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Remebering our Bosses (KN Yadav, SD) who have left Pleasant Memories of working with them - दीपेन्द्र सिवाच

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'जाना'हर बार सबसे खतरनाक या दुखदायी क्रिया हो ये ज़रूरी नहीं होता।यूँ तो केदार नाथ यादव सर कई बार हमारे बीच से गए और वे बार बार लौटे।लेकिन पिछले दिनों जब उन्होंने अनंत यात्रा के लिए इस नश्वर संसार से प्रयाण किया तो निसंदेह वे हिंदी की ही नहीं हर भाषा की सबसे खतरनाक क्रिया दोहरा रहे थे।

जिन अधिकारियों के साथ मैंने काम किया उनमें वे सबसे सहज और सरल थे।स्वाभाविकता उनका सबसे बड़ा गुण था।दरअसल वे ज़मीन से जुड़े व्यक्ति थे और लोक उनके मन में बसता था।इसी से उनमें एक खास तरह का भदेसपन था और ये भदेसपन उन्हें इतना स्वाभाविक बनाता था।ये इसलिए भी था कि उन्हें अपने भदेसपन पर किसी तरह की कुंठा नहीं थी।वे एकदम मस्तमौला थे।जबरदस्त ठहाके लगाते और खास बलियाटिक भोजपुरी टोन में अंग्रेजी बोलते थे।इस टोन में अंग्रेजी दां लोगों को हास्य का बोध हो सकता था।पर ये एक ऐसा टोन था जिससे आप सिर्फ और सिर्फ मोहब्बत कर सकते थे।

अपनी जीविकोपार्जन के लिए बलिया से पूर्वोत्तर भारत गए।पहले वहां अध्यापन कार्य किया।बाद में फ़ार्म रेडियो ऑफिसर के रूप में आकाशवाणी में आये और कई वर्षों तक कोहिमा केंद्र पर कार्य किया।लगभग 1996-97 में आकाशवाणी इलाहाबादआए सहायक केंद्र निदेशक के रूप में।जल्द ही उनकी पदोन्नति हुई और ओबरा केंद्र के केंद्र निदेशक बने।2000 में वे केंद्र निदेशक के रूप में इलाहाबाद आये और यहीं से 2007 में सेवा निवृत्त हुए।वे यहां से बलिया गए।लेकिन पुनः लौटे।इस बार ज्ञानवाणी के स्टेशन मैनेजर के रूप में। ज्ञानवाणी में 5 साल कार्य किया।अंततः वाराणसी में सेटल हो गए।

आज जब वे नहीं हैं तो अंग्रेजी मिश्रित भोजपुरी में पूर्वोत्तर के प्राकृतिक सौंदर्य से लेकर उग्रवादियों की धन उगाही और सांप चूहे खाने तक के अनगिनत किस्से और बिंदास ठहाके कानों में गूँज रहे हैं।
एक बेहद सरल इंसान को विनम्र श्रद्धांजलि।

Source : दीपेन्द्र सिवाच

Let's Remember our Bosses, who have left pleasant memories of working with them. If you want to share a brief memory, do send the writeup / photo to pbparivar@gmail.com and we will try to post it on PB Parivar Blog www.airddfamily.blogspot.in 

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