मूलत:ग्राम पतनई,दोहरीघाट,मऊ(उ.प्र.)के निवासी स्व. इंजीनियर विजय बहादुर राय IBES ,पूर्व केन्द्र अभियन्ता और कार्यालय प्रमुख की आठवीं पुण्यतिथि पर 28अगस्त को उनके परिवार और आकाशवाणी गोरखपुर के लोग अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनकी सेवाओं को याद कर रहे हैं।इस कर्मयोगी ने आकाशवाणी की अपनी दीर्घकालीन सेवा की शुरुआत ई.ए.के रुप में आकाशवाणी बीकानेर से 1972 में की थी ।1973में वे आकाशवाणी गोरखपुर आ गये ।1980में लेह जैसे दुर्गम केन्द्र पर उनकी नियुक्ति हुई।वहीं प्रमोशन पाकर एस.ई.ए.बने।1984में ए.ई.,1992में ए.एस.ई. और 2003में केन्द्र अभियन्ता पर पर पदोन्नति मिली।ज्यादातर अवधि आकाशवाणी गोरखपुर को देने वाले राय साहब को आकाशवाणी प्रसारण की तकनीक में विशेषज्ञता हासिल थी।स्टूडियो की मशीनें हों या उच्च शक्ति ट्रांसमीटर का रख रखाव ,दोनों जगहों पर उनकी पकड़ मजबूत थी।अपने मृदुल व्यवहार के कारण वे कार्यक्रम ,प्रशासन और तकनीकी सभी विभागों में प्रिय थे।मुझे भी उनके साथ लम्बी अवधि तक काम करने का स्मरणीय अवसर मिला है जब मैं आकाशवाणी गोरखपुर में प्रसारण अधिशासी के रुप में नियुक्त था ।वे उन दिनों ई.ए.और फ़िर एस.ई.ए.और ए.ई. के रुप में कार्यरत थे।उन दिनों भी शिफ्ट की ड्यूटी हुआ करती थी और अनवरत प्रसारण के लिए जाड़ा,गर्मी,बरसात,बीमारी,सूखा और बाढ़-सभी हालात में "दि शो मस्ट गान"की उक्ति में हम दोनों विश्वास किया करते थे।कदाचित यूं भी होता था कि सुबह के ट्रांसमिशन में उनके टेकनिशियन समय पर स्टूडियो न पहुंच सके हों और इधर अपने एनाउंसर तब भी हम दोनों में इतना सामंजस्य रहता था कि ठीक 5-53पर संकेत धुन फेड इन हो ही जाया करती थी।सुबह आठ बजे से दिल्ली/लखनऊ रिले जब शुरु हो जाता था तो कन्ट्रोल रुम में हम सभी जुटकर चाय पीते थे।राय साहब कम ही बोलते थे लेकिन सुनते सबकी थे।उनके अधरों की मंद- मंद मुस्कान तो अभी भी दिल में उतरा करती है।रात की शिफ्ट जब समाप्त होती थी तो वे स्वयं सबसे पहले महिला उदघोषिका को उनके घर उतारने के लिए ड्राइवर को परामर्श देते चाहे कितनी भी दूर वे रहती हों। यह उनकी सदाशयता का परिचायक था।एक और मज़ेदार याद शेयर करने से अपने को रोक नहीं पा रहा हूं।उन दिनों इन्हीं के हमनाम,कद काठी में भी लगभग एक समान श्री विंध्यवासिनी राय,एफ.आर.आर., भी उसी केन्द्र पर नियुक्त थे।अक्सर उन दोनों से मिलने जुलने वाले लोग जब उनका शार्ट नाम (वी.बी.राय)लेकर हम सबके पास ड्यूटी रुम में आते तो हम लोग इनके मिलने वालों को उनके पास और उनके मिलने वालों को इनके पास भेज दिया करते थे।बाद में ये दोनों जब मिलते तो ख़ूब हंसी ठिठोली होती।राय साहब अपने सीनियर्स की बहुत इज़्जत करते थे।इसीलिए वे हमेशा उनके प्रिय बने रहे।उन दिनों गोरखपुर में रह चुके अधीक्षण अभियंता श्री एस.एम.प्रधान से पिछले दिनों हुई मेरी एक मुलाक़ात में भी उनका भी जिक्र आया था।कुल मिलाकर राय साहब का व्यक्तित्व सम्मोहक था।उनकी कार्यकुशलता और सुयोग्यता का ही यह परिणाम था कि आकाशवाणी गोरखपुर में विभिन्न पदों पर रहने के बाद एक ऐसा भी समय आया कि वे वहीं के कार्यालय प्रमुख भी बने।
आइये,उनकी पुण्यतिथि पर उनके जीवन वृत्त पर एक विहंगम दृष्टि भी डाल लें।
जन्म - 02 जुलाई 1951, ग्राम-पतनई, पोस्ट- दोहरीघाट, तत्कालीन आज़मगढ़ (अब मऊ जिला)।
पिता - स्व0 रामनाथ राय, ऑडिटर, बजट अनुभाग, लखनऊ सचिवालय, उ0प्र0।
माता जी- स्व0 फूलमती देवी।वे कुल 3 भाई थे और उनकी 2 बहनें थीं।भाइयों में वे सबसे बड़े थे। इनसे छोटे भाई- श्री तेज बहादुर राय, सेवानिवृत्त अधिशासी अभियन्ता, उ0प्र0 पावर कारपोरेशन और सबसे छोटे भाई- श्री राज बहादुर राय, शिक्षा विभाग में प्राध्यापक हैं। कक्षा 8 तक उनकी शिक्षा गांव के ही प्राइमरी स्कूल में हुई ।1965 में उन्होंने हाई स्कूल परीक्षा (प्रथम श्रेणी में कुर्मी क्षत्रिय हायर सेकेण्डरी (अब रामाधीन सिंह इंटर कालेज), बाबूगंज, लखनऊसे उत्तीर्ण किया तो 1967 में इंटर में भी प्रथम श्रेणी लेकर राजकीय जुबिली इंटर कालेज, लखनऊ में अपनी मेधा का प्रदर्शन किया।उच्चतर शिक्षा की दिशा में उन्होंने B.Sc.- 1969 में एक बार फिर प्रथम श्रेणी में लखनऊ विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण किया और अपनी स्वर्णिम शैक्षिक उपलब्धियों को उस समय आसमान पर पहुंचा दिया जब वर्ष 1971में उन्होंने रेडियो कम्युनिकेशन विषय लेकर एम.एस.सी.परीक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया। उन्होंने नौकरी की शुरुआत उ.प्र.सरकार के सिचाई विभाग में "शारदा सहायक परियोजना"में "सुपरवाइजर"के पद से की। आकाशवाणी की सेवा में वे 01 जनवरी 1972 को आए जब भारत-पाक युद्ध चल रहा था।आकाशवाणी बीकानेर में "अभियांत्रिकी सहायक (E.A.)"के पद पर उनकी नियुक्ति हुई।वे अक्टूबर 1973 में आकाशवाणी गोरखपुर के लिए स्थानांतरित होकर आये।यहां से 30 जून 1980 को आकाशवाणी, लेह-लद्दाख, स्थानांतरित हो गये।
वरिष्ठ अभियांत्रिकी सहायक (S.E.A.) पद पर 16 अप्रैल 1982 को आकाशवाणी लेह में ही प्रमोशन मिला। जुलाई 1982 में वे पुनः आकाशवाणी गोरखपुर वापस आये।इसके बाद उनका प्रमोशन सहायक अभियन्ता (A.E.) के रूप में जनवरी 1984 में गोरखपुर केंद्र पर ही हुआ । उन्होंने संस्थापन अधिकारी ( Installation Officer), Projects (1989-1992) के रूप में आकाशवाणी गोरखपुर में 50 KW शार्ट वेव ट्रांसमीटर, आकाशवाणी लखनऊ के चिनहट ट्रांसमीटर, और आकाशवाणी वाराणसी के सारनाथ ट्रांसमीटर के संस्थापन (Installation) का कार्य कुशलता पूर्वक सम्पन्न करवाया था । भारतीय प्रसारण अभियांत्रिकी सेवा (I.B.E.S.) में 01 जनवरी 1992 को वे प्रोन्नत होकर स.के.अभियन्ता हुए और आकाशवाणी गोरखपुर में पदस्थापित हुए।
एक बार पुन: सहायक निदेशक, आकाशवाणी महानिदेशालय, नई दिल्ली में "योजना और विकास एकक" ( Planning & Development unit) में october 2000 में उनका तबादला हुआ, जहाँ उन्होंने उस समय देश भर में शुरू किये जाने वाले FM स्टेशनों के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। तत्पश्चात, वहीँ पर केंद्र अभियन्ता (Station Engineer) के रूप में अक्टूबर 2003 में प्रोन्नत हुए, तथा उन्हें मणिपुर राज्य की राजधानी के "आकाशवाणी इंफाल"केन्द्र की जिम्मेदारी मिली। मणिपुर राज्य के सभी केंद्र (चूड़ा चांदपुर और शिशिरपुर) भी आकाशवाणी इंफाल के अन्तर्गत ही आते हैं। आपने अतिसंवेदनशील और तनावग्रस्त मणिपुर राज्य के सभी केंद्रों का केंद्र अभियन्ता होते हुए "केंद्राध्यक्ष"के रूप में सफलतापूर्वक संचालन किया। एक तस्वीर में, मिलिट्री बोट में मणिपुर के आकाशवाणी समाचार संवाददाता श्री बी बी शर्मा जी और सेना के जवानों के साथ करांग ज़िले में "अंडर ग्राउंड्स ग्रुप के खिलाफ मिलिट्री ऑपरेशन की कवरेज हेतु"जीवन-रक्षक जैकेट पहन, साथ जाते उनकी तस्वीर आज भी उनके साहसी व्यक्तित्व का परिचायक है। समय बढ़ता रहा और अप्रैल 2006 में उनका पुनः केंद्र अभियन्ता के रूप में तबादला आकाशवाणी गोरखपुर हुआ। आप अप्रैल 2007 से इस केंद्र के "केंद्राध्यक्ष"बने, तथा 28 अगस्त 2009 तक इसी पद पर काम करते हुए उन्होंने अपनी जीवन यात्रा सम्पन्न की। इस कार्यकाल में भी उन्होंने अपने इस इलाके के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान "भोजपुरी समाचार बुलेटिन"को शुरू करवाने में करके दी, क्योकि आकाशवाणी वाराणसी में अर्थ-स्टेशन (सेटेलाइट अपलिंकिंग) बनने से गोरखपुर से समाचार एकांश के वाराणसी स्थानांतरित होने की जबरदस्त संभावना बनने लगी थी, ऐसे में आपने इस एकांश को बचाने हेतु पूरे उ0प्र0 के अंशकालिक समाचार संवाददाताओं की गोरखपुर में 3 दिवसीय कार्यशाला आयोजित की, DG-news को बुलाया और इन तीन दिनों की इस कार्यशाला के बीच DG-news को गोरखपुर में समाचार एकांश रखे जाने को कन्विंस किया गया और दो अन्य समाचार बुलेटिन की अनुमति मांगी गई... इसमें पहली बार आकाशवाणी द्वारा "भोजपुरी बुलेटिन"शुरू करवाने की भी अनुमति शामिल थी, और नवम्बर 2008 में पहली भोजपुरी बुलेटिन आकाशवाणी के लिए गोरखपुर केंद्र से पढ़ी गई। वर्ष 1973 से 2009 के बीच लगभग 37 वर्ष की सेवा में आकाशवाणी गोरखपुर में इंजीनियरिंग विभाग के हर पद पर रहे। अपनी मृत्यु के समय वे आकाशवाणी के केंद्र अभियन्ता और केंद्राध्यक्ष के रूप में ही काम कर रहे थे।सचमुच राय साहब एक ऐसे कर्मयोगी थे जो अपने जीवन के अंतिम क्षण तक आकाशवाणी से जुड़े रहे।
इस महान कर्मयोगी ने 28 अगस्त 2009 को सहारा हॉस्पिटल, लखनऊ में आपने अंतिम सांस ली थी ।उनका भरा पूरा परिवार आज भी आकाशवाणी को अपना परिवार मानता है और उनके एक पुत्र श्री अजित कुमार राय तो अपने पिता की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए आकाशवाणी गोरखपुर के अभियांत्रिकी अनुभाग को अपनी मूल्यवान सेवाएं भी दे रहे हैं।प्रसार भारती परिवार ऐसे महान कर्मयोगी की सेवाओं को याद करते हुए उनके प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है।
द्वारा योगदान :- प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी,कार्यक्रम अधिकारी(आकाशवाणी)से.नि.लखनऊ।मोबाइल नं.9839229128ईमेल; darshgrandpa@gmail.com
इस महान कर्मयोगी ने 28 अगस्त 2009 को सहारा हॉस्पिटल, लखनऊ में आपने अंतिम सांस ली थी ।उनका भरा पूरा परिवार आज भी आकाशवाणी को अपना परिवार मानता है और उनके एक पुत्र श्री अजित कुमार राय तो अपने पिता की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए आकाशवाणी गोरखपुर के अभियांत्रिकी अनुभाग को अपनी मूल्यवान सेवाएं भी दे रहे हैं।प्रसार भारती परिवार ऐसे महान कर्मयोगी की सेवाओं को याद करते हुए उनके प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है।
द्वारा योगदान :- प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी,कार्यक्रम अधिकारी(आकाशवाणी)से.नि.लखनऊ।मोबाइल नं.9839229128ईमेल; darshgrandpa@gmail.com