सामुदायिक रेडियो की अवधारणा आकाशवाणी की रेडियो सेवा को ध्यान में रखकर की गई थी. आकाशवाणी सरकारी तंत्र की सहायता से सूचनाओं का अदान-प्रदान करने के साथ-साथ गीत-संगीत, साक्षात्कार तथा परिचर्चाओं के जरिए जनता से रूबरू होता था और यही एकमात्र सूचना, संगीत और मनोरंजन का साधन था. आकाशवाणी और दूरदर्शन के जरिए दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार की आवाज तो पहुंच जाती थी लेकिन समुदाय की आवाज हमेशा दबकर रह जाती थी. समुदाय को विकास योजनाओं से जोड़ने तथा योजनाओं में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने तथा उनकी प्रमुख आवश्यकताओं को बारे में शासन-प्रशासन अनभिज्ञ रहता था. समय के साथ-साथ ग्रामीण समुदायों के जोड़ने की पहल हुई और पंचायतों को सशक्त बनाने के लिए अधिक अधिकार दिये गये ताकि पंचायतों के जरिए सरकारी योजनाओं का लाभ हर अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे और ऐसा हुआ भी है लेकिन जानकारी एवं साक्षरता के अभाव में कई तबके पीछे छूट गये हैं. समाज के हर अंतिम व्यक्ति तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुँचाने और जागरूक तथा शिक्षित बनाने के उद्देश्यों ने सामुदायिक रेडियो की परिकल्पना को साकार किया है. सामुदायिक रेडियो विशुद्ध रूप से समाज सेवा के मकसद से चलाये जा रहे हैं. यह शैक्षणिक संस्थानों तथा गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा समाज के विभिन्न वर्गों के उत्थान के उद्देश्यों से चलाये जा रहे हैं और इनका सबसे बड़ा प्रभाव यह हुआ है कि यह वंचित समुदायों की सशक्त आवाज बनकर क्षेत्रीय विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. अखबारों, इलैक्ट्रॉनिक चैनलों और कमर्शियल गीत-संगीत एफ.एम. चैनलों की भरमार के बीच लोकप्रिय होते सामुदायिक रेडियो यह साबित करते हैं कि यह वंचित समुदायों और शासन-प्रशासन तथा सरकार के बीच संवाद का सशक्त माध्यम बनकर उभरे हैं.
सामुदायिक रेडियो एक ओर जहां लोगों को जागरुक करने का काम कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ आम लोगों की आवाज बनकर उनकी समस्याओं को शासन-प्रशासन तथा सरकार तक पहुंचाने में मदद कर रहे हैं. यह समुदायों को आपस में जोड़ने तथा सामुदायिक भावना से सामूहिक निर्णय लेने समुदायों को प्रेरित कर रहे हैं. सामुदायिक रेडियो के माध्यम से लोग अपने आसपास घट रही घटनाओं का बारे में जागरूक हो रहे हैं. सहगल फाउंडेशन की संचार निदेशक पूजा ओ. मुरादा का कहना है कि अक्सर देखा गया है कि पारंपरिक मीडिया मसलन टी.वी. और अखबारों में ग्रामीण खबरों, समस्याओं और मुद्दों का अभाव रहता है. ऐसे में हम सामुदायिक रेडियो "अल्फाज़-ए-मेवात"के जरिए ग्रामीण भारत को शहरी भारत से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं. उनका कहना है कि कम्यूनिटी रेडियो के माध्यम से हम मीडिया को ज्यादा लोकतांत्रिक और विकेन्द्रीकृत करने का प्रयास कर रहे हैं. रेडियो पर क्षेत्र की समस्याएँ ही नहीं बल्कि स्थानीय लोगों को अपनी कविताएँ-गीत, पारंपरिक ज्ञान और खासकर लोकगीत गाने और प्रस्तुत करने का मंच भी प्रदान कर रहा है. ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ आज भी में मनोरंजन के नाम पर न तो टीवी है और न ही अखबार वहाँ यह जागरूकता के साथ-साथ ज्ञान-विज्ञान और मनोरंजन का साधन बनकर लोगों के जीवन में बदलाव का द्योतक बन गया है.
नूंह जिले के गांवों में डिजिटल इंडिया के इस दौर में भी 10 प्रतिशत से कम घरों में टेलीविज़न हैं, ऐसे में जो महिलाऐं पढ़ना-लिखना नहीं जानती रेडियो सुनकर सारी जानकारियाँ पाती हैं. पिछले 5 सालों से रेडियो अल्फाज़- ए- मेवात न केवल समुदाय की महिलाओं से जुड़ा है बल्कि समाज के हर वर्ग बच्चों, किशोरों ,किसानों, वृद्धों को विभिन्न रेडियो कार्यकमों के ज़रिये सूचना और जानकारी देकर आत्म- निर्भर बनाने में सहयोग कर रहा है ताकि वे निर्णय लेकर समाज में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकें. रेडियो ने सफलतापूर्वक पांच साल का सफर पूरा कर लिया है और इन पांच सालों में इलाके में सामुदायिक रेडियो से आये बदलाव की झलक साफ दिखाई देती है. आज इंटरनेट रेडियो (जिसे वेब रेडियो, नेट रेडियो, स्ट्रीमिंग रेडियो और ई-रेडियो ) का नया दौर चल रहा है यानि ध्वनि तरंगों के माध्यम से रेडियो का कोई भी चैनल दुनिया में कहीं पर भी सुना जा सकता है. डिजिटल इंडिया के सपने को साकार करने के लिए रेडियो का मोबाइल ऐप भी बनाया गया है और उसे स्टोरी टैलर के माध्यम से श्रोता कहीं पर भी सुन सकते हैं. रेडियो अल्फाज़-ए-मेवात की प्रोग्राम लीडर आरती मनचंदा ग्रोवर बताती हैं कि श्रोता रेडियो पर प्रसारित कार्यक्रमों का संक्षिप्त रूपांतरण ऐप के जरिए अपने मोबाइल पर कहीं भी और कभी भी सुन सकते है. पंचायत की भूमिका, महिलाओं की पंचायतों में भूमिका व टी.बी. की बीमारी का पूरा इलाज करवाने के महत्व पर कार्यक्रमों के अलावा ग्रामीण समुदाय को शिक्षा, चिकित्सा, साफ-सफाई, जल एवं पर्यावरण संरक्षण, आधुनिक खेती, समेत अनेक मुद्दों की सफलता के उदाहरण मोबाइल ऐप पर उपलब्ध कराये गये हैं.”
इस मोबाइल ऐप में बच्चों की शिक्षा, ग्रामीण महिलाओं का सशक्तिकरण जैसे गंभीर मुद्दों को कहानियों के माध्यम से पेश किया गया है ताकि स्कूली बच्चों से लेकर, किशोरियाँ एवं महिलाएं बेहिचक अपनी समस्याओं का निदान पा सकें. डिजिटल इंडिया के दौर में लोग गाँव हो या शहर, घर हो या खेत-खलिहान लोग मोबाइल का प्रयोग फोन करने के साथ–साथ रेडियो सुनने के लिए भी करते हैं, चाहे घर पर या फिर फिर यात्रा कर रहे हों और गांवों में यह सरल व सुलभ साधन है और इसके लिए स्मार्ट फोन की भी जरूरत नहीं है. एफ.एम. तो सभी मोबाइल पर उपलब्ध है.
क्षेत्र की किशोरियों को सशक्त बनाने और उनके सपनों को उड़ान देने के लिए रेडियो अल्फाज़–ए–मेवात, यूनिसेफ और बी बी सी मीडिया एक्शन ने मिलकर नई रेडियो श्रृंखला "फुल ऑन निक्की"की शुरूआत की है. समुदाय को सशक्त और जागरूक बनाने और कार्यक्रमों को जनोपयोगी बनाने के लिए रेडियो में ऐसे कार्यक्रमों को प्रमुखता दी जाती है जिसमें, विशेषज्ञों तथा विभागों के उच्च अधिकारी लाइव चर्चाओं के माध्यम से स्वयं लोगों की समस्याओं का निदान करते हैं और यथोचित सलाह देते हैं. अल्फाज -ए-मेवात के स्टूडियो के मोबाइल नंबर 9813164542 पर कोई भी फ़ोन करके विशेषज्ञों या अधिकारियों से बात करके अपनी समस्याओं का निदान पा सकता है. सामुदायिक रेडियो एस एम सहगल फाउंडेशन (गैर सरकारी संगठन) द्वारा 2012 में नूंह के गाँव घागस में स्थापित किया गया है. रेडियो घाघस से 20 किलोमीटर की परिधि में आने वाले 225 गांवों के ग्रामीणों को रोज विभिन्न सूचनापरक और मनोरंजन कार्यक्रमों का प्रसारण कर जानकारी प्रदान करता है. रेडियो समुदाय के हर वर्ग मसलन बच्चों, महिलाओं, किसानों, किशोरों तथा वृद्ध लोगों से विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए जुड़ा है.
पूजा मुरादा, निदेशक, संचार, रेडियो अल्फाज़-ए-मेवात (अध्यक्ष- कम्युनिटी रेडियो ऐसोसिएशन) बताती हैं कि पांच साल पहले 3 घंटे प्रतिदिन के प्रसारण से शुरू हुआ उनका सामुदायिक रेडियो आज 13 घंटे प्रतिदिन प्रसारण कर रहा है और 2015 में रेडियो को क्षेत्र में महिला सशक्तिकरण, पंचायती राज संस्थाओं के सशक्तिकरण और सुशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए मंथन अवार्ड से नवाजा जा चुका है. मंथन अवार्ड के लिए 36 देशों से 412 से अधिक सामुदायिक रेडियो ने भाग लिया था. उनका कहना है कि "समुदाय के सहयोग और लगातार प्रयासों से यह संभव हो पाया है. रेडियो के सफल संचालन के लिए एक कोर टीम का गठन किया है जो रेडियो कार्यक्रमों की विविधता, सामग्री का चयन, विशेष दिनों में खास कार्यक्रमों का प्रसारण, कार्यशालाओं एवं लाइव चर्चाओं की रूपरेखा और समुदाय एवं सरकारी विभागों से फीडबैक की रूपरेखा तैयार करती है और उसी के अनुरूप रेडियो की प्रतिदिन की गतिविधियों का संचालन किया जाता है. यहां की महिलाएं और किशोरियाँ इतनी सशक्त हुई हैं कि रेडियो कार्यक्रमों की लाइव चर्चोओं में भाग लेती हैं, अपनी राय प्रकट करती हैं और गाँव में कुछ महिला समूह ऐसे भी हैं जो रेडियो कार्यक्रमों को बनाने में भी सहयोग देते हैं. आज इन महिलाओं की सोच में बड़ा बदलाव आना शुरु हुआ है". पूजा मुरादा का कहना है कि "सामुदायिक रेडियो चलाना बड़ा चुनौतीपूर्ण है. प्रसारण के लिए नित नई एवं विविधतापूर्ण सामग्री जुटाना, फंड की व्यवस्था एवं सामुदायिक रेडियो लिए स्टाफ को बनाये रखना चुनौतीभरा काम है. लेकिन हमारे रिपोर्टर और एंकर स्थानीय समुदाय से सम्बंध रखते हैं इसलिए कार्यक्रमों को बनाने में समुदाय की सलाह और फीडबैक प्राप्त करने में उन्हें आसानी होती है. स्थानीय समुदाय से भी कई लोग परिचर्चाएं में हिस्सा लेते हैं और अपने रिकार्ड किये हुए प्रोग्राम सुनने एवं सुनाने में तथा स्थानीय समुदाय को रेडियो से जोड़ने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. सोहराब, शाकिर, फाकत, मुफीद और अनुराधा हमारे रेडियो चैम्पियन हैं और कार्य निष्पादन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है".
किसी ने खूब कहा है कि "जिंदा रहते हैं वो लोग, जिनमें हालात बदलने की हिम्मत होती है, फिर चाहें वह ख्यालों में जिंदा रहें या विचारों में, लेकिन वे हमेशा ज़िंदा रहते हैं ". यह पंक्तियां उन सभी महिलाओं को समर्पित हैं जो तन्मयता से समाज के विभिन्न वर्गों के सशक्तिकरण में जुटी हैं और विशेषकर जो महिलाओं को सशक्त बनाने में जुटी हैं.
द्वारा अग्रेषित :- श्री. विजय शर्मा ,vijaysharmaht@gmail.com