"हिन्दी का पद - सम्मान करो ! "
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उत्तर हो या पूरब - पश्चिम ,
दक्षिण में भी मान करो ।
राजनीति से हट कर अब तुम ,
हिन्दी का पद - सम्मान करो ।।
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यदि मातृभूमि से प्यार करो ,
तो हिन्दी भी स्वीकार करो ।
इस गूंगे राष्ट्र को भाषा दो ,
हिन्दी पर सब अभिमान करो ।।
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जब राजनीति के तवे पर मित्रों ,
भाषा की रोटी सेंकोगे ।
मातृभूमि के संग युगों तक ,
न्याय नहीं कर पाओगे ।।
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"अंग्रेजों , भारत छोड़ो " ,
जयघोष उठा बरसों पहले ।
"अंग्रेजी , अब भारत छोड़ो " ,
कहना होगा हम सब एक को ।।
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अमरिका , जापान सरीखे ,
देश जुड़े , सीखें हिन्दी ।
अधरों पर रामायण - गीता ,
वस्त्र, आचरण सब हिन्दी ।।
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मुख पर डाल मुखौटा जो,
खा रहे हैं रोटी हिन्दी की ।
प्राण प्रतिष्ठा नहीं अपितु ,
अपमान करें इस "बिन्दी"की ।।
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भाषा को हथियार बना कर ,
सूबे की दीवाल बना कर ।
हिन्दी के हर डगर डगर पर,
"तनिक रुको "का घोष लगा कर ।।
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साज श्रृंगार अधूरा जब तक ,
लगे न माथ पे बिन्दी ।
भाव भंगिमा तेज हो मस्तक ,
स्वीकारें हम जब हिन्दी ।।
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भले अलग है भाषा -बोली ,
जुटो , लिये चंदन - रोली ।
मातृभूमि संग मातृभाषा की ,
आओ भर दें हम झोली ।।
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शेष नहीं है प्रश्न सुनों ,
अब विदा करो अंग्रेज़ी को ।
राज सिंहासन बुला रहा ,
हिन्दी को तिलक लगाने को ।।
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जन - जन की यह टिकी है आशा ,
एक है देश , अब एक हो भाषा ।
कृपा करो तुम, हे जग दाता ,
हिन्दी बन जाय , भाग्य विधाता ।।
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रचनाकार :प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी,
पूर्व कार्यक्रम अधिकारी (आकाशवाणी),लखनऊ।मोबाइल नं.9839229128
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