सन 1956-57 का ज़माना दरअसल संगीत के सुनहरे दौर का एक हिस्सा था। एक से बढ़कर एक गीतकार, संगीतकार और गायक एक साथ सक्रिय थे। इसी से अंदाज़ा लगाइये कि प्यासा, मदर इंडिया, नया दौर, दो आंखें बारह हाथ, रानी रूपमती, तुमसा नहीं देखा, आशा वग़ैरह सन 57 की ही फिल्में हैं। यानी तब बेहतरीन गाने गूंज रहे थे। और इसका फायदा उठा रहा था पड़ोसी देश का एक रेडियो चैनल। श्रीलंका ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन की विदेश सेवा।
ये शॉर्टवेव सुनने का दौर था और एंटीना लगाकर रेडियो सुना जाता। पर सीलोन के कार्यक्रमों में इतना दम था कि लोग रेडियो से चिपके रहते। फिर उसी दौर में भारत के सूचना प्रसारण मंत्री बी. वी. केसकर ने फिल्मी गानों पर प्रतिबंध लगा दिया था। प्रोड्यूसर्स और रेडियो में ठन गयी थी और कॉन्ट्रैक्ट हटा लिये गये थे। यानी आकाशवाणी पर फिल्मी गाने नहीं बज रहे थे। उसकी जगह बड़े साहित्यकारों से प्रसार गीत लिखवाकर रिकॉर्ड करवाए जा रहे थे। ऐसे दौर में सोचा गया कि एक ऐसा रेडियो चैनल शुरू किया जाए—जिसका मकसद मनोरंजन हो। जिसमें छोटे छोटे और रोचक कार्यक्रम हों। ऐसे दौर में केशव पांडे, पंडित नरेंद्र शर्मा, गोपाल दास और गिरिजाकुमार माथुर जैसी साहित्य और रेडियो प्रसारण की कद्दावर हस्तियों ने इस नये चैनल की नींव रखी। पंडित नरेंद्र शर्मा से कहा गया कि वो इसकी रूपरेखा तैयार करें। तब इसका नाम सोचा गया था AIVP. यानी ऑल इंडिया वेराइटी प्रोग्राम। जब इसकी तैयारियां चल ही रही थीं तभी पंडित नरेंद्र शर्मा ने इसका नया नाम सोचा—‘विविध भारती’ जिसे फौरन मंजूर कर लिया गया। इस तरह तैयारियां शुरू हुईं और तीन अक्तूबर को दशहरे के दिन इस नये रेडियो चैनल का आग़ाज़ हुआ। पहली उद्घोषणा शील कुमार शर्मा ने की—‘ये आकाशवाणी का पंचरंगी कार्यक्रम है विविध भारती’। इसके बाद पंडित नरेंद्र शर्मा ने कहा—‘मानस भवन में आर्य जन जिसकी उतारें आरती/ भगवान भारत वर्ष में गूंजे विविध भारती’।
ज़रा सोचिए कि केवल भारत वर्ष नहीं विविध भारती आगे चलकर समग्र विश्व में गूंजी। अगली कड़ी में आपको बताऊंगा, कैसे की गयीं थीं विविध भारती को शुरू करने की तैयारियां। तो पढ़ते रहिए साठ कडियों की ये श्रृंखला #साठ_बरस_की_विविध_भारती।
आलेख के संग Aparajita Sharma का विशेष रूप से तैयार किया गया स्केच।
Source & Credit : Yunus Khan