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असम के बांस से बनी बांसुरी से लोकगीतों में प्राण फूंक रहे गंधर्व

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हिमाचल प्रदेश के जाने-माने बांसुरीवादक असम से लाए गए बांस से बनी बांसुरी से लोकगीतों में प्राण फूंक रहे हैं। गंधर्व हिमाचल के तमाम चर्चित लोकगायकों के साथ बांसुरी बजा चुके हैं। आकाशवाणी शिमला से आने वाले अधिकतर लोकगीतों में उन्हीं की बांसुरी के सुर हैं। लेखराम गंधर्व आकाशवाणी के ए ग्रेड प्राप्त बांसुरीवादक हैं। उनका कहना है कि बांसुरीवादन एक साधना है। एक तरह से बांसुरीवादन से उनका रोजाना का प्राणायाम भी हो जाता है। 

शिमला के ठियोग के धरेच गांव के रहने वाले लेखराम गंधर्व कहते हैं कि उनका स्कूल का समय संघर्ष में बीता। वह 18 किलोमीटर पैदल चलकर शिक्षा ग्रहण करते थे। बांसुरी स्कूल टाइम से बजा रहे हैं। जब पांचवीं या छठी पढ़ते थे तो चेतराम शर्मा सोंग एंड ड्रामा डिविजन में बांसुरीवादक होते थे, ये उनके से गांव से थे। जब भी घर आते थे तो उनसे बांसुरी सीखते थे। उनके दादा रामदास गंधर्व राजा पटियाला के दरबारी गायक थे।

विभाजन से पहले गायक बूटा खां के वह शागिर्द थे। पिता बाला राम आकाशवाणी शिमला में क्लेरियोनेट वादक थे। उन्होंने 1956 में आकाशवाणी में ज्वाइनिंग दी। चाचा पंडित सुंदरलाल गंधर्व से संगीत की विधिवत शिक्षा प्राप्त की। वह भी आकाशवाणी में बांसुरीवादक थे।

बांसुरीवादक की उच्च शिक्षा नजीबाबाद में इनके सान्निध्य में 1982 से 1985 तक ली। गंधर्व कहते हैं कि वह रात को ढाई तीन बजे उठते थे। पूरे दिन में आठ से दस घंटे तक अभ्यास करते थे। बांसुरीवादन के लिए यह जरूरी है। शुरू में आकाशवाणी में चयन हुआ तो बी ग्रेड मिला।

1992 में आकाशवाणी जलगांव में ज्वाइनिंग दी। वहां 1996 तक बांसुरीवादक के पद पर रहे। इसके बाद आकाशवाणी शिमला के लिए तबादला हो गया। यहां भी बांसुरीवादक के पद पर हैं। वह हिमाचल के मशहूर लोकगायकों रोशनी देवी, कृष्ण सिंह ठाकुर, पुष्पलता, हेतराम तनवार, कृष्णलाल सहगल, प्रताप चंद शर्मा, लेखराम शर्मा, शांति बिष्ट, कुलदीप शर्मा, शारदा शर्मा, करनैल राणा, रविकांता कश्यप, गुरशरण भारद्वाज, लहरूराम सांख्यान, कृष्णा शर्मा आदि बांसुरीवादन कर चुके हैं।

वह अलग-अलग स्केल के लिए अलग-अलग बांसुरियों का इस्तेमाल करते हैं। वह लोकसंगीत में छोटी बांसुरी का इस्तेमाल करते हैं। परंपरागत तरीके से आड़ी बांसुरी बजाते हैं। लेखराम गंधर्व के चाचा के बेटे सौभाग्य खुद नई दिल्ली में बांसुरी बनाते हैं। वह असम से आने वाले बांस से बांसुरी बनाते हैं। असम में उगने वाला बांस सीधा होता है और बांसुरीवादन में उपयोगी होता है।

द्वारा अग्रेषित : झावेन्द्र कुमार ध्रुव, jhavendra.dhruw@ gmail.com


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