पचास का दशक…मैं उस दिन अपने मित्र के साथ जेलरोड पर एक भोजनालय में बैठा क्रिश्चियन कॉलेज के स्नेह सम्मेलन में होने वाले मेरे नाटक के संवादों की रिहर्सल कर रहा था। पीछे से एक सज्जन आए और बोले इंदौर में आकाशवाणी केंद्र की शुरुआत हो रही है। आप जैसी आवाज़ों की ज़रूरत पड़ेगी हमें। कल मालवा हाउस आ जाइए और अर्ज़ी दे दीजिए। ये सज्जन थे आकाशवाणी महानिदेशालय के उच्च पद तक पहुंचे मालवीमना डॉ. श्याम परमार। उनके बुलावे के बाद मेरा पहला नाटक ‘भर्तृहरि-पिंगला’ मराठी फ़िल्मों और नाटकों की ख़्यात अभिनेत्री सुमन धर्माधिकारी के साथ प्रसारित हुआ। 45 मिनट का यह प्रसारण लाइव करना पड़ा क्योंकि तब तक रिकॉर्डिंग मशीनें इंदौर नहीं पहुंच पाई थीं।
मालवा हाउस के नाटकों को देशव्यापी लोकप्रियता मिली जिसके लिए स्वतंत्रकुमार ओझा, भारतर| भार्गव और प्रभु जोशी जैसे प्रसारणकर्ताओं का अवदान भुलाया नहीं जा सकता। रेडियो नाटकों की जान होती है स्क्रिप्ट जिनमें डॉ.रनवीर सक्सेना, लीला रूपायन, अमीक़ हनफ़ी जैसे कलाकारों की क़लम का जादू झरता था। मुझे स्वतंकुमार ओझा, इंदु आनंद, कुंजबाला सहगल, निर्मला दाणी, कैलाश सुरेका, सुधारानी गुप्ता जैसे कलाकारों के साथ बहुतेरे नाटकों में काम करने का मौ़क़ा मिला। रवीन्द्रनाथ टैगोर से लेकर चार्ल्स डिकेंस, मोपासां से लेकर काफ़्का, प्रेमचंद से लेकर मुद्राराक्षस और मुक्तिबोध जैसे नामचीन रचनाकारों के नाट्य रूपांतर आकाशवाणी इंदौर से प्रसारित हुए। परिणिता से लेकर नमक का दरोगा, स्वप्न वासवदत्ता से लेकर खामोश अदालत जारी है, ऑलिवर ट्विस्ट, से लेकर द लास्ट लीफ़ जैसे कथानकों को श्रोताओं की बहुत सराहना मिली। उन दिनों श्रोता अपने पत्र भेजकर नाटकों की फ़रमाइश किया करते थे।........
श्री. नरहरी पटेल.
श्री. नरहरी पटेल.
Credit :- Facebook account of Shri. Zavendra Kumar Dhruva.