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रचना: ग़ज़ल साम्राज्ञी बेगम अख़्तर पर नित्यानन्द मैठाणी की पुस्तक : ताजगी से लबरेज !

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प्रसार भारती के पुरोधा, अखिल भारतीय प्रसारण सेवा के प्रथम बैच के अधिकारी ,83वर्षीय श्री नित्यानन्द मैठाणी ने एक मुलाक़ात में बताया है कि उनकी एक नई पुस्तक "ग़ज़ल साम्राज्ञी बेगम अख़्तर"छप कर बाज़ार में आ गई है।मुझसे उम्र में 20 साल बड़े और आकाशवाणी गोरखपुर में मेरे केन्द्र निदेशक रह चुके मैठाणी साहब ने अपनी इस पांचवीं पुस्तक को अपनी धर्मपत्नी और गिटार की कलाकार श्रीमती उमा (गैरोला) मैठाणी को समर्पित किया है जिन्होंने बाल्यावस्था से व्रृध्दावस्था तक लेखन कार्य में लेखक को अपना पूर्ण सहयोग प्रदान किया है।आकाशवाणी और दूरदर्शन के विभिन्न पदों पर रहते हुए 1958 में नौकरी शुरु करके 35साल तक प्रसारण जगत को अपनी सेवाएं देेने वाले और 84 साल की उम्र की ऊंची पायदान पर पहुंच चुके मैठाणी साहब की यह पुस्तक बेगम अख़्तर की गायकी पर उनके अपने अनुभवों और बेगम साहिबा से हुई अनेक मुलाक़ातों पर आधारित है। मैं जब उनके निमंत्रण पर उनके इन्दिरा नगर, लखनऊ स्थित आवास पर पहुंचा तो वे अत्यंत प्रसन्न मुद्रा में एक युवा लेखक सद्रृश रोमांचित मिले और उन्होंने मुझे सप्रेम पुस्तक की एक प्रति भी भेंट की ।जब मैनें उन्हें बताया कि आपकी इस कर्तव्य साधना के बारे में मैं प्रसार भारती ब्लाग के 20 लाख पाठकों तक सूचना पहुंचाऊंगा तो उनकी आंखों में प्रेम के आंसू छलक पड़े ।असल में ये उस दौर के पुरोधा हैं जब संचार और सम्पर्क साधन अत्यन्त ही सीमित हुआ करते थे और उनकी तात्कालिक पहुंच तो कल्पनातीत हुआ करती थी। पुस्तक में बेगम अख़्तर के समग्र जीवन कृतित्व का विवेचन तो हुआ ही है उनके बारे में फैली तरह- तरह की किंवदंतियों की सप्रमाण सच्चाई भी सामने आई है।अक्सर ऐसा हो रहा है कि कुछ अति उत्साही लोग बेगम अख्तर साहिबा से निकटता दिखाने के लिए झूठे प्रसंगों को सामने ला रहे हैं। 1958 से 1974 तक मैठाणी साहब बेगम साहिबा से किसी न किसी प्रकार जुड़े रहे हैं।लखनऊ में 1974 में उनकी मृत्यु के समय वे आकाशवाणी लखनऊ में संगीत विभाग के कार्यक्रम अधिकारी पद पर तैनात थे। यह भी संयोग की बात है कि उसी केन्द्र पर संगीत के कार्यक्रम अधिकारी रह चुके इस ब्लाग लेखक के योगदान के बारे में वे इस पुस्तक में लिखते हैं-"संगीत विभाग के अधिकारी श्री प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी मेरे पुराने मित्र हैं।उन्होंने बेगम साहिबा की याद में "कुछ नक़्श तेरी याद के"शीर्षक से तेरह एपिसोड के कार्यक्रम बनाए थे।त्रिपाठी जी मेरी इस पुस्तक के आधार हैं।.."कुछ नक़्श तेरी याद के"के प्रसारण की छाप अनेक स्थानों पर इस पुस्तक में मिलेगी।श्री त्रिपाठी का सहयोग मैं कभी भुला नहीं सकता।"श्री मैठाणी ने अपने आमुख में लिखा है कि "बेगम साहिबा की सबसे बड़ी उपलब्धि थी भारत के संगीत की मुख्य धारा में उनका अवतरित होना।उन्होंने संगीत को समय की मांग समझा था।अत:वे भारतीय संगीत की सही प्रतिनिधि कही जा सकती हैं।"

आकर्षक और दुर्लभ चित्रों और प्रकाशन की साज सज्जा से सम्पन्न इस पुस्तक में बारह अध्याय हैं।इनमें (सच मानिये ) बेगम साहिबा की ज़िन्दगी से जुड़े कई ऐसे तथ्य भी हैं जो अभी तक जानकारी में या तो आये नहीं थे या अगर सामने आये थे तो आधे अधूरे थे।इसे संजय प्रकाशन,नई दिल्ली ने प्रकाशित किया है और मूल्य है पांच सौ पचास रुपये।भले ही उनकी मौत अहमदाबाद में हुई लेकिन सच्चे दिल से लखनऊ को प्यार करने वाली बेगम साहिबा को लखनऊ आज भी उतना ही प्यार करता है।लखनऊ में आज भी संगीत की हर महफ़िल उनकी यादों को ताज़गी देती रहती है।लखनऊ में लिखी गई इस पुस्तक में ये सारे प्रसंग जीवंत मिलेंगे ।उम्मीद है कि इस पुस्तक को सराहना मिलेगी।

प्रसार भारती परिवार अपने पुरोधा मैठाणी साहब को उनकी सृजनशीलता के लिए बधाई देता है।ब्लाग के पाठक भी यदि चाहें तो सीधे उनके मोबाइल पर या पते पर पुस्तक के लिए उनको मुबारकबाद दे सकते हैं।उनका मोबाइल नं.है - 09621640603और डाक का पता है- 19/368,इन्दिरा नगर,लखनऊ-226016

ब्लाग रिपोर्टर :-  श्री. प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी,लखनऊ।मोबाइल 9839229228
ईमेल :-darshgrandpa@gmail.com

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