1957 में आकाशवाणी की विविध भारती सेवा के प्रसारणों की शुरुआत मुम्बई और चेन्नई केन्द्रों से किया गया था ।उसके बनने और संवरने में पंडित नरेन्द्र शर्मा का अहम योगदान रहा ।तत्कालीन महानिदेशक गिरिजा कुमार माथुर और उनके प्रयासों ने विविध भारती की पंचरंगी सेवा में विविध रंग भरे ।पुराने लोगों को याद होगा कि विविध भारती पर मन्ना डे की आवाज़ में बजा पहला गीत पं0नरेन्द्र शर्मा का लिखा और अनिल विश्वास का संगीतबद्ध किया "प्रसार गीत "था जिसके बोल थे -'नाच मयूरा नाच'..!धीरे धीरे विविध भारती के बहु आयामी कार्यक्रमों की लोकप्रियता परवान चढ़ने लगी ।विविध भारती को विश्व का पहला ऐसा रेडियो चैनल बनने का सौभाग्य मिला जिसने अपने देश की सरहद के फौजी भाइयों के लिए एक ख़ास कार्यक्रम शुरु किया-"जयमाला "।पहला "जयमाला "कार्यक्रम पेश किया था अभिनेत्री नरगिस ने ।इसके बाद आशा पारीख,मालासिन्हा,वहीदा रहमान,हेमा मालिनी,सहित अनेक फिल्मी सितारे इसे पेश करने आए ।प्राइवेट एफ0एम0आने से एकबारगी को लगा कि विविध भारती कहीं इस दौड़ में पीछे न रह जाय किन्तु इसकी सेवाएं जबसे एफ0एम0पर उपलब्ध हुई हैं तबसे इसनेअपनी लोकप्रियता बरकरार रखते हुए युवा श्रोताओं को भी तेजी से अपनी ओर आकृष्ट कर लिया है ।
इस सेवा के फ़रमायशी कार्यक्रमों में प्राय: सबसे ज्यादा जिस स्थान से फ़रमाइशें आती रही हैं उस जगह का नाम है झुमरी तलैय्या ।आप सभी की तरह जब हम भी इस नाम को सुनते तो किंचित आश्चर्य में पड़ जाया करते थेे कि क्या वाकई इस नाम की कोई जगह है ?जितने भी गीत बजते झुमरी तलैय्या के किसी श्रोता का नाम ज़रुर होता था ।इसलिए विविध भारती के संग साथ झूम उठे इस झुमरी तलैय्या की वास्तविकता भी जाननी ज़रुरी थी ।सो प्रयास करने पर पता लगा कि वास्तव में झारखंड के कोडरमा जिले में एक छोटे से कस्बे का नाम है झुमरी तलैय्या ।आबादी लगभग 70हजार के आसपास ।लगभग हर युवा विविध भारती का दीवाना ।उनका रेडियो प्रेम इतना ज्यादा है कि उनमें इस बात को लेकर हमेशा प्रतिस्पर्द्धा बनी रहती थी कि किसका नाम सबसे ज्यादा रेडियो पर आएगा ।और तो और फिल्मी दुनिया भी इस जगह के लोगों की रेडियो के प्रति इस दीवानगी से हतप्रभ थी और शायद इसीलिए एक फिल्म "मोन्टो"में एक गीत डाला गया- "मैं तो झुमरी तलैय्या से आया हूं ।"
सचमुच अब जबकि मोबाइल एप्प के माध्यम से भी हम आकाशवाणी के कार्यक्रमों को सुनने की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं यह ज़रुरी है कि प्रसारण परिवार के अपने दादा -परदादाओं द्वारा स्थापित शालीन परम्पराओं को प्राथमिकता दी जाय ।पोते के मोबाइल में दादा-परदादा का विविध भारती ही नहीं बजे बल्कि उनके द्वारा सिखाई गई पारिवारिक और सामाजिक शुचिता और शालीनता की सीख भी असरकारी ढंग से हम सबकी दिनचर्या का अंग बने ,यही कामना है ।
ब्लाग रिपोर्टर - श्री. प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी,लखनऊ ।मोबाइल 9839229128
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