अब जल्द ही बिलासपुर के ऐतिहासिक व धार्मिक स्थलों की जानकारी प्रदेश के लोगों को मिलेगी। आकाशवाणी शिमला से ऐतिहासिक व धार्मिक स्थलों के रूपकों की श्रृंखला का प्रसारण किया जा रहा है। यह प्रसारण आगामी पहली सितंबर से 13 सितंबर तक रात साढ़े नौ बजे से होगा। प्रत्येक रूपक की प्रसारण अवधि आधा घंटा रहेगी। ऐतिहासिक व धार्मिक स्थलों के इस 13 रूपकों को साहित्यकार कुलदीप चंदेल ने लिखा है। बकौल साहित्यकार कुलदीप चंदेल, जो रूपक प्रसारित होंगे, उनमें किला कोट कहलूर, बच्छरेटू, बसेह, त्यून सरयून, छंजयार, बहादुरपुर, फतेहपुर व रत्नपुर शामिल हैं। धार्मिक स्थलों में ¨हदू सिखों का साझा तीर्थस्थल नयनादेवी, बाबा नाहर ¨सह मंदिर, व्यास गुफा, मार्कंडेय तीर्थ तथा ¨हदू-मुसलमानों का साझा पूजा स्थल लखदाता पीर याणू मंदिर है। कहलूर रियासत का इतिहास बहुत रोचक है। उतना ही रोमांचकारी है, रियासतकालीन किलों के बारे में जानकारी जुटाना। किला कोट कहलूर में जब दिल्ली के बादशाह मोहम्मद तुगलक (1325-1351 ई.) की मुस्लिम सेना के सरदार तातार खान ने घेराबंदी की थी और किले का मुख्य द्वार तोड़ने के लिए एक हाथी को लाया गया, तो कहलूर की सेना एक तरफ से घिर गई थी। उस समय के कहलूर नरेश अभयसार चंद ने वीरता का परिचय देते हुए हाथी की सूंड अपनी तलवार से काटकर तातार खान को भी मार दिया था। तब मुस्लिम सेना में भगदड़ मच गई थी। इसी तरह मोहम्मद गौरी ने 1191 ई. जब पंजाब के सह¨हद तक का क्षेत्र जीत लिया था, तो कहलूर के राजा पृथ्वी चंद ने राज्य की सुरक्षा के लिए सिरयून के किले का निर्माण करवाया था। जनश्रुतियों में बिलासपुर के धार्मिक स्थलों के बारे में भी कई सुरूचिपूर्ण का ज्ञानवर्द्धक बातों का पता चलता है।
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