Quantcast
Channel: Prasar Bharati Parivar
Viewing all articles
Browse latest Browse all 9466

शहर का ऐशो-आराम छोड़, गाँव में खोला लड़कियों के लिए ‘कृषि स्कूल’!

$
0
0

जब भी हम स्कूल का नाम लेते हैं, हमारे मन में बड़ी-सी बिल्डिंग, क्लासरूम, ब्लैकबोर्ड आदि की छवि आती है। हमने हमेशा स्कूल को बड़ी चारदीवारी के भीतर चंद कक्षाओं से ही समझा है। ऐसे में, कोई हमसे ऐसे स्कूल का जिक्र करे जहां न चारदीवारी है और न ही कक्षाएं, फिर भी बच्चे हिंदी, गणित जैसे विषयों के साथ खेती के गुर भी सीखते हैं तो शायद ही हमें यकीन हो। लेकिन एक स्कूल है जहाँ बच्चे पढ़ाई करते हुए फल-सब्ज़ियाँ उगाते हैं, पशुपालन करते हैं और उन्होंने एक बीज बैंक भी बनाया है।

जी हाँ, यह स्कूल है ‘द गुड हार्वेस्ट स्कूल।’ उत्तर-प्रदेश में उन्नाव जिले के पश्चिम गाँव में स्थित यह स्कूल कृषि आधारित स्कूल है। सबसे अच्छी बात यह है कि भारत का शायद यह पहला कृषि स्कूल है जो सिर्फ लड़कियों के लिए है।

साल 2016 में लखनऊ के रहनेवाले एक दंपति, अनीश और अशिता ने इस स्कूल की नींव रखी। दिल्ली में लगभग 8 साल रहने के बाद इन दोनों पति-पत्नी ने लखनऊ वापस लौटने का फैसला किया।

“अनीश हमेशा से कृषि से जुड़ा कुछ करना चाहते थे इसलिए जब उन्होंने लखनऊ लौटने का फैसला किया तो मैंने साथ दिया। क्योंकि मैं खुद भी उस भागदौड़ भरी ज़िंदगी से निकलना चाहती थी, जहाँ हम दोनों के पास एक-दूसरे को देने के लिए पर्याप्त वक़्त भी नहीं होता था,” द बेटर इंडिया से बात करते हुए अशिता ने बताया।

नौकरी छोड़ शुरू की किसानी

साल 2013 में लखनऊ वापस लौटकर उन्होंने उन्नाव के गाँव में एक ज़मीन खरीदी। यहाँ पर अनीश खेती करना चाहते थे ताकि खुद अपने घर के लिए दाल, अनाज, सब्ज़ियाँ आदि उगाएं। अनीश बताते हैं कि उनके घर में कोई भी खेती से जुड़ा नहीं रहा, लेकिन देश- विदेश की यात्राओं के दौरान वह बहुत से ऐसे लोगों से मिले जो खेती कर रहे हैं। इन लोगों से उन्हें भी एक ऐसा जीवन जीने की प्रेरणा मिली जिसमें मेहनत भले ही है लेकिन सुकून भी है।

अशिता ने लखनऊ के एक स्कूल में पढ़ाना शुरू किया और अनीश ने किसानों के साथ काम करना। धीरे-धीरे उन्होंने इस इलाके के किसानों की समस्याओं को समझा और सुलझाने की कोशिश की। “सबसे बड़ी परेशानी यह है कि किसान बदलना ही नहीं चाहते। उन्हें कुछ नया नहीं सीखना है और न ही करना है। वह जो कर रहे हैं उसी में रहना चाहते हैं। तीन साल तक मैंने बहुत कोशिश की, उन्हें कृषि विज्ञान केंद्र से जोड़ा, नयी-नयी तकनीकों के बारे में समझाया, लेकिन सब व्यर्थ,” अनीश ने आगे बताया।

अनीश को समझ में आ गया कि गलती उन किसानों की नहीं बल्कि उनकी नींव की है। उन्हें कभी भी कुछ नया करने की, रिस्क लेने की शिक्षा ही नहीं मिली क्योंकि हमारे यहाँ खेती के बारे में स्कूलों में नहीं पढ़ाया जाता है।

अशिता कहती हैं कि अनीश की सबसे अच्छी बात यह है कि वह हार नहीं मानते बल्कि परिस्थितियों के हिसाब से अपने फैसले तय करते हैं। यहाँ भी उन्होंने कुछ ऐसा ही किया।

“हम वर्तमान पीढ़ी को नहीं बदल सकते थे, इसलिए हमने आने वाली पीढ़ी को संवारने की ठानी। हम उन किसानों को तो नहीं समझा पा रहे थे, लेकिन सोचा कि अगर इनके बच्चों को अभी से शिक्षा से जोड़ा जाए, तो आने वाला कल ज़रूर बदलेगा। इसलिए हमने एक ऐसा स्कूल शुरू करने का निर्णय किया जहां बच्चों को नियमित विषयों की ही तरह कृषि भी पढ़ाई जाएगी,” अनीश ने कहा।

 द गुड हार्वेस्ट स्कूल 

अनीश और अशिता के पास बहुत सीमित साधन थे और इसलिए उन्हें अपना हर कदन बहुत सोच-समझकर लेना था। गाँव की परिस्थितियों को भली-भांति समझकर उन्होंने फैसला किया कि उनका स्कूल सिर्फ लड़कियों का होगा। लड़कों को पढ़ाने के लिए तो हर एक परिवार तत्पर रहता है, लेकिन लड़कियों की बात आते ही सब सोच में पड़ जाते हैं।

उनके स्कूल की शुरुआत सिर्फ 6 लड़कियों से हुई। उनका स्कूल किसी पारम्परिक स्कूल जैसा नहीं था बल्कि जिस ज़मीन पर अनीश पिछले तीन-चार साल से काम कर रहे थे वहीं पर उन्होंने यह शुरू किया। बच्चों के लिए करिकुलम अशिता ने बनाया जिसमें हिंदी,अंग्रेजी, गणित जैसे विषयों के साथ कृषि से जुड़ी तकनीकें और एक सस्टेनेबल ज़िंदगी जीने के स्किल आदि शामिल थे।

पहले साल में ये दोनों हर रोज़ बाइक से जाकर बच्चों को पढ़ाते और वापस आते थे। दूसरे साल से जब बच्चों की संख्या बढ़ने लगी और गाँव के लोगों का विश्वास भी उन पर बन गया, तब उन्होंने खुद गाँव में रहने का फैसला किया। यह निर्णय बिल्कुल भी आसान नहीं था क्योंकि उन्हें अपनी दोनों बच्चियों के बारे में भी सोचना था।

“घरवाले बिल्कुल तैयार नहीं थे क्योंकि उन्हें हमारी बेटियों की चिंता थी जो उस समय कुछ महीनों की ही थीं। लेकिन हमने ठान लिया था कि हमें यह करना ही है और बस फिर हम शिफ्ट हो गए। हमारी ज़मीन पर बने घर में जो दो-तीन कमरे थे, उसी को हमने अपने घर और स्कूल दोनों का रूप दिया,” अनीश ने बताया।

आज लगभग 3 साल बाद, उनके पास 45 लड़कियां पढ़ रही हैं और अब तीन शिक्षक भी उनके टीम में शामिल हो चुके हैं। देश-विदेश से लोग उनके पास वॉलंटियरिंग के लिए आते हैं।

अशिता बताती हैं कि उनका स्कूल किसी पारम्परिक तरीके से नहीं चलता। छात्राओं को उनकी उम्र या फिर कक्षा के आधार पर नहीं, बल्कि वे कितने समय में कितना कुछ समझ पा रही हैं, इस आधार पर समूहों में बांटा जाता है। उनके स्कूल में 4 साल से लेकर 14- 15 साल तक की लड़कियां हैं।

इन सभी लड़कियों को खेती के अलग-अलग गुर, तकनीक आदि सिखाई जाती हैं और वे सभी मिलकर यहाँ खेती भी करती हैं। पिछले साल उन्हें कृषि विज्ञान केंद्र से मशरूम उगाने की ट्रेनिंग दिलाई गयी और अब वे सभी मिलकर मशरूम उगाती हैं।

सिर्फ मशरूम ही नहीं, अनीश के मुताबिक उनकी छात्राएं, सभी तरह की सब्जियां जैसे बैंगन, मिर्च, लौकी, मूली, भिन्डी आदि के साथ हरी गोभी, पर्पल गोभी जैसी दुर्लभ प्रजातियाँ भी उगा रही हैं!

अनीश और अशिता इन बच्चियों को सिर्फ पढ़ा ही नहीं रहे हैं बल्कि इन्हें इनके घर से लाने-ले जाने की ज़िम्मेदारी भी वही लेते हैं। इसके अलावा, तीनों शिक्षकों और समय-समय पर आने वाले वॉलंटियर्स के रहने-खाने का इंतजाम भी वे ही करते हैं।

उन्होंने एक कमरे को अपना बेडरूम बनाया हुआ है और दूसरे कमरे को हॉस्टल के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। अपने बेडरूम में ही उन्होंने बच्चों के लिए एक छोटी-सी लाइब्रेरी भी बनाई है। बच्चों की क्लास बहुत बार एक शेड के नीचे या फिर खुले आसमान में पेड़ों के नीचे होती है।

चुनौतियाँ और प्रेरणा

‘द गुड हार्वेस्ट स्कूल’ के बारे में जो भी सुनता है वह अनीश और अशिता की सराहना किए बिना नहीं रह पाता। इस मुकाम तक पहुँचने के लिए उन्होंने बहुत-सी चुनौतियों का सामना भी किया है और आज भी वे हर दिन एक नयी परेशानी से जूझते हुए आगे बढ़ रहे हैं।

“फंडिंग के नाम पर हमारे पास ज़्यादा कुछ नहीं था बस अपनी कुछ बचत और कुछ हमने क्राउडफंडिंग से जुटाया। हम कोशिश करते हैं कि कम से कम साधनों में बसर करें ताकि एक सस्टेनेबल मॉडल अपने बच्चों को दे पाएं,” उन्होंने बताया।

इसके अलावा, गाँव में जातिवाद के नाम पर भेद-भाव भी बहुत बड़ी समस्या है। जिसे एक-दो सालों में खत्म नहीं किया जा सकता बल्कि एक पूरी पीढ़ी को हमें इससे बाहर निकलने के लिए शिक्षित करना होगा। अनीश और अशिता शिक्षा के ज़रिए अपनी कोशिशों में लगे हुए हैं।

“चुनौतियाँ बहुत हैं, कई बार लगता है कि अब कैसे मैनेज होगा लेकिन हम कुछ भी यह सोचकर शुरू नहीं करते कि फंडिंग कैसे होगी। हम बस अपने लक्ष्य पर भरोसा करके शुरू कर देते हैं और यकीन मानिये कहीं न कहीं से मदद मिल ही जाती है। हमारे बच्चों का हम भरोसा और दुनिया के कोने-कोने से लोगों का काम करने के लिए हमारे पास आना- हमारी सबसे बड़ी प्रेरणा हैं और इसलिए हम कभी हार नहीं मानते।”

इसके अलावा, अनीश और अशिता, खुद एक-दूसरे की ताकत हैं, एक-दूजे के सच्चे साथी। अशिता कहती हैं कि दिल्ली छोड़ना या फिर लखनऊ छोड़कर गाँव आना, बहुत मुश्किल फैसले थे। उन्होंने हमेशा अनीश पर विश्वास किया और उनका साथ दिया और आज उन्हें गर्व है कि वे समाज के लिए, इस देश के लिए कुछ कर पा रहे हैं!

अपनी ज़िंदगी सुकून और सादगी से जीते हुए, यह दंपति और भी बहुत-सी ज़िंदगियाँ बदल रहा है। हम बस यही कहेंगे कि अनीश और अशिता एक दूजे के सच्चे हमराही हैं, जो हर कदम पर एक-दूसरे के साथ है!

स्त्रोत : द  बेटर इंडिया 

Viewing all articles
Browse latest Browse all 9466

Trending Articles