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माँ ने अकेले ही पत्तों की झोपड़ी में पाला, आज डॉक्टर व IAS बना यह आदिवासी बेटा

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7 जनवरी, 1988 को सकरी तालुका के छोटे से गाँव समोड़े में जन्मे डॉ. राजेंद्र बंधु, अपने माता-पिता की तीन-संतानों में से दूसरे हैं। जब उनके पिता का देहांत हुआ तो वह अपनी माँ के पेट में थे। वह कहते हैं कि आज तक उन्हें नहीं पता कि उनके पिता कैसे दिखते थे।

वह बताते हैं, “मेरा परिवार इतना गरीब था कि उनकी मौत से पहले उनकी फोटो क्लिक कराने के लिए भी हमारे पास पैसे नहीं थे। हम बचपन से ही जानते थे कि गरीबी क्या होती है। गाँव का हर आदमी इतना गरीब था कि उसे अपने अनपढ़ होने का एहसास ही नहीं होता था। जिस व्यक्ति के पास जितना था वह उसी में खुश था और प्राकृतिक संसाधनों से अपनी जीविका चलाता था।“

उनकी माँ, जिन्हें वह माई कहते हैं और उनकी दादी मिलकर घर चलाती थीं और तीनों बच्चों की परवरिश करती थीं। वह देसी शराब बेचकर अपनी आजिविका चलाती थीं। गन्ने के पत्तों से बनी एक छोटी सी झोपड़ी के नीचे पूरा परिवार रहता था।

वह बताते हैं, “महाराष्ट्र के आदिवासी इलाके में पाए जाने वाले महुआ के फूलों से वह पारंपरिक शराब बनाती थी। घर पर ही एक्सट्रैक्शन, फर्मेंटेशन और डिस्टिलेशन का काम होता था। इसे अवैध नहीं माना जाता था क्योंकि उस क्षेत्र में यह बहुत आम बात है। ब्लॉक के लोग वाइन और चखना (स्नैक्स) लेने के लिए हमारी झोपड़ी में आते थे। ग्राहकों को खुश रखना माई की जिम्मेदारी थी। इसलिए अगर मैं रोया करता तो माई मुझे एक चम्मच शराब पिलाकर सुला देती थी।”

एक औसत दिन में उनका परिवार 100 रुपये कमा लेता था। इसे वह अपने रोजमर्रा के सामान, शराब बनाने और शिक्षा पर खर्च करती थीं। राजेंद्र और उनकी बहन ने उसी गाँव के जिला परिषद स्कूल में पढ़ाई की, जबकि उनके भाई ने एक स्थानीय आदिवासी स्कूल में पढ़ाई की।

राजेंद्र जब पाँचवी कक्षा में थे तब उनके शिक्षकों ने देखा कि वह अन्य बच्चों से काफी बुद्धिमान थे। शिक्षकों ने उनकी माँ को सलाह दी की बच्चे की प्रतिभा को निखारने के लिए उसे अच्छे संस्थान में उच्च शिक्षा दिलानी चाहिए।

वह कहते हैं, “मेरी माँ ने शराब का कारोबार जारी रखा। मेरा दाखिला गाँव से 150 किलोमीटर दूर जवाहर नवोदय विद्यालय में हो गया। इन स्कूलों में ग्रामीण क्षेत्रों के होनहार छात्रों को मुफ्त आवास और स्कूली शिक्षा दी जाती है। घर छोड़ते समय मैं अपनी माई से लिपटकर खूब रोया। लेकिन वह जानती थी कि यह मेरे भविष्य के लिए सबसे अच्छा है और शायद मैं भीI जब मैं छुट्टियों में घर आता, तो मैं उनके काम में हाथ बँटाता था। उन्होंने मुझे कभी शराब बनाने की इजाजत नहीं दी लेकिन मैं ग्राहकों को शराब परोसने का काम करता था।”

राजेंद्र के लिए एक नई शुरुआत

नवोदय स्कूल में दाखिले के बाद राजेंद्र का जीवन बदल गया। यहाँ उन्हें गणित और विज्ञान पढ़ना बहुत अच्छा लगता था। वह हमेशा अच्छा प्रदर्शन करते थे। 10 वीं बोर्ड की परीक्षा में उन्होंने दोनों विषयों में टॉप किया और दो साल बाद 12वीं बोर्ड परीक्षाओं में उन्होंने कक्षा में टॉप किया। इसके चलते उन्हें मेरिट स्कॉलरशिप मिली और मुंबई के सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज में उन्हें प्रवेश मिल गया।

राजेंद्र कहते हैं, “बचपन से मैं एक डॉक्टर बनना चाहता था ताकि मैं दूसरों की मदद कर सकूँ। लेकिन बड़े होने के बाद मुझे लगा कि लोगों की मदद करने के लिए पहले मुझे उन्हें शिक्षित करके बेहतर अवसर प्रदान करना चाहिए। इसके लिए मुझे सिविल सर्वेंट बनना था।”

फिर इस एमबीबीएस छात्र ने यूपीएससी परीक्षा के लिए पढ़ाई शुरू करने का फैसला किया। यह कोई आसान काम नहीं था, लेकिन राजेंद्र ने इसे कर दिखाया। उन्होंने अपना डेली रूटीन बनाया और काफी मेहनत की। वह सुबह 5 बजे उठने के बाद एक्सरसाइज और मेडिटेशन करते थे। इसके बाद पढ़ाई करते और क्लास करने जाते थे। वापस आकर वह अधिक से अधिक पढ़ाई करने की कोशिश करते थे।

उस समय को याद करते हुए वह बताते हैं, “मैंने कभी ऐसा कुछ नहीं किया जो एक सामान्य कॉलेज के छात्र करते हैं। मैंने कोई आउटिंग, डेटिंग या पार्टी नहीं की। हालाँकि मेरे कुछ दोस्त मुझे अपने साथ बाहर जाने के लिए कहते थे लेकिन मुझे अपने और दूसरों के भविष्य को बदलने पर फोकस करना था। इसलिए, मुझे उनके साथ न जाने का कभी अफसोस नहीं हुआ।”

मेडिसिन के फाइनल ईयर में एमबीबीएस परीक्षा के साथ उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा भी दी और पहले ही प्रयास में ही उन्हें सफलता मिल गई। यूपीएससी का रिजल्ट आने के बाद डॉ राजेंद्र अपने गाँव में आ गए और उनकी माँ को पता नहीं था कि उनका बेटा अब एक सिविल ऑफिसर बन चुका है।

“जब तक मेरा रिजल्ट नहीं आया था, मेरी माँ समझती थी कि उसका बेटा एक डॉक्टर है। जब मैंने उसे बताया कि मैं एक कलेक्टर बनने जा रहा हूँ, तो उसे इसका मतलब नहीं समझ में आया। दरअसल, गाँव में कोई नहीं जानता था कि कलेक्टर किसे कहते हैं। जब लोगों को पता चला कि मैंने सिविल सेवा परीक्षा को क्लियर कर लिया है तो मेरे पड़ोसियों ने घर आकर मुझे ‘कंडक्टर’ बनने की बधाई दी,” वह मुस्कुराते हुए कहते हैं।
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https://hindi.thebetterindia.com/48149/maharashtra-ias-and-doctor-rajendra-bharud-raised-by-a-single-mom-upsc-success-story/
स्त्रोत : द बेटर इंडिया

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