1953में मेरा जन्म गोरखपुर के एक गांव विश्वनाथपुर(सरया तिवारी )में हुआ था।5-6 साल की उम्र में शहर आना हुआ।पिताजी ने इलाहाबाद से पढ़ाई पूरी करके वकालत शुरु की थी।बचपन याद करता हूं तो अलहदादपुर का वह खपरैल का घर,आंगन में इस छोर से उस छोर तक फैला जालीनुमा एंटिना और उससे कनेक्टेड एक पतला सा तार जो बिजली के रेडियो सेट से जुड़ा था।बचपन की क्या
कहें !जब उस भारी भरकम रेडियो सेट से कार्यक्रम आते तो मन में लगता कि कोई रेडियो में बैठा बोल रहा है ! जब सोकर सुबह उठते तो "वंदनवार"में भजन प्रसारित होते सुनते..और जब सोने जाते तो "हवा महल"..ख़ासतौर से उसकी सिग्नेचर ट्यून तो अब भी ज़ेहन में बसी है ।विविध भारती के सदाबहार गाने छुट्टियों के दिन में सुने जाते थे।जवानों के लिए विशेष "जयमाला"की भी याद आती है जिसे कोई न कोई फिल्मी हस्ती पेश करती थी।अंग्रेजी अच्छी तरह न जानते हुए भी क्रिकेट कमेन्ट्री सुनी जाती थी। उन दिनों आकाशवाणी गोरखपुर एयर पर नहीं था।रेडियो सीलोन से "बिनाका गीतमाला "ज़रूर आता था जिसे बिना व्यतिक्रम सुना भी जाता था।उस हफ्ते कौन सा गीत सरताज होगा इस पर शर्तें भी लगा करती थीं।आकाशवाणी पटना और लखनऊ भी अपना रेडियो पकड़ता था और ख़ासतौर से लोहा सिंह और रमई काका की बतकही बड़ी मज़ेदार हुआ करती थीं।जहां तक मुझे याद है उसके कुछेक साल में ही बड़ी बैटरी वाला इनबिल्ट एंटीना वाला ट्रांजिस्टर भी आ गया था जिसके लिए एंटीना ज़रूरी नहीं था।उसकी बैटरी बहुत बड़ी हुआ करती थी।डिसचार्ज होने पर हमारे खेलने के काम आती थी।कुछेक साल में छोटे ट्रांजिस्टर भी आ गये जो चलते फिरते मनोरंजन के साधन हो गये।बार्बर की दुकान हो या पान की,वे बजते ही रहते थे।शादी में दूल्हा
( बाजा)ट्रांजिस्टर की भी मांग करने लगा था। सायकिल,रिक्शा, खेत,खलिहानों में रेडियो बजने लगे थे । हां,1962के युद्ध के दिनों की भी याद आती है जब सायरन बजते ही घटाटोप अंधेरे में हल्के वाल्यूम में हम सभी परिजन एक साथ बैठकर रेडियो सुना करते थे। युद्ध की ख़बरों का रोमांचक अनुभव आज तक सिहरन पैदा करता है।उन दिनों अद्यतन समाचार पाने का रेडियो ही एकमात्र साधन था।इन संचार साधनों की प्रगति के साथ साथ मैं भी अपनी उम्र के सोपान चढ़ रहा था।उस समय यह नहीं जानता था कि एक दिन मैं भी इसी रेडियो का हिस्सा बनूंगा।एक ऐसा हिस्सा जो जीवन के संग - साथ ताउम्र जुड़ जाय !
समय पंख लगाकर उड़ता रहा और 1970के दशक में आकाशवाणी गोरखपुर से प्रसारण शुरु हुआ।मैं युववाणी के एक वार्ताकार के रुप में जुड़ गया।1975-76 में आकाशवाणी लखनऊ में प्रसारण अधिशासी पदों के लिए साक्षात्कार हुए और चयनित पैनल में मुझे भी शामिल किया गया।वर्ष 1977में मैनें बतौर प्रसारण अधिशासी आकाशवाणी इलाहाबाद में ज्वाइन कर लिया।2013में बतौर कार्यक्रम अधिशासी रिटायर होने के बाद भी किसी न किसी रुप में रेडियो मेरी दिनचर्या का अंग बना हुआ है।आकाशवाणी, बी.बी.सी.,एन.एच.के.वर्ल्ड जापान से किसी न किसी रुप में जुड़ा हूं। रिटायरमेंट के बाद मेरी सुबह अब भी आकाशवाणी लखनऊ की आराधना/मानस गान सुनने से शुरु होती है और देर रात 11बजे के समाचार सुनने के बाद ही नींद अपनी थपकियाँ देते सुलाती हैं।
विश्व रेडियो दिवस पर मैं अपनी भरपूर शुभकामनाएं देता हूं।मेरा अब भी यह मानना है कि सूचना,शिक्षा,मनोरंजन के लिए रेडियो से बेहतर ,तात्कालिक और सुगम साधन अब भी पूरे विश्व में कोई दूसरा नहीं है।जहां तक मानव बस्ती है वहां तक इसकी पहुंच है।
ब्लाग लेखक- प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी, लखनऊ।इमेल;darshgrandpa@gmail.com1953में मेरा जन्म गोरखपुर के एक गांव विश्वनाथपुर(सरया तिवारी )में हुआ था।5-6 साल की उम्र में शहर आना हुआ।पिताजी ने इलाहाबाद से पढ़ाई पूरी करके वकालत शुरु की थी।बचपन याद करता हूं तो अलहदादपुर का वह खपरैल का घर,आंगन में इस छोर से उस छोर तक फैला जालीनुमा एंटिना और उससे कनेक्टेड एक पतला सा तार जो बिजली के रेडियो सेट से जुड़ा था।बचपन की क्या
कहें !जब उस भारी भरकम रेडियो सेट से कार्यक्रम आते तो मन में लगता कि कोई रेडियो में बैठा बोल रहा है ! जब सोकर सुबह उठते तो "वंदनवार"में भजन प्रसारित होते सुनते..और जब सोने जाते तो "हवा महल"..ख़ासतौर से उसकी सिग्नेचर ट्यून तो अब भी ज़ेहन में बसी है ।विविध भारती के सदाबहार गाने छुट्टियों के दिन में सुने जाते थे।जवानों के लिए विशेष "जयमाला"की भी याद आती है जिसे कोई न कोई फिल्मी हस्ती पेश करती थी।अंग्रेजी अच्छी तरह न जानते हुए भी क्रिकेट कमेन्ट्री सुनी जाती थी। उन दिनों आकाशवाणी गोरखपुर एयर पर नहीं था।रेडियो सीलोन से "बिनाका गीतमाला "ज़रूर आता था जिसे बिना व्यतिक्रम सुना भी जाता था।उस हफ्ते कौन सा गीत सरताज होगा इस पर शर्तें भी लगा करती थीं।आकाशवाणी पटना और लखनऊ भी अपना रेडियो पकड़ता था और ख़ासतौर से लोहा सिंह और रमई काका की बतकही बड़ी मज़ेदार हुआ करती थीं।जहां तक मुझे याद है उसके कुछेक साल में ही बड़ी बैटरी वाला इनबिल्ट एंटीना वाला ट्रांजिस्टर भी आ गया था जिसके लिए एंटीना ज़रूरी नहीं था।उसकी बैटरी बहुत बड़ी हुआ करती थी।डिसचार्ज होने पर हमारे खेलने के काम आती थी।कुछेक साल में छोटे ट्रांजिस्टर भी आ गये जो चलते फिरते मनोरंजन के साधन हो गये।बार्बर की दुकान हो या पान की,वे बजते ही रहते थे।शादी में दूल्हा
( बाजा)ट्रांजिस्टर की भी मांग करने लगा था। सायकिल,रिक्शा, खेत,खलिहानों में रेडियो बजने लगे थे । हां,1962के युद्ध के दिनों की भी याद आती है जब सायरन बजते ही घटाटोप अंधेरे में हल्के वाल्यूम में हम सभी परिजन एक साथ बैठकर रेडियो सुना करते थे। युद्ध की ख़बरों का रोमांचक अनुभव आज तक सिहरन पैदा करता है।उन दिनों अद्यतन समाचार पाने का रेडियो ही एकमात्र साधन था।इन संचार साधनों की प्रगति के साथ साथ मैं भी अपनी उम्र के सोपान चढ़ रहा था।उस समय यह नहीं जानता था कि एक दिन मैं भी इसी रेडियो का हिस्सा बनूंगा।एक ऐसा हिस्सा जो जीवन के संग - साथ ताउम्र जुड़ जाय !
समय पंख लगाकर उड़ता रहा और 1970के दशक में आकाशवाणी गोरखपुर से प्रसारण शुरु हुआ।मैं युववाणी के एक वार्ताकार के रुप में जुड़ गया।1975-76 में आकाशवाणी लखनऊ में प्रसारण अधिशासी पदों के लिए साक्षात्कार हुए और चयनित पैनल में मुझे भी शामिल किया गया।वर्ष 1977में मैनें बतौर प्रसारण अधिशासी आकाशवाणी इलाहाबाद में ज्वाइन कर लिया।2013में बतौर कार्यक्रम अधिशासी रिटायर होने के बाद भी किसी न किसी रुप में रेडियो मेरी दिनचर्या का अंग बना हुआ है।आकाशवाणी, बी.बी.सी.,एन.एच.के.वर्ल्ड जापान से किसी न किसी रुप में जुड़ा हूं। रिटायरमेंट के बाद मेरी सुबह अब भी आकाशवाणी लखनऊ की आराधना/मानस गान सुनने से शुरु होती है और देर रात 11बजे के समाचार सुनने के बाद ही नींद अपनी थपकियाँ देते सुलाती हैं।
विश्व रेडियो दिवस पर मैं अपनी भरपूर शुभकामनाएं देता हूं।मेरा अब भी यह मानना है कि सूचना,शिक्षा,मनोरंजन के लिए रेडियो से बेहतर ,तात्कालिक और सुगम साधन अब भी पूरे विश्व में कोई दूसरा नहीं है।जहां तक मानव बस्ती है वहां तक इसकी पहुंच है।
द्वारा योगदान :- प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी, लखनऊ।इमेल;darshgrandpa@gmail.com
द्वारा योगदान :- प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी, लखनऊ।इमेल;darshgrandpa@gmail.com
PB Parivar proposes to celebrate World Radio day by publishing from 1st to 13 Feb 2019, select ideas, views and photographs contributed by it's members to strengthen Radio in our country in a blog series WRD-Special. Please send at pbparivar@gmail.com your views (4 -6 lines) on - Why Radio? What Radio has done? What Radio can do?, Success Stories, Impact or anything you feel special about Radio, with your photo / any other relevant photo for possible publication on PB Parivar Blog www.airddfamily.blogspot.in
You can also mail to us the activities being planned for WRD celebration at your place.
Come. Let's celebrate Radio!