*माँ*
धुंधलायी स्मृतियों में
उसके आँचल में छुपा था
आँचल के बाहर दुखों का दोहन किया
सूरज के सेज अंदर उसने बिछाये थे
आंसुओं से भरी आंखों की
एक बूंद भी उसने अंदर न टपकायी थी
भूख की भीषण ज्वाला खुद सहकर भी
उसकी आंच न लगने दी थी
उसने सपने बड़े सलोने सजाये थे
बिखरे सपने टूटी डोर साँसों की
उस ममता भरी स्पर्श की
सिर्फ स्मृति ही शेष है और सिर्फ स्मृति ही।
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स्चनाकार : देवाशीष चक्रवर्ती
आभियांत्रिकी सहायक
आकाशवाणी राउरकेला
मोबाइल :9438210546
ईमेल :debashishchakraborty98@gmail.com