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विश्व रेडियो दिवस - वीरान रेगिस्तान में अकेलेपन का हमसफ़र रहा है मनोरंजन का यह साधन

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RATAN SINGH DAVE
BARMER, RAJASTHAN, INDIA

बाड़मेर.बॉर्डर की वीरान जिंदगी। दूर- दूर तक कोई इंसान नजर नहीं आता और न ही मनोरंजन का कोई साधन। तन्हाई काटने लगती है बात करने को भी कोई साथी नहीं। बोर्डर पर रहने वाले, यहां नौकरी करने वाले और सीमावर्ती क्षेत्र की सुरक्षा करने वालों का तब साथी बना रेडियो।
आज के जमाने में भले ही मोबाइल और टी.वी. ने यह स्थान ले लिया हों लेकिन रेडियो की जो यादें रेगिस्तान के जर्रे-जर्रे में रेडियो के जमाने की पीढ़ी के दिल में है उनको छेड़ते ही दिल का तार-तार खिल जाता है।
मिस्टर रेडियो है खुदाबख्श खलीफा
सीमावर्ती खलीफे की बावड़ी के खुदाबख्श खलीफा पर तो रेडियो का जुनून एेसा सवार हुआ है कि उस जैसा रेडियो का दीवाना अद्वितीय ही होगा। दिनरात रेडियो साथ रखता है। सुबह से देर रात तक रेडियो बजता रहता है। हर तीन-चार माह में नया रेडियो खरीदने के साथ ही रेडियो के फरमाइशी कार्यक्रमों में पोस्टकार्ड लिखने का शौक है। प्रतिदिन किसी न किसी स्टेशन पर उसका नाम आ जाता है। आसपास के लोग खुदाबख्श को मिस्टर रेडियो कहकर पुकारते हैै। 45 वर्ष के करीब उम्र है और 18 साल की उम्र से रेडियो उसकी जिंदगी बना हुआ है। प्रबोधक खुदा कहता है कि रेडियो उसके लिए जिंदगी के बराबर है।
फौजी है रेडियो के आज भी शौकीन
सीमावर्ती क्षेत्र में कार्य करने वाले फौजियों के लिए आज भी रेडियो पसंद है। हालांकि मोबाइल की सुविधा ने इसको कम किया है लेकिन सामुहिक रूप से रेडियो सुनने और उस पर डांस करते हुए फौजियों की मस्ती आज भी थार के रेगिस्तान में घुली हुई है। सीमावर्ती चौकियों में मनोरंजन का यह बड़ा साधन है।
बाड़मेर का पहला रेडियो
बाड़मेर शहर में पहला रेडियो स्टेशन रोड़ निवासी भंवरलाल मंगल के घर लाया गया था। 1947 में आजादी का समाचार इसी रेडियो पर सुना गया था और फिर खुशी मनाते हुए वृद्धिचंद जैन की अगुवाई में पूरा दल हनुमानजी का मंदिर होते हुए पीपली बाजार पहुंचा और यहां तिरंगा लहराया। उस दिन से यहां आजाद चौक बना है।
धोधेखां का अलगोजा रेडियो की शान
बाड़मेर के ख्यातिप्राप्त कलाकार धोधेखां का अलगोजा तो यहां रेडियो की शान रहा है। धोधे खां की अलगोजे की आवाज से रेडियो के कई कार्यक्रम शुरु होते थे। धोधे कहते है कि रेडियो के जमाने में तो लोग हमारे दीवाने थे। इसी रेडियो ने तो हम कलाकारों को पहचान दी है और इतने प्रोग्राम होते थे कि प्रतिदिन रेडियो पर कुछ न कुछ बाड़मेर का आ जाता।
इसलिए आज रेडियो दिवस
13 फरवरी 2012 को दुनियांभर में प्रथम विश्व रेडियो दिवस मनाया गया। शिक्षा के प्रसार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सार्वजनिक बहस में रेडियो की भूमिका को रेखांकित करने के लिए यूनेस्को ने यह शुरुआत की। 13 फरवरी 1946 की रेडियो की शुरुआत हुई थी। रेडियो रूस ने 80 साल पहले प्रसारण शुरु किए थे।
याद है रेडियो की बातें
खाड़ी युद्ध का जीवंत प्रसारण तब टी वी पर नहीं था लेकिन रेडियो में जिस तरह प्रस्तुतिकरण होता था पूरा गांव एकत्रित होकर सुनता नजर आता था।
@ लूणकरण बोथरा, भिंयाड़
धीमी गति के समाचार तो हम प्रतिदिन कॉपी में उतार लिया करते थे, ताकि सारे समाचार याद रहे। यह अपने आप में अलग अनुभव था।
@ दुर्गादान चारण, गंूगा
क्रिकेट की कमेंट्री का जो आनंद रेडियो पर आता था वो तो अपने आप में अलग ही रहता था। रेडियो पर जिस उत्साह के साथ कमेंट्री आती उसको गांव में सब कॉपी करते थे।
@ जगदीश सैन, थोब

साभार : पत्रिका, 13 फरवरी 2018>
स्रोत और श्रेय :- श्री. जावेंद्र कुमार ध्रुव जी के फेसबुक अकाउंट से

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