70 और 80 के दशक में आकाशवाणी इन्दौर की लोकप्रिय उद्घोषक रहीं इंदु आनंद अब हमारे बीच नहीं रहीं। लंबे अरसे से थॉयराइड और आईबीएस जैसी बीमारी झेल रहीं इन्दुजी ने 70 साल की उम्र में गणतंत्र दिवस पर सुबह चार बजे कार्डियक अरेस्ट के दौरान इस दुनिया को अलविदा कह दिया। आकाशवाणी इंदौर में 1965 से 1992 तक उद्घोषक के रूप में अपनी सेवाएं देने के बाद उन्होंने स्वास्थ्यगत कारणों से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी।
1956 में मध्यप्रदेश के अस्तित्व में आने के साथ ही इन्दौर में खुला था राज्य का पहला आकाशवाणी केंद्र। सूचना, शिक्षा और मनोरंजन के समन्वित ध्येय वाक्य को आत्मसात कर आकाशवाणी इन्दौर ने जल्द ही समूचे मालवा अंचल में अपनी गहरी पैठ बना ली थी। इसी के चलते रेडियो एनाउंसरों को फ़िल्मी सितारों जैसी लोकप्रियता मिलने लगी थी। आखिर रेडियो पर श्रोताओं को उनके मन-पसंद फ़िल्मी गाने सुनवाने की ख़ास शैली जो होती थी।
आकाशवाणी इन्दौर में अपनी मधुर दिलकश आवाज़ के ज़रिये श्रोताओं के दिलों पर दो-ढाई दशक तक राज करनेवाली इन्दु आनंद आजीवन सहज-सरल बनी रहीं। यही खूबी इंदु आनंद को उनके समकालीन उद्घोषकों से थोडा अलग स्थान भी दिलाती है जिन्होंने रेडियो एनाउंसरों की सितारा हैसियत का भरपूर लुत्फ़ उठाया।
सुरीली आवाज़ की बदौलत उन्हें अपने छात्र जीवन में इन्दौर के क्रिश्चियन कॉलेज में 'वॉइस ऑफ़ लता'अवार्ड से नवाज़ा गया था। इन्दुजी मूलतः महू की रहनेवाली थी। अक्सर उन दिनों महू के लोग ट्रेन से इंदौर आना जाना करते थे। महू-इन्दौर शटल जिसे चलताऊ भाषा में अद्धा भी कहा जाता था, के उस डिब्बे में ज्यादा भीड़ होती थी जिसमे इन्दुजी सफ़र के लिए चढ़तीं। ये लघुतर मिसाल थी- उन दिनों के रेडियो एनाउंसरों की सितारा हैसियत की। तब लोग इंदु आनंद और शारदा साइमन को देखने की हसरत लिए मालवा हाउस के बाहर घण्टों खड़े रहते।
मालवा हाउस के हरे-भरे परिसर में इंदुजी से जुड़ा एक वाकया अक्सर सुनने में आता रहा। एक आदमी बारबार मालवा हाउस आता और सुरक्षाकर्मियों से कहता कि उसे रेडियो पर रोजाना सुनाई देनेवाली आवाज़ (लता मंगेशकर) को देखना है। उसकी इस जिद से परेशान सुरक्षाकर्मियों को अनायास एक दिन राहत तब मिली जब किसीने गेट से गुज़र रहीं इंदु आनंद की ओर इशारे से बताया कि देख लो वो जा रही है यहाँ की सुरीली आवाज़..उसके बाद वो शख्स इत्मीनान से लौट गया।
इन्दुजी ने 1982 में अपने सहकर्मी एनाउंसर संतोष जोशी से प्रेमविवाह किया था। उन दिनों आकाशवाणी इन्दौर के प्रसारण में महिला उद्घोषकों के रूप में इंदु आनंद, शारदा साइमन, सुदेश हिंदुजा, माया श्रीवास्तव वगैरह का बड़ा दबदबा था। बाद में इसी कड़ी में निम्मी माथुर, मधु (पूरा नाम देवेंदरकौर मधु) सहित कई और नाम जुड़े।
इंदु आनंद महज एक रेडियो एनाउंसर ही नहीं थीं; बल्कि एक उम्दा ड्रामा आर्टिस्ट के रूप में भी उन्होंने अपनी छाप छोड़ी। उन्होंने आकाशवाणी के अनेक नाटकों में मर्मस्पर्शी स्वराभिनय किया। भावुकता में बहते हुए इन्दुजी के जीवन साथी संतोष जोशी फ़ोन पर बताते हैं - "चरणजीत के निर्देशन में उन दिनों आकाशवाणी इन्दौर द्वारा स्टेज पर 'लहरें'शीर्षक से नाट्य प्रस्तुतियों का सिलसिला शुरू हुआ.. अधिकांश में इन्दुजी ने मुख्य भूमिकाएं निभाई.. कुछ कड़ियों का लेखन भी किया.. सामने बैठे दर्शकों की तालियों से कलाकारों का मनोबल बढ़ता..बाद में इनकी रिकॉर्डिंग रेडियो पर प्रसारित होतीं और दुबारा फिर मिलती श्रोताओं की दाद..”। रेडियो रूपकों की अभिनव श्रेणी में संदीप श्रोत्रिय की लिखी आकाशवाणी वार्षिक पुरस्कार प्राप्त प्रस्तुति "उस लड़की का नाम क्या है"में इन्दुजी ने मुख्य किरदार बड़े प्रभावी ढंग से निभाया था।
सत्तर का दशक.. युवाओं में युववाणी की लोकप्रियता वाले दौर में रेडियो पर इन्दु आनंद द्वारा प्रस्तुत "मन भावन"कार्यक्रम की दीवानगी का एहसास नाचीज़ के मानस पटल परआज भी अंकित है। अस्सी का दशक.. आकाशवाणी इन्दौर के समाचार विभाग में उन दिनों आजकल की तरह कैजुअल न्यूज़ रीडर नहीं हुआ करते थे। नियमित समाचार वाचकों सर्वश्री संदीप श्रोत्रिय व बाबूराम मरकाम के अवकाश के दौरान एओडी (एनाउंसर ऑन ड्यूटी- सीबीएस) को प्रादेशिक समाचार बुलेटिन पढ़ने की ज़िम्मेदारी सौंपी जाती.. उन दिनों खाकसार द्वारा सम्पादित कुछ प्रादेशिक समाचार बुलेटिन भी इन्दुजी ने बखूबी पढ़े।
नई पीढ़ी के बारे मे तो कहा नहीं जा सकता लेकिन मालवांचल में अपनी और उससे पहले की पीढ़ी के उन लोगों के लिए इंदु आनंद की आवाज़ का सम्मोहन इन्दौर के ऐतिहासिक राजवाडा, गाँधीहॉल से लेकर रीगल चौराहे, पलासिया चौराहे तक.. राजेंद्रनगर से राऊ तक.. फूटी कोठी से सुदामा नगर तक..एक साझा धरोहर की मानिंद है जो सदैव लोकरंजन की मधुर यादों में बसा रहेगा....|