अगर मैं यह कहूं कि आकाशवाणी लखनऊ अपनी विशिष्टताओं के मामले में "गागर में अथाह सागर"की उक्ति चरितार्थ करता चला आ रहा है तो सच मानिए मेरी यह उक्ति कतई अतिशयोक्ति नहीं होगी ।इसके एक नहीं अनेक दृष्टांत इतिहास के पृष्ठों पर अंकित हैं,कुछ बोलते और कुछ अन बोलते ।इन दिनों लखनऊ के एक प्रमुख समाचार पत्र "दैनिक जागरण"में आकाशवाणी लखनऊ के पूर्व समाचार वाचक, प्रख्यात लेखक और मेरे मित्र श्री नवनीत मिश्र की सद्य:प्रकाशित पुस्तक "लखनऊ का आकाशवाणी"का धारावाहिक प्रकाशन हो रहा है जिसमें ऐसे ही अद्भुत और अविस्मरणीय प्रसंग मुखर हो उठे हैं।
आइये आपको भी कुछ रोमांचक घटनाओं से परिचित कराऊं।"लखनऊ रेडियो और नाटक"शीर्षक विषय
के अन्तर्गत का एक प्रसंग ।"....कहा जाता है यहां नाटक रिकार्ड करने कोलम्बो तक से लोग आते थे।...उस ज़माने में आज की तरह नाटकों के लिए ध्वनि प्रभाव कम्प्यूटर पर तैयार नहीं मिला करते थे,वरन निदेशक को अपनी समझ बूझ से स्वयं तैयार करना पड़ता था।उन दिनों न तो प्रतिध्वनि कक्ष(ईको चैम्बर)हुआ करते थे और न रिकार्डिंग का दौर शुरु हुआ था ।आवश्यकता पड़ने पर "प्रेस्टो डिस्क"पर कच्ची रिकार्डिंग की जाती थी जो 33/1_3चक्र प्रति मिनट पर चलती थी जिसे दो तीन बार ही बजाया जा सकता था।नाटक प्रस्तुतकर्ता श्री अमृत लाल नागर जी को बाबू दुर्गा प्रसाद खत्री के उपन्यास "सफ़ेद शैतान"के नाट्य रुपान्तरण के एक दृश्य में संवादों में प्रतिध्वनि (ईको)देनी थी ।पुराने नाटक स्टूडियो (आजकल के सभाकक्ष) में एक बड़ा सा प्यानो रखा था (आज भी एक कोने रक्खा है)।नाटक के नायक श्री मुख़्तार अहमद ने उसके नीचे बैठकर संवाद बोले लेकिन उससे उतनी प्रतिध्वनि नहीं मिल रही थी जितना नागर जी चाहते थे।उन्हें तो किसी बड़ी गुफ़ा के अन्दर से बोलने पर पैदा होने वाली अनुगूंज चाहिए थी।श्री मुख़्तार अहमद ने कुछ देर सोचा और फ़िर एक तरकीब निकाली।रेडियो स्टेशन के परिसर में एक कुंआ था(अब उसे पाट दिया गया है)।नागर जी के लाख मना करने के उपरान्त भी श्री मुख़्तार माइक्रोफ़ोन लेकर एक रस्सी के सहारे उस कुंए में उतर गये।उनके संवादों की रिकार्डिंग "प्रेस्टो डिस्क"पर की गई जिसे बाद में नाटक के सजीव प्रसारण के समय यथास्थान बजाया गया ।"ऐसे महान और समर्पित कलाकारों से समृद्ध था आकाशवाणी लखनऊ !
एक और प्रसंग बताना चाहूंगा ।"...एक महिला पात्र का रोल निभाने वाली कलाकार नाटक के सजीव प्रसारण के अंतिम समय तक आ नहीं सकीं तो ड्रामा प्रोडयूसर श्रीजी0एम0शाह संभावित अनहोनी की पीड़ा से टहल ही रहे थे कि घर जा रहे स्टेशन डाइरेक्टर श्री हसीब इस बेचैनी का सबब पूछ ही बैठे।"...."मेन रोल गौहर का है और वह अभी तक आई नहीं है।लगता है ड्रामा को निरस्त करना पड़ेगा।"प्रोडयूसर बोले । "लाओ,स्क्रिप्ट ज़रा देखूं।"डाइरेक्टर ने कहा।"प्रस्तावित नाटक को निरस्त नहीं करना पड़ेगा।गौहर की भूमिका का रोल मैं अदा करुंगा।"बोल उठे डाइरेक्टर साहब....और सचमुच पूरे आधे घंटे के नाटक में डाइरेक्टर हसीब साहब ने स्त्री पात्र की भूमिका इतनी कुशलता से निभाई कि कोई इस बात का रंचमात्र अनुमान भी नहीं लगा सका कि बोलने वाला स्त्री नहीं कोई पुरुष था।"....ऐसे महान कलाकारों और अधिकारियों के कारण ही यह संभव हुआ होगा कि रेडियो नाटकों के मामले में लाहौर के बाद लखनऊ रेडियो का ही नाम आता था ।"
सचमुच आप आश्चर्य करेंगे इन बातों को जानकर।इन जैसे अनेक प्रकरणों का उल्लेख नवनीत मिश्र ने किया है।चाहे वह अनुपम खेर का नाटक "द स्ट्राइकर"में खिलाड़ी के रोल को स्वाभाविक बनाने के लिए स्टूडियो में फुटबाल खेलना रहा हो अथवा शिमला मूल के प्रोडयूसर श्री एस0एस0एस0ठाकुर द्वारा एक बार एक ही रेडियो नाटक में एक साथ ग्यारह पात्रों का रोल निभाने का कीर्तिमान स्थापित करना रहा हो ।रेडियो प्रेमियों के लिए यह पुस्तक पाठकीय आनन्द देगी ।
■पुस्तक-लखनऊ का आकाशवाणी,लेखक-नवनीत मिश्र,प्रकाशक/पुस्तक मंगाने का पता -हिन्दी वांगमय निधि53,ख़ुर्शेदबाग़,लखनऊ-226004लखनऊ,सहयोग राशि-बीस
रुपये,ईमेल;hamaralucknowpustakmala@gmail.comफ़ोन-0522 -2683132