के रुप में पिछले हफ्ते सूबे के लोगों को एक नये प्राइवेट रेडियो चैनल के दिग्भ्रमित कर देनेवाले विज्ञापनों से कुछ दिनों तक जूझना पड़ा ।मसलन,शाहरुख ने इतनी फिल्मों में राहुल का किरदार निभाया,राहुल के डांस ग्रुप में इतने लोग थे,अरे रे रे गाने में अरे शब्द इतनी बार बोला गया,फिल्म दबंग में मुन्नी इतनी बार बोला गया है,छेदी सिंह के गैंग में इतने गुंडे थे,फिल्म दबंग में भैय्या जी स्माइल इतनी बार बोला गया,आदि अजीब और ऊल जुलूल प्रश्नों में पाठकों को उलझाए रखा गया ।बाद में पता चला कि यह प्रसारण की दुनियां में उतरने वाले किसी नये पहलवान के प्रचार कैम्पेन का एडवेंचरस हिस्सा था ।हद तो तब हो गई जब उसने एक दिन अख़बार के पहले पेज पर बड़े बड़े शब्दों में घोषणा कर डाला कि "आज से बाकी रेडियो बन्द !"कुछ और भी भ्रामक तथ्य अपने समर्थन में उन्होंने दिये हैं जैसे उनकी यह घोषणा कि वे पहली बार रेडियो पर रामायण देने जा रहे हैं।शायद उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं है कि आकाशवाणी से मानस गान की संगीतमय प्रस्तुतियां एक लम्बे अरसे से होती चली आ रही है ।
उपभोक्ता हितों को बुरी तरह प्रभावित करने वाले ऐसे विज्ञापनों पर अंकुश लगने की आवश्यकता है ।सम्बन्धित एजेन्सी जब अपने विवेक से काम न कर सकें तो किसी न किसी नियामक संस्था को हस्तक्षेप करना ही चाहिए ।ख़ास तौर से प्राइवेट रेडियो चैनलों से प्रसारित हो रहे घटिया ऐंकरिंग,बाज़ारू डायलाग,द्विअर्थी संवादों और मुर्गी मुर्गा बनाने वाले प्रसंगों सहित ऐसे भ्रामक विज्ञापनों के मामलों में सतर्कता बरती जानी चाहिए ।
ब्लाग रिपोर्टर - श्री. प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी,लखनऊ ।मोबाइल नं0 9839229128
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