रेडियो की तरंगें कहां-कहां तक पहुंचती हैं। और किस किस के दिल को छू जाती हैं- जानकर हैरत होती है। बारिश भारत में भी हो रही है। और सात समंदर पार कहीं और भी। अभी दो दिन पहले एक मित्र कैलिफोर्निया प्रवास में मुबारक बेगम पर आधारित कार्यक्रम सुन रहे थे। ज़ाहिर है कि हमारे यहां की सुबह उनके यहां की शाम रही होगी। उनका कहना था कि बारिश से भीगे दिन में जब 'कभी तन्हाईयों में हमारी याद आयेगी'बजा तो वो अतींद्रिय अनुभव बन गया। ये तस्वीर उन्होंने ही भेजी है।
कुछ मित्र अमेरिका के दूसरे हिस्सों में विविध भारती सुनते हैं। कुछ कनाडा में। यूरोप के अलग अलग देशों में भी कुछ दोस्त विविध भारती से जुड़े रहते हैं। एशिया की यात्रा में भी अलग अलग मुल्कों में दोस्त कभी कभार सुन लेते हैं।
अच्छा लगता है ये जानकर कि कितने कितने देशों में लोग अपनी व्यस्तताओं के बीच रेडियो के लिए गुंजाइश रखते हैं। शुक्रिया दोस्तो। मैं सोचता हूं- कैसा लगता होगा उन्हें। उन देशों में रहते हुए अपनी ज़बान और अपना प्रिय चैनल सुनना।
मजरूह का एक शेर कितना मानीख़ेज़ है- और एक दशक से हमारे ब्लॉग का सूत्र-वाक्य है। 'हम तो आवाज़ हैं- दीवारों से छन जाते हैं'।
रेडियो जिंदाबाद।
Source : Yunus Khan