रेडियो के स्वर्णिम काल में आकाशवाणी इन्दौर के सितारा प्रसारक रही तिकडी के अंतिम सदस्य श्री रामचंद्र मण्डलोई यानि कि कान्हा जी भी विगत दिनों दुनिया छोड गए ।1960 से आकाशवाणी इन्दौर से निमाडी कम्पियर के रूप में जुडे कान्हा जी का वास्तविक नाम रामचंद्र मण्डलोई था इन्दौर से लगभग 150 किलोमीटर दूर ग्राम उन जिला खरगोन के निवासी मण्डलोई जी का वास्तविक नाम लगभग सभी लोग भूल चुके थे । सेैकड़ो निमाडी लोकोक्तियों, मुहावरे और कहावतें उन्हें मुंह ज़ुबानी याद थी । कान्हा जी हंसमुख एवं मिलनसार व्यक्तित्व के धनी थे आप अपना कार्यकाल पूर्ण कर 1992 में सेवानिवृत्त हुए कान्हा जी को 2014 में प्रकाशित आकाशवाणी इन्दौर के फोल्डर पर भी स्थान मिला था।
कान्हा जी के नाम से तीन दशकों तक निमाड की गलियॉं शाम को गुलजार हुआ करती थी जब खेती गृहस्थी कार्यक्रम की शुरूआत हुआ करती थी । उस समय इस कार्यक्रम की मशहुर तिकडी नन्दा जी ,भैरा जी और काना जी हुआ करते थे....शाम 7 बजकर 20 मिनट के लगभग बैलों के गले में हिलती घंटियों की मधुर तान और पैरों में बजते घुंघरू की आवाज के साथ ......अरे भाई राम—राम हो नन्दा जी, राम राम हो भैराजी, राम—राम हो कान्हा जी का अभिवादन के बाद हिन्दी, मालवी और निमाडी बोली के समावेश के साथ कार्यक्रम की शुरुआत होती थी तो संपूर्ण मालवा—निमाड के ग्रामीण श्रोताओं में हर्ष का वातावरण हो जाता था और चौपाल पर रेडियो लगाकर कार्यक्रम सुनने की शुरूआत हो जाया करती थी । खेती के साथ घर बार की सामान्य जानकारियों के अलावा मालवी निमाडी लोकगीतों के साथ बडा ही सुहाना वातावरण होता था ।समय के साथ—साथ काल ने पहले भैराजी फिर नंदाजी और अब कानाजी को भी हम से छीन लिया है । इस नश्वर संसार में ये विभूतियॉं तो नहीं है लेकिन श्रोताओं के दिलों में इनकी यादें अमिट हैं ।
पिछले वर्ष मुम्बई ट्रांसफर होने के कुछ समय पूर्व मेरे आग्रह पर तत्कालीन कार्यक्रम प्रमुख श्री शशिकांत व्यास और कार्यक्रम प्रमुख द्वय श्री रमेश भार्गव और राजेश पाठक ने उनका साक्षात्कार रेकार्ड किया था जिसमें मैं स्वयं भी शामिल हुआ था । श्री शशिकांत व्यास जी ने कान्हा जी से भरपूर बात की । कान्हा जी थोडा कम सुनते थे तो उनके कानों में जोर की आवाज से प्रश्न करते हुए एक जीवंत साक्षात्कार हुआ जो अब शायद आकाशवाणी इन्दौर की ऐतिहासिक विरासत में शामिल हो गया होगा ।
उस समय जिस जोश और उमंग से उन्होने लगभग डांटते हुए हमें खाना खा कर जाने को मजबूर किया था और फिर जिस प्यार से दाल—बाटी खिलाई और खुद भी उपर से घी डालते हुए खायी और खिलाई उससे उनके 85 वर्ष के आस—पास होते हुए भी युवाओं वाला जोश नजर आ रहा था । जाते हुए खुद हमें मेन रोड तक छोडने आये और ये वादा भी ले लिया था कि जब भी इधर से गुजरोगे खाना घर ही खाओगे ।
विगत माह मुम्बई से इन्दौर बस से लौटते हुए जब खरगोन से गुजरे तो कान्हा जी की याद आयी सोचा था कि फिर से एक बार मिलने का प्लान करते हैं ।
पर अफसोस कि खरगोन में उन गांव भी है,कान्हा जी का घर भी है । वहॉं दाल बाटी भी मिल जायेगी लेकिन अफसोस कि अब दादाजी वाली प्यार भरी डांट से उस दाल—बाटी पर उपर से घी डालने वाले कान्हा जी नहीं मिल पायेंगे ।
शत—शत नमन...
Blog Report-Praveen Nagdive, ARU, AIR Mumbai.