अनुशासन प्रिय और व्यवहार कुशल पूर्व वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी श्री के० सी० गुप्त !
मेरा यह मानना है कि मनुष्य जीवन में कर्म और भाग्य की बराबर की भागीदारी हुआ करती है ।हम चाहे जितना भी आश्वस्त हुआ करें श्रीमदभगवतगीता के उस कथन पर कि- 'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन'और उसी के अनुसार निष्ठा पूर्वक कर्म भी करते चलें परन्तु भाग्यफल अपने हिसाब से ही सामने आता है ।कभी हम सबके एकदम अनुकूल, कभी सर्वथा प्रतिकूल और कभी संतोषजनक ।हमें विवश होकर अपने सामने आए उस परिणाम को स्वीकार करना ही पड़ता है ।मेरे ऐसे कई वरिष्ठ मित्र हैं जिनका ध्येय शोध ,अध्ययन और अध्यापन था किन्तु बीच में ही उन्हें "बहुजन हिताय बहुजन सुखाय"ने अपनी ओर चुम्बक की तरह आकृष्ट कर लिया और उन्हें अपना रास्ता बदल लेना पड़ा ।उदाहरण स्वरूप कुछ नाम लेना चाहूँगा -डा० करुणा शंकर दुबे, डा० तारिक़ छतारी, डा० जी० आर० सैयद, डा० सतीश कुमार ग्रोवर, श्री के० सी० गुप्त। इनमें से कुछ तो फिर वापस शिक्षक की भूमिका निभाने चले गये और कुछ यहीँ रह गए ।डा० सतीश कुमार ग्रोवर जिनकी आकाशवाणी सेवा की शुरुआत दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान के शोधछात्र के रूप में रहते हुए आकाशवाणी गोरखपुर में आकस्मिक उदघोषक के रूप में हुई और वे पदोन्नति पाते हुए दूरदर्शन के उप महानिदेशक पद से रिटायर हुए और दूसरे श्री के० सी० गुप्त,उन्हीं के सहपाठी हैं जिन्होंने आकाशवाणी गोरखपुर में प्रसारण अधिशासी के रूप में अपनी आकाशवाणी सेवा प्रारंभ की और वनस्पति विज्ञान में शोधछात्र के रूप में पंजीकरण के बावज़ूद उस दिशा में आगे नहीं बढ़ सके और आकाशवाणी के एक बेहद अनुशासन प्रिय और व्यवहार कुशल वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी के रूप में रिटायर हुए ।इन दोनों के व्यक्तित्व में एक शिक्षक के सारे गुण समाहित रहे हैं और इसीलिए इनके सम्पर्क में आनेवाले हर शख्स ने इनसे बहुत कुछ सीखा, समझा और पाया है ।जी हां, इन दो लोगों के लिए इसे आप गोरखपुर की मिट्टी-पानी की मिठास और उसकी खुसूसियत भी कह सकते हैं !
श्री के० सी० गुप्त का जन्म तुलसीपुर, बलरामपुर(उ० प्र०) में एक सभ्रांत परिवार में 2 अक्टूबर 1948 को हुआ था ।इनकी प्रारंभिक तथा इंटरमीडिएट तक की शिक्षा एस० बी० इंटर कालेज तुलसीपुर में हुई ।इन्होंने 1972 में एम० एस० सी०( बाटनी ) की डिग्री दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय से प्राप्त की ।एम० एस० सी० की पढ़ाई के दौरान ही इनकी मित्रता डा० एस० के० ग्रोवर से हो गई ।ऐसा लगता है कि नियति ने इन दोनों को आकाशवाणी में भी एक साथ भेजने की ठान ली थी ।पहले श्री गुप्त का चयन प्रसारण अधिशासी के रूप में वर्ष 1976 में हुआ और आकाशवाणी गोरखपुर में नियुक्त हुए ।हिन्दी, अंग्रेज़ी और उर्दू में समान योग्यता रखने वाले श्री गुप्त की शिक्षा, विज्ञान, स्वास्थ्य और ज्योतिष में बचपन से ही गहन रुचि रहीऔर इसी कारण अपनी लगभग 30वर्षीय प्रसारण यात्रा में अनेक केन्द्रों पर रहते हुए गुणवत्ता परक कार्यक्रम निर्माण के क्षेत्र में इन्होंने यथाशक्ति अपना योगदान दिया ।
श्री गुप्त का एक लम्बे अरसे बाद कार्यक्रम अधिकारी पद पर प्रमोशन हुआ और इस पद पर पहली नियुक्ति आकाशवाणी लखनऊ में हुई ।वहां एक बार फिर इन्हें डा० ग्रोवर का साथ मिला जो उसी अनन्तर में आकाशवाणी गोरखपुर में एक उदघोषक के रूप में रहते हुए यू० पी० एस० सी० से चयनित होकर आकाशवाणी वाराणसी बतौर कार्यक्रम अधिकारी जाकर ज्वाइन कर लिए थे और फिर आकाशवाणी लखनऊ स्थानान्तरण पर आ चुके थे ।कुछ वर्ष बाद पुनः श्री गुप्त आकाशवाणी गोरखपुर स्थानान्तरण पर आये ।इसके बाद कुछ अन्य आकाशवाणी केन्द्रों को अपनी सेवाएं देते हुए वर्ष 2006 में आकाशवाणी गोरखपुर से ही श्री गुप्त सेवानिवृत्त हुए ।
श्री गुप्त की पत्नी श्रीमती प्रतिभा गुप्त भी रंगमंच, आकाशवाणी और दूरदर्शन से नैमित्तिक कलाकार के रूप में जुड़ी रहीं और कई वर्षों तक गोरखपुर के एक प्रतिष्ठित क्रिश्चियन स्कूल में अध्यापन करती रहीं ।इनके परिवार में एक पुत्र अमित शंकर(भारतीय स्टेट बैंक में मैनेजर ),पुत्रवधू नेहा और पुत्री हैं ।पौत्र शमित अपनी बालसुलभ अठखेलियों से पूरे परिवार में खुशनुमा माहौल बनाए रखता है ।रिटायरमेंट के बाद अब भी श्री गुप्त अनेक संगठनों से जुड़कर समाज को अपनी सेवाएँ दे रहे हैं ।मेरी दृष्टि में अगर उन्हें "सेल्फ मेड जीनियस पर्सनालिटी "कहा जाय तो अनुचित नहीं होगा क्योंकि बचपन से ही अनेक विपरीत परिस्थितियों के बावज़ूद श्री गुप्त ने पढ़ाई लिखाई और घर गृहस्थी का दायित्व बड़ी ही कुशलता से सम्पन्न किया है । वे इन दिनों गोरखपुर के श्री गोरखनाथ मंदिर के पास स्थित महावीरपुरम मुहल्ले के अपने स्वनिर्मित भवन में रह रहे हैं और सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं ।उनकी लोकप्रियता का यह सबूत है कि उनके अब भी हजारों की संख्या में फालोवर हैं ।उनका फोन नंबर है09451260971 और आवासीय पता है -432 ,डी, महावीर पुरम, गोरखनाथ, गोरखपुर ।अपनी सादगी और सदभावना के चलते वे अब भी यही कहा करते हैं-
"वाकई जो दिल के बहुत क़रीब होते हैं
वो ही यादों के झरोखे से
ते हुए लमहों को याद रख पाते हैं ! "
श्री गुप्त का सानिध्य मैने भी वर्षों तक पाया है और अब परिस्थितियों वश उनसे भौगोलिक रूप में दूर अवश्य हूँ किन्तु अब भी उन्हें हमेशा अपने दिल के क़रीब पाता हूँ ।उनके साथ सर्वश्री उमाशंकर गुप्त, एन० भद्र, आर० के० प्रसाद,वी० के० श्रीवास्तव, दिनेश कुमार गोस्वामी ,ब्रजेन्द्र नारायण आदि ने भी काम किए हैं ।श्री गुप्त अत्यंत अनुशासन में रहते थे और हल्की फुल्की बातों से परहेज़ रखते थे ।उनके काम करने और लोगों से बातचीत का तरीका कुछ ख़ास था ।चूँकि वे मेरे बड़े भाई प्रोफेसर सतीशचन्द्र त्रिपाठी के सहपाठी भी रहे हैं इसलिए उन्होंने हमेशा मुझे अपना भातृत्व स्नेह दिया है ।एक घटना का जिक्र करना चाहूँगा । उन दिनों जब वे मेरे सीनियर हुआ करते थे और मुझसे लगभग एक साल पहले पदोन्नति पाकर पेक्सेज ट्रेनिंग कोर्स के लिए STI(P)दिल्ली में थे लगभग उन्हीं दिनों में हमारे बैच का बहुप्रतीक्षित D.P.C.का सत्र चल रहा था ।उन्हें इस बाबत जब जानकारी हुई तो तुरंत फोन करके उन्होंने हम दो(मैं और श्री रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव उर्फ जुगानी भाई ) लोगों को इसकी जानकारी दी और सचमुच हमारी C.R.महानिदेशालय तक उस समय तक नहीं पहुंच पाई थी ।हमने अपनी अपनी C.R. भिजवाई और उसी D.P.C.में हम सभी का भी प्रमोशन हो गया ।उनकी इस सदाशयता को हम सभी अभी भी नहीं भूल पाए हैं ।
प्रसार भारती परिवार श्री के० सी० गुप्त के रिटायरमेंट बाद के जीवन में उनके सपरिवार उत्तम स्वास्थ्य की शुभकामनाएं कर रहा है ।
ब्लॉग रिपोर्ट - प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी, लखनऊ; मोबाइल नंबर 9839229128