......मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के सोहागपुर में ग्राम कूकरा की आदिवासी महिला पंच राममुनिया बाई ने अपना पक्का घर स्कूल चलाने के लिए दे दिया है, जिसके बाद से वो खुद एक झोपड़ी में रह रही है। ग्राम कूकरा का विस्थापन होने के बाद गांव के बच्चों के लिए स्कूल की इमारत नहीं बची थी। ऐसे में उनका स्कूल एक टेंट में लगाया जा रहा था। इस दौरान राममुनिया बाई एक झोपड़ी बनाकर रह रही थी।
बच्चों की स्थिति को देखते हुए राममुनिया ने अपनी झोपड़ी स्कूल चलाने के लिए दे दी। थोड़े समय बाद महिला का पक्का मकान बनकर तैयार हो गया, लेकिन स्कूल की बिल्डिंग का निर्माण कार्य अभी भी अधूरा है। गांव के बच्चों की पढ़ाई रुके ना और उन्हें किसी तरह की असुविधा न हो, इसके लिए राममुनिया ने अपना पक्का मकान स्कूल को देने का फैसला किया। जब तक स्कूल की बिल्डिंग बनकर तैयार नहीं हो जाती है, तब तक इसी घर में स्कूल लगाया जाएगा।
पक्का मकान स्कूल को देने के बाद अब राममुनिया बाई खुद झोपड़ी में रहने चली गई है। इस बात के लिए महिला पंच को कोई पछतावा नहीं है, बल्कि वो ऐसा करके खुश है। महिला पंच की मानें तो वो पारिवारिक स्थिति के कारण खुद पहली कक्षा तक ही पढ़ पाई थी, जिसका उसे अभी तक मलाल है। वो नहीं चाहती की ऐसा उनके गांव के किसी बच्चे के साथ भी हो, इसलिए उसने अपना मकान स्कूल को दे दिया।.............
Source Credit and full story : http://www.bhopalsamachar.com/2016/07/blog-post_993.html?m=1
बच्चों की स्थिति को देखते हुए राममुनिया ने अपनी झोपड़ी स्कूल चलाने के लिए दे दी। थोड़े समय बाद महिला का पक्का मकान बनकर तैयार हो गया, लेकिन स्कूल की बिल्डिंग का निर्माण कार्य अभी भी अधूरा है। गांव के बच्चों की पढ़ाई रुके ना और उन्हें किसी तरह की असुविधा न हो, इसके लिए राममुनिया ने अपना पक्का मकान स्कूल को देने का फैसला किया। जब तक स्कूल की बिल्डिंग बनकर तैयार नहीं हो जाती है, तब तक इसी घर में स्कूल लगाया जाएगा।
पक्का मकान स्कूल को देने के बाद अब राममुनिया बाई खुद झोपड़ी में रहने चली गई है। इस बात के लिए महिला पंच को कोई पछतावा नहीं है, बल्कि वो ऐसा करके खुश है। महिला पंच की मानें तो वो पारिवारिक स्थिति के कारण खुद पहली कक्षा तक ही पढ़ पाई थी, जिसका उसे अभी तक मलाल है। वो नहीं चाहती की ऐसा उनके गांव के किसी बच्चे के साथ भी हो, इसलिए उसने अपना मकान स्कूल को दे दिया।.............
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