आकाशवाणी और दूरदर्शन के वरिष्ठ शायर जफ़र गोरखपुरी का 82 बरस की उम्र में लम्बी बीमारी के बाद 29 जुलाई की रात मुम्बई में निधन हो गया है। गोरखपुर की सरजमी पर 5मई 1935 को पैदा जफर गोरखपुरी की शायरी उन्हें लम्बे समय तक लोगों के दिल-दिमाग में जिंदा रखेगी।उनकी फ़िल्मी क़व्वाली ‘बड़ा लुत्फ था जब कुंवारे थे हम तुम'और 'धीरे धीरे कलाई लगे थामने, उन को अंगुली थमाना गजब हो गया!'ने किसी समय बड़ी धूम मचाई थी। शाहरूख खान पर फिल्माया फिल्म "बाजीगर"का गीत ‘किताबें बहुत सी पढ़ीं होंगी तुमने’ भी चर्चित रहा । जफर गोरखपुरी को मुम्बई के चार बंगला अंधेरी पश्चिम के कब्रिस्तान में 30 जुलाई को दोपहर डेढ़ बजे सुपुर्द-ए-खाक किया गया।जफर गोरखपुरी प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े थे। एक कवि देवमणि पाण्डेय अपने फेसबुक वाल पर लिखते हैं कि फ़िराक़ साहब ने उन्हें समझाया-‘ सच्चे फ़नकारों का कोई संगठन नहीं होता। वाहवाही से बाहर निकलो।’ नसीहत का असर हुआ वे संजीदगी से शायरी में जुट गए।प्राइमरी विद्यालय में शिक्षक के रूप में उन्होंने बाल साहित्य को भी परियो और भूत प्रेत के जादूई एवं डरावने संसार से न केवल बाहर निकाला। बाल साहित्य को सच्चाई के धरातल पर खड़ा करके जीवंत, मानवीय एवं वैज्ञानिक बना दिया। उनकी रचनाएं महराष्ट्र के शैक्षिक पाठ्यक्रम में पहली से लेकर स्नातक तक के कोर्स में पढाई जाती हैं। बच्चों के लिए उनकी दो किताबें कविता संग्रह ‘नाच री गुड़िया’ 1978 में प्रकाशित हुआ जबकि कहानियों का संग्रह ‘सच्चाइयां’ 1979 में आया। जफर गोरखपुरी का पहला संकलन तेशा (1962) दूसरा वादिए-संग (1975) तीसरा गोखरु के फूल (1986) चौथा चिराग़े-चश्मे-तर (1987) पांचवां संकलन हलकी ठंडी ताज़ा हवा(2009) प्रकाशित हुआ। हिंदी में उनकी ग़ज़लों का संकलन आर-पार का मंज़र 1997 में प्रकाशित हुआ।उनका एक शेर है;
लिखने को सात आसमां,पढ़ने को पाताल।
ले दे के कुल ज़िन्दगी,पैंसठ सत्तर साल ।।
प्रसार भारती परिवार उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
इनपुट-दैनिक हिन्दुस्तान(गोरखपुर)