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My Retired Life : हौसलों और हुनर के धनी-जनाब हसन अब्बास रिज़वी !

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उ० प्र० के सिद्धार्थ नगर का एक बड़ा कस्बा हल्लौर शिया मुस्लिम समुदाय की सामाजिक और सांस्कृतिक समृद्धि का हमेशा से केन्द्र बिन्दु रहा है ।यहाँ से अनेक प्रतिभाशाली लोग निकले हैं जिन्होंने देश विदेश में नाम कमाया है ।6 जून 1948 को यहीँ पर एक सभ्रांत परिवार में श्री हसन अब्बास रिज़वी ने जन्म लिया ।आरंभिक शिक्षा हल्लौर में पूरी करने के बाद इन्होंने 1964में एस० एस० हाईस्कूल तेतरी बाज़ार, नौगढ़, सिद्धार्थ नगर से,1966में इंटर खैर कालेज बस्ती से और उसी के अनन्तर बी० ए० किसान डिग्री कालेज बस्ती से करनेे के बाद एल० एल० बी० गोरखपुर विश्वविद्यालय से किया ।सन 1974में जब आकाशवाणी गोरखपुर नया नया खुला था तो इनका एक नाटक कलाकार के रूप में रेडियो से रिश्ता शुरू हुआ ।उसी क्रम में ये आकाशवाणी गोरखपुर की गतिविधियों में सक्रिय हो गये और पहली जून 1976को प्रोडक्शन असिस्टेंट के रूप में इन्होंने अपनी विधिवत सेवा शुरू की ।अपने सहयोगपूर्ण स्वभाव के कारण केन्द्र के ये लोकप्रिय लोगों में गिने जाने लगे और ये आगे बढ़कर काम मांगने और बेहतर तरीके से सम्पन्न करनेवाले लोगों में शामिल हो गये ।04अगस्त1977को इनकी शादी मोहतरमा तस्नीम फातिमा से हुई ।रेडियो नाटकों और झलकियों के लेखन और प्रस्तुति ,रेडियो रिपोर्ट की प्रस्तुति, महत्वपूर्ण ओ० बी० कवरेज में दक्षता के अलावा एक कुशल कलाकार के रूप में इनके योगदान को आज भी याद किया जाता है ।

रिज़वी साहब, जिन्हें हम लोग हसन नाम से बुलाया करते हैं ,ने मंच और रेडियो नाटक का क ,ख, ग अपने बड़े भाई जनाब सुल्तान अहमद रिज़वी से सीखा ।वे जितने अच्छे मंच के कलाकार थे उससे कहीं ज्यादा अच्छे रेडियो के ।आकाशवाणी गोरखपुर से 1992 से लगभग दस साल तक हफ्ते में तीन दिन प्रसारित होनेवाले धारावाहिक "झरोखा"के भोला नामक पात्र अभी तक लोगों की याद में बना हुआ है जिसे हसन भाई निभाया करते थे ।इसके कुल 1560 एपिसोड प्रसारित हुए जो उस कालखंड का रिकार्ड है ।उस दौर को संभवतः इनके परफारमेंस का सबसे बढ़िया दौर कहा जाएगा ।इन्होंने ढेर सारे कलाकार भी रंगमंच को दिए ।पीयूष कान्त,शैलेश, नलिनी ,अशोक महर्षि,राजेन्द्र श्रीवास्तव, दीप शर्मा, भारती शर्मा ,और भी कई नाम हैं जो आज दूरदर्शन और फीचर फिल्मों तक में अपना हुनर दिखा रहे हैं ।रेडियो की हर विधा में समान दक्षता इनमें थी और इसीलिए यदि अचानक उदघोषक की ज़रूरत आ पड़ती थी तो ये खुशी खुशी अपनी कुशल सेवा देने को तत्पर रहते थे ।प्रसारण अधिशासी के रूप में आकाशवाणी गोरखपुर में अपने कार्यकाल के दौरान लगभग एक दशक की अवधि में मैने भी इनका सानिध्य पाया है ।एक अन्य सहकर्मी श्री शरत चतुर्वेदी से इनकी अत्यंत निकटता थी और दोनों एक दूसरे के पर्याय माने जाते थे ।इसमें कोई दो राय नहीं कि हसन भाई आकाशवाणी के उन सूरमाओं में से एक हैं जो उसकी पद प्रतिष्ठा के लिए कुछ भी करने को तैयार रहा करते थे ।इसीलिए उनके लिए यह शेर कहना चाहूँगा-
"कई बार डूबे ,कई बार उबरे ,
कई बार साहिल से टकरा के आए !"
हसन भाई के चेहरे में एक जबर्दस्त आकर्षण था जो हर आगंतुक को अपनी ओर आकृष्ट कर लेता था तो उनकी आवाज़ में मखमलीपन ।रेडियो नाटकों में आवाज़ के उतार चढ़ाव और आवश्यकता के अनुसार भावात्मकता का ही सारा खेल होता है और हसन भाई उसमें पारंगत थे ।चार चार मेलट्रान मशीनों पर एक साथ एडिटिंग-डबिंग और कभी कभी दो दो स्टूडियो की रिकार्डिंग संभालने का जादू इन्हें ही आता था ।इन्हें चुनौतियों को स्वीकार करने का रोमांच लेना अच्छा लगता था ।इसीलिए उन ख़तरनाक दौर में जब कारगिल के नाम से लोग डरा करते थे हसन भाई ने कार्यक्रम अधिकारी पद पर अपना प्रमोशन होने पर निदेशालय से मांगकर अपनी पोस्टिंग वहां ली ।मुझे याद है कि उन दिनों में भी मेरा ख़त किताबत उनसे बना हुआ था ।14 अगस्त 1998 को कारगिल से लिखे एक पत्र में उन्होंने लिखा था-."....स्टेशन सीमा से कुल 5कि० मी० के भीतर आता है। नदी के दूसरी ओर एयरपोर्ट है, वहीं पर और भी सैनिक प्रतिष्ठानों के कार्यालय एवं वर्कशॉप हैं.. गोलाबारी होती रहती है ।...बंकर निर्माण हेतु आफर गया है.. वायुयान का संपर्क टूटा है ।एकमात्र लेह से अथवा श्रीनगर से सड़क का मार्ग है परन्तु गोले गिरते रहते हैं...कारगिल बाज़ार में एक ट्रक पर गोला गिरा और सभी मर गए..."।वह पत्र आज भी मेरी फाईल में सुरक्षित है ।मेरे दो बेटे सेना में अपनी पहली पोस्टिंग के दौरान लेह, कारगिल और सियाचिन रहे हैं और उन्होंने उन दुर्गम जगहों के बारे में जो तथ्य बताए हैं उसे जानते हुए सचमुच एक सिविल नागरिक के लिए वहाँ रहना और हर पल प्रकृति अथवा दुश्मन के कोप के कारण कभी भी अपनी मौत से मिलने के समान था ।हसन भाई के इस जज्बे को मैं आज भी सलाम करता हूं ।लगभग 33साल की सेवा करने के बाद रिज़वी साहब 31मई 2008 में आकाशवाणी गोरखपुर से सेवानिवृत्त हुए ।इनके एक बेटी और एक बेटे का भरापूरा परिवार है ।बेटा डा० आबिद रिज़वी एम० डी० है और अलीगढ़ के मेडिकल कालेज में सीनियर रेजिडेंट के रूप में काम करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए इसी 21अप्रैल को यू० एस० रवाना हुआ है ।पिछले दिनों इस ब्लॉग की पोस्ट लिखने के मंतव्य से उनसे फोन पर हुई बातचीत में उन्होंने बताया कि हार्ट सर्जरी के चलते वे इन दिनों कुछ अस्वस्थ चल रहे हैं और रिटायरमेंट के बाद गोरखपुर छोड़कर अपने गांव हल्लौर स्थाई रूप से रहने के लिए आ गये हैं ।अस्वस्थ होने के बावज़ूद उनकी आवाज़ में अभी भी वैसा ही दमख़म बना हुआ है ।गोरखपुर छोड़कर वापस अपने गांव जाने की वज़ह वे कुछ यूं बयाँ करते हैं- "गोरखपुर आया था बड़े शौक से मगर हल्लौर की गलियां और दरगाहें वापस बुला रही थीं ,सो चला आया हूँ ।"मुश्किल दिनों की संगी साथी उनकी पत्नी मोहतरमा तस्नीम फातिमा रिज़वी उनके साथ जीवन की उतरती सीढ़ियों की हमसफ़र बनी हुई हैं और उनकी सेहत के लिए हमेशा फिक्रमंद रहती हैं ।रिज़वी साहब का मोबाइल नंबर है 09208789170
प्रसार भारती परिवार ऐसे हौसला और हुनरमंद अपने संगी साथियों के स्वस्थ्य और प्रसन्न उत्तरार्द्ध जीवन की कामना करता है ।

ब्लॉग रिपोर्ट - श्री. प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी, लखनऊ: मोबाइल नंबर 9839229128 ईमेल;darshgrandpa@gmail.com 

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