पहली बार यह हक़ीक़त भी महसूस हुई कि विज्ञान और तकनीकी में मिलकर कला और कितनी सुन्दर और प्रभावशाली हो जाती है। दर अस्ल इतनी गुणवत्ता के साथ यह पूरा कार्य ही इंजीनियरिंग अर्थात् किसी कला और कल्पना को वांछित सौन्दर्य और गुण के साथ मशीनी ताकत के सहयोग से बहुत कुछ संभव हो रहा है। और आवश्यकता के अनुसार एक एक का संपादन कई कई बार किया गया जिसमें बिना उकताए इंजीनियर बन्धुओं ने जी लगा कर सहयोग किया। उतने लम्बे समय तक के कार्य में वैसे तो कई इंजीनियर साथी जुड़े। लेकिन एक गुप्ता जी मुझे आज भी बहुत आदर के साथ याद आते हैं। यों नाम भले तुरत याद नहीं आ रहा लेकिन सभी ने बहुत मन से सहयोग किया था तभी हमलोग ऐसे अन्य भी काम कर ले गए। सो सबके लिए आदर है।
इसके दो संस्करण साथ साथ हुए। पहला कैसेट वाला। दूसरा - सीडी वाला। मूल्य था (जैसा याद आता है) क्रमशः 750/-रु और 1000/रु। अवश्य ही अब भी आकाशवाणी महानिदेशालय समेत आकाशवाणी के विक्रय केन्द्रों पर उपलब्ध होगा।
आकाशवाणी अभिलेखागार में उपलब्ध 'गुरुदेव'की कितनी ही रिकार्डिंग,तकनीक के आरंभिक दौर की होने के कारण बेहद न्वायज़ी थी।(गुणवत्ता के स्तर पर, रुखड़ी, बहुत कुछ अस्पष्ट)।बतौर एडीपीआर काल से, निदेशक सेन्ट्रल आर्काइव्स के दौरान, इसकी (रीफर्विशिंग : उपलब्ध रिकॉर्डिंग की गुणवत्ता सुधारने, बढ़ाने की) जिम्मेवारी से हम जुड़े रहे थे।वहाँ उपलब्ध समस्त 'स्पोकेन वर्ड आर्काइवल रिकार्डिंग'की गुण- सुधारक यह तकनीक तब एकदम नई थी।प्रायःजापानी।आज भी आकाशवाणी प्रसारण जीवन का वह दिव्य किस्म का रोमाञ्च याद है। वंदेमातरम् सहित गुरुदेव की आवाज में उनकी कई अन्य कविताओं की भी री फर्विशिंग करते हुए रेडियो इतिहास में आकाशवाणी ने पहली बार 'अॉडियो बुक-रूप'प्रस्तुत किया था। इसमें गुरुदेव की अबतक कतिपय अप्रकाशित रचनाएँ और उनकी कुछ दुर्लभ पेन्टिंग्स थीं।
यह हमारा विशेष सौभाग्य था कि डॉक्टर ओ पी केजरीवाल जी जैसे हमारे महानिदेशक(डाइरेक्टर जेनरल) थे। बहुत उत्साही और उदार भी। रेडियो में जड़ पकड़ चुके पाखण्ड और नौकरशाही से वे बचे हुए। सो उनके समय में (पदेन भी) मैने रेडियो में रेडियो साहित्य अधिक किया।(निजी नहीं,रेडियो जन्य। अतः नहीं हुआ था तबतक जो,वह सब।) केजरीवाल जी स्नेह पूर्वक परामर्श को मानते थे।सोचा गया कि इसके लोकार्पण के अवसर पर, नई पीढ़ी को बिन बताए, अकस्मात् गुरुदेव के स्वर में उनकी आवाज़ में रचना भी सुनवाई जाय। सो कलकत्ते के रवीन्द्र सदन में इस टैगोर आडियो बुक के लोकार्पण समय जब गुरुदेव की आवाज़ गूंजी तब वहांँ उपस्थित समाज के रोमांच का आदि अंत न था। उपस्थित श्रोता-दर्शकों की आँखें और आकृतियों पर उमड़ आए दिव्य भाव का वह अमर सुन्दर अवसर! केजरीवाल जी समेत अपने साथी अधिकारी श्री पाढ़ी एवं कुछ अन्य स्नेही भी (खेद है कि इस क्षण नाम याद नहीं आ रहा।),इन्जीनियरों के साथ,जो रीफर्विशिंग की इस परिणति तक पूरी प्रक्रिया में पूरे मनोयोग से लगे रहे इस पूरे कार्य दल के साथ मेरे अपनी कृतार्थता के वे दिव्य क्षण!
तत्कालीन माननीय प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी जी ने इसे लोकार्पित किया था। विश्व भारती और आकाशवाणी आर्काइव्स के संयुक्त प्रायोजन में प्रस्तुत वह अध्याय,मैं अपने सम्पूर्ण आकाशवाणी-सेवा-काल की अपनी अनन्य सार्थक कृति भी मानता हुआ अपनी आकाशवाणी सेवा पर सार्थक गर्व महसूस कर रहा हूँ। ...जबकि इसी के संदर्भ में असह्य दुर्भाग्य और विडम्बना भी घटी मेरे साथ...लेकिन सो, रहा तो फिर कभी....। यह सब शायद आवश्यक शायद भावुकता वश ही लिख गया।
आज अभी तो गुरुदेव को प्रणाम और विशेष कर इंजीनियरों समेत,उस कार्यदल के याद-नहीं याद, समस्त साथियों को आभार के साथ बधाई और प्रणाम करता हूँ।