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लोकगीतों और लोकगाथाओं के संरक्षण पर आकाशवाणी की दो दिवसीय कार्यशाला ।

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आकाशवाणी महानिदेशालय के तत्वावधान में पिछले पाँच वर्षों से देश के विभिन्न अंचलों में लोकगीतों और लोकगाथाओं के संरक्षण की एक महापरियोजना कार्य कर रही है। इसी महापरियोजना की उपलब्धियों और चुनौतियों को जानने समझने के लिए दिनांक 09 एवं 10 अक्तूबर को ग्वालियर के एक होटल में एक कार्यशाला सह समीक्षा बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक में उ.प्र., उत्तराखण्ड, म.प्र., छत्तीसगढ के लगभग 30 कार्यक्रम अधिकारियों के साथ आकाशवाणी महानिदेशालय, नई दिल्ली से अपर महानिदेशक डाॅ. शैलेन्द्र कुमार, लोकसंपदा संरक्षण महापरियोजना के राष्ट्रीय समन्वयक सोमदत्त शर्मा, लोकसंपदा प्रकोष्ठ के एसोसिएट डाॅ0 के.सी. पाण्डे उपस्थित थे। इस कार्यशाला सह समीक्षा बैठक का प्रारम्भ आगरा से आयी और ब्रज लोक संस्कृति की विशेषज्ञ डाॅ. शशि प्रभा जैन के वक्तव्य से हुआ। डाॅ. जैन ने लोकसंस्कृति के विकास में महिलाओं की भूमिका पर चर्चा करते हुए कहा कि भारत में लोकसंस्कृति का संरक्षण महिलाओं द्वारा बड़े पैमाने पर किया जाता रहा है, इसलिए लोकसंस्कृति हमेशा संरक्षित रही है। महिलाओं के द्वारा भक्ति परक गीत, श्रम गीत से लेकर विवाह गीत, ऋतुओं से जुड़े गीत गाने की एक अनवरत परम्परा रही है। उन्होनें वर्तमान समय में लोकसंस्कृति के लगातार खत्म होते जाने पर चिंता व्यक्त की और इसके संरक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया। बैठक में बुन्देली संस्कृति के विशेषज्ञ डाॅ0 के.बी.एल पाण्डे ने लोकसंस्कृति के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि लोक बहुत ही लचीला होता है। उसके उपादान अलग होते हैं। लोक जब कला गढ़ रहा होता है तो वह कला जीवन की उपयोगिता से जुड़ी होती है। उन्होनें आगे बताया कि लोकसंस्कृति का एक और पक्ष सामूहिकता है। उन्होनें कहा कि वर्तमान में हम सामूहिकता से व्यक्तिवाद की तरफ जा रहे हैं। इसके लिए उन्होनें पूँजी परक संस्कृति को उत्तरदायी ठहराते हुए कहा कि पूँजीपरक संस्कृति ने जनता को लोक से विमुख किया है।

कार्यशाला में महापरियोजना के राष्ट्रीय समन्वयक श्री सोम दत्त शर्मा ने परियोजना के दृष्टिकोण पर प्रकाश डालते हुए बताया कि ‘‘ आकाशवाणी लोकसंपदा संरक्षण महापरियोजना’’ एक अत्यंत महत्वाकांक्षी परियोजना है। इस परियोजना के माध्यम से देश के छः लाख गाँवों की छः हजार जातियों और 162 भाषा-बोलियों के मध्य प्रचलित संस्कार गीत, लोकगाथाओं और अन्य अवसरों पर गाये जाने वाले गीतों की रिकाॅर्डिंग करने का प्रस्ताव है। फिर इन गीतों को संरक्षित करने के साथ ही इन्हें यू-ट्यूब के माध्यम से जनता को उपलब्ध करवाया जायेगा। परियोजना के एसोसिएट डाॅ0 के.सी. पाण्डे ने परियोजना की कार्यप्रणाली से जुड़े विभिन्न तकनीकी पक्षों से प्रतिभागियों को अवगत कराया। आकाशवाणी के अपर महानिदेशक डाॅ0 शैलेन्द्र कुमार ने ग्वालियर शहर और संगीत के रिश्ते का उल्लेख किया। उन्होने बताया कि प्रसार भारती और आकाशवाणी महानिदेशालय इस परियोजना के प्रति बहुत गम्भीर है और विगत पाँच वर्षों में देश के बड़े हिस्से में इस परियोजना के अन्तर्गत रिकाॅर्डिंग की जा चुकी है।

इस कार्यशाला सह समीक्षा बैठक के दूसरे और अंतिम दिन परियोजना से जुड़े, आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से आये प्रतिभागियों ने परियोजना के दौरान हासिल अनुभवों को साझा किया। कई प्रतिभागियों ने बताया कि दूर-दराज के गाँव में भी लोक रेडियों बहुत चाव से सुनते है और जब भी उनके मध्य रिकाॅर्डिंग के लिये आकाशवाणी की टीम पहुँची, ग्रामीणों ने भरपूर सहयोग प्रदान किया। कार्यशाला सहसमीक्षा बैठक के प्रथम दिवस कार्यक्रम का संचालन आकाशवाणी ग्वालियर की वरिष्ठ उद्घोषणा कल्पना प्रदीप ने किया दो दिवसीय बैठक के अंत में सभी अतिथियों को धन्यवाद आकाशवाणी ग्वालियर के कार्यक्रम प्रमुख श्री बी.एस. पुजारी ने ज्ञापित किया।

द्वारा योगदान :- श्री. प्रतुल जोशी,pratul.air@gmail.com.

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