मित्रों,मुझे एक फ़िल्मी गीत बहुत पसंद है।जिसके बोल हैं; "ज़िन्दगी इक सफ़र है सुहाना,यहां कल क्या हो किसने जाना।"सचमुच जीवन में हम हर क्षण एक सफ़र पर होते हैं और वह सफ़र अगर सुहाना हो और नजारे हसीं हों तो क्या कहने ! आप जानते ही हैं कि जीवन के झमेले कम नहीं होते हैं इसलिए उसे प्यार की झप्पी और हिम्मत और हौसला देते रहने के लिए पर्यटन एक टानिक का काम करता है।साल में एक बार ही सही अपने परिवार के साथ घर से दूर जाइये और कुछ दिन वहां बिताइये ,निश्चित रुप में आप अद्वितीय आनन्द पाएंगे । अगर आपको अपने अंदर की घुमक्कड़ी प्रवृत्ति में कीर्तिमान रचना है तो बेहिचक आप एक बार अंडमान हो आइये । फ़िलहाल तो हम आपको लिए चलते हैं उसी जगह जहां इस साल के विंटर वेकेशन में हमने यात्रा की, यात्रा अंडमान की, सागर के 572 सुंदर द्वीपों, टापुओं की ,समुन्दर के अंदर छिपे ख़जानों को निकट से देखने की,वाटर स्पोर्ट्स के रोमांच की और पन्ने व मूंगे की चट्टानों के एक वृहत समूह और आदिम बस्ती की !
लखनऊ से कोलकता जाने-आने के लिए हमने शाम 7-35बजे छूटने वाली इंडिगो की फ्लाइट सं0 6E6716 तथा 6E339चुनी थी जिसमें इकोनोमी क्लास के रिटर्न टिकट हेतु हमें रु08,034/-प्रति टिकट देना पड़ा था ।रात21-15पर हम कोलकता एयरपोर्ट पहुंच गये थे।अगली सुबह 7-05बजे कोलकता से जेट एयरवेज की फ्लाइट संख्या 9W0963 की इकोनोमी श्रेणी से रु011,087/-प्रति व्यक्ति टिकट पर हमने पोर्ट ब्लेयर के लिए उड़ान भरी ।बंगाल की खाड़ी के नीले समुन्दर के ऊपर से होते हुए हम लोग लगभग 9-30बजे पोर्ट ब्लेयर हवाई अड्डे पर उतरे।हल्की बारिश ने हमारा स्वागत किया।मौसम बेहद सुहाना था।लोकल टूर आपरेटर टैक्सी के साथ एयरपोर्ट पर मौजूद मिला और हम होटल पहुंच गये।तय हुआ आज शाम को सेल्यूलर जेल देखा जाय और उसमें शाम 6बजे से होने वाला लाइट एंड साउंड शो भी शामिल था ।लेकिन पहले आपके साथ कुछ अंडमान की बात !
बंगाल की खाड़ी में स्थित और अंडमान सागर की जल सीमा से सटे अंडमान निकोबार द्वीप समूह 572 खूबसूरत द्वीपों, टापुओं और पन्ने व मूंगे की चट्टानों का एक वृहत समूह है। जीवन की आपाधापी में लोगों को जिन जगहों की तलाश रहती है वह है अंडमान जहां उन्हें शहरों के कोलाहल से प्रदूषण से अलग प्राकृतिक वातावरण से रूबरू होने का मौका मिलता है। जहां आप कुछ समय के लिए अपने आप को मनमोहक प्राकृतिक सौंदर्य से जुड़ा पा सकेंगे। जहां की आसपास की वादियां,बीच,सागर की लहरें आपके मन की सारी पीड़ा दूर कर सकेंगी । अंग्रेज़ी हुकूमत ने नाम तो इसका "काला पानी"रखा था लेकिन यह जगह अब प्राकृतिक सौंदर्य के हर एक पल को अपने दिलों में बसाने की चाह रखने वालों के लिए एकदम मुफीद है । अंडमान द्वीप की लुभावनी हसीन वादियां और तटों से टकराती सागर की लहरें इस द्वीप की जान हैं। प्रकृति ने इस जगह के पहाड़ों, नदियों और जंगलों के सौंदर्य को पूरी तरह से भरा-पूरा बनाया है। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भारत का एक केन्द्र शासित प्रदेश है। यह द्वीप बंगाल की खाड़ी के दक्षिण में हिन्द महासागर में स्थित है। यहां की राजधानी पोर्ट ब्लेयर है। 2001 में की गई जनगणना के अनुसार यहां की जनसंख्या 356152 है। पूरे क्षेत्र का कुल भूमि क्षेत्र लगभग 6496 किमी या 2508 वर्ग मील है।पुरातत्व प्रमाणों के आधार पर यह पता चला है कि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में सबसे पहली बस्ती पाषाण युग के मध्य थी। कहा जाता है कि अंडमानी लोग अंडमान द्वीप के सबसे पहले निवासी थे। सन् 1850 तक अंडमानी बिलकुल अलग -थलग रहते थे। सन् 1850 के बाद ही वे लोग बाहरी दुनिया के संपर्क में आए। निकोबारी लोग निकोबार द्वीप के मूल निवासी थे। वे लोग निकोबार द्वीप समूह में शोंपेन के साथ रहते थे।
18 वीं सदी में अंग्रेजों के भारत में आने के बाद यह द्वीप वैश्विक परिदृश्य में उभरा। ब्रिटिश काल के दौरान इसे ‘कालापानी’ नाम दिया गया क्योंकि भारत की आजादी के दीवानों पर गंभीर आरोप लगाकर ब्रिटिश सरकार यहां कैद रखती थी। इस खूबसूरत द्वीप को एक ‘दंड काॅलोनी’ में बदल दिया गया था जहां आजीवन कैद काटने वालों को बंद रखा जाता था। लेकिन आज़ादी के बाद यह परिदृश्य बड़े पैमाने पर बदला है। शुरुआत में इस द्वीप समूह पर जाना वर्जित था और प्रतिष्ठित लोग इस द्वीप पर जाना नापसंद करते थे। लेकिन आज अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भारत के पर्यटन का सबसे ज्यादा पसंदीदा स्थान है। यहां मौजूद कई आकर्षक स्थानों ने इस जगह के पर्यटन में बहुत बढ़ावा किया है।अंडमान द्वीप की कुछ बेहद ख़ास जगहें हैं;लांग आईलैंड,नील द्वीप,रंगत डिगलीपुर,मायाबंदर,लिटिल अंडमान द्वीप समूह, आदि।और इसी तरह निकोबार द्वीप में
कच्छलकार ,निकोबारग्रेट ,निकोबार, आदि जगहें ज़रुर देखनी चाहिए।अंडमान की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में देखने वाली जगहें हैं-भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का मूक साक्षी सेल्यूलर जेल,मेरीना पार्क,राजीव गांधी वाटर स्पोर्ट्स स्टेडियम,चाथम स्थित गवर्मेन्ट सा मिल,अबरडीन बाज़ार का घंटाघर,मानव विज्ञान संग्रहालय,समुद्रिका संग्रहालय,मिनी चिड़ियाघर,जीव प्राणी संग्रहालय,जागर्स और गांधी पार्क,चिड़िया टापू,दक्षिणी अंडमान की सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला माउंट हेरियट आदि।
अंडमान और निकोबार द्वीप में कई आदिवासी जनजातियां अब भी अपने स्वाभाविक परिवेश में रहती हैं ।पिछली सुनामी में उनके आवास उजड़ चुके थे जिन्हें सरकार ने मरम्मत करवा दिए हैं।अंडमान के मुख्य द्वीपों में लैंड फाॅल द्वीप, मिडिल अंडमान, दक्षिण अंडमान, पोर्ट ब्लेयर और लिटिल अंडमान हैं। निकोबार दक्षिण में स्थित है और इसमें कार निकोबार, ग्रेट निकोबार, छोवरा, टेरेसा, ननकोवायर, कच्छल और लिटिल निकोबार शामिल हैं। द्वीपों में 12 द्वीप, खासकर कार निकोबार उत्तर में बसे हुए हैं जबकि ग्रेट निकोबार जो सबसे बड़ा और दक्षिणी छोर पर स्थित द्वीप है वह लगभग जनशून्य है।
इन द्वीपों के अस्तित्व के बारे में पहली जानकारी 9 वीं शताब्दी में अरब व्यापारियों से मिली थी जो सुमात्रा जाते समय इन द्वीपों के रास्ते यहां से गुजरे थे। यहां आने वाला पहला पश्चिमी व्यक्ति मार्को पोलो था जिसने इस जगह को ‘लैंड आॅफ हैड हंटर’ कहा था। 17 वीं सदी के अंत में मराठों ने इन द्वीपों पर कब्जा कर लिया। 18वीं शताब्दी की शुरुआत में यह बार बार ब्रिटिश, डच और पुर्तगाली व्यापारी जहाजोें पर कब्जा करने वाले मराठा एडमिरल कान्होजी आंग्रे का ठिकाना बन गया था। सन् 1729 में हुई आंग्रे की मृत्यु तक भी ब्रिटिश और पुर्तगाली नौसेना मिलकर भी आंग्रे को हरा नहीं पाई थी। सन् 1869 में अंग्रेजों ने निकोबार द्वीपों पर कब्जा कर लिया और उन्हें सन् 1872 में एक प्रशासनिक इकाई बनाने के लिए अंडमान द्वीपों से जोड़ दिया गया। सन् 1942 में जापानी सेना ने द्वीपों पर कब्जा कर लिया जो सन् 1945 में विश्व युद्ध के अंत तक कायम रहा। बाद में सन् 1947 में ब्रिटिश शासन से भारत की आजादी के बाद इन द्वीपों का नियंत्रण भारत को सौंप दिया गया ।
समुद्र के पास स्थित होने के कारण अंडमान और निकोबार में पूरा साल तापमान सामान्य ही रहता है। 80 प्रतिशत की नमी के साथ समुद्री हवा तापमान को 23 डिग्री सेल्सियस से 31 डिग्री सेल्सियस के बीच बनाए रखती है। इस द्वीप में मानसून की बरसात साल भर में अलग अलग चरणों में होती है। दक्षिण-पश्चिम हवाओं द्वारा लाया गया मानसून मध्य मई से शुरु होकर अक्टूबर की शुरुआत तक रहता है। इसके बाद डेढ़ महीने के अंतराल के बाद नवंबर में मानसून उत्तर-पूर्व से शुरु होता है और दिसंबर तक चलता है।
सन् 2011 की जनगणना के अनुसार देश के इन लोकप्रिय द्वीपों की आबादी 380381 है और इसका घनत्व 46 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर का है। यहां का लिंग अनुपात 1000 पुरूषों के मुकाबले 878 महिलाओं का है।हम लोग ठिठुरती ठंढ में कोलकता से पोर्ट ब्लेयर के लिए उड़ान भरे थे।उन दिनों दिल्ली सहित उत्तरी भारत के लोग 6डिग्री तक के तापमान पर आकर ठिठुर रहे थे तब यहां पोर्टब्लेयर में ख़ूब अच्छी धूप खिली हुई थी ..कभी कभी चुभती सी भी..और तापमान..26-28डिग्री..इससे ज्यादा तापमान हुआ तो यहां बादल महाराज कृपा कर देते हैं और बरस भी देते हैं..सो छाता हर समय साथ रखना पड़ता है..और हां इन दिनों यहां आम के पेड़ पर आम भी दिख रहे थे..खिली धूप,प्रकृति का कोमल अक्लांत रुप और पर्यटकों के खिले खिले चेहरे..।
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सेल्यूलर जेल
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जब मैनें अपनी यात्रा की शुरुआत की थी तो मेरे मित्र पूर्व समाचार वाचक श्री नवनीत मिश्र की एक बात मुझे याद आ गई जिसे आपसे शेयर करना चाहूंगा।उन्होंने कहा था कि हर भारतीय को अपने जीवन में एक बार सेल्यूलर जेल अवश्य देखनी चाहिए जिससे वह जान सके कि देश को आज़ादी सेंती(मुफ़्त)में नहीं मिली है।हमारे आज़ादी के दीवानों ने कितनी और कैसी कैसी यंत्रणाओं को झेला है।इस जेल को देखकर और इस पर बने लाइट और साउन्ड कार्यक्रम को सुनकर मन आकुल व्याकुल हो उठता है।कदाचित अंग्रेज़ी हुकूमत द्वारा की गई बर्बरता के ख़िलाफ भी।अंग्रेजी सरकार द्वारा भारत के स्वतंत्रता सैनानियों पर किए गए अत्याचारों की मूक गवाह इस जेल की नींव 1897 में रखी गई थी। इस जेल के अंदर 694 कोठरियां हैं। इन कोठरियों को बनाने का उद्देश्य बंदियों के आपसी मेल जोल को रोकना था। आक्टोपस की तरह सात शाखाओं में फैली इस विशाल कारागार के अब केवल तीन अंश बचे हैं। कारागार की दीवारों पर वीर शहीदों के नाम लिखे हैं।जेल के सामने शहीद पार्क में उन 6महान क्रान्तिकारियों की मूर्तियां देखी जा सकती हैं जिन्होंने जान जाय पर आजादी की मांग न जाय के लिए अपनी कुर्बानी दे दी।वे हैं शहीद इन्द्र भूषण राय,सरदार भान सिंह,पंडित राम रक्खा,महावीर सिंह,मोहित मित्रा और मोहन किशोर नमो दास। यहां एक संग्रहालय भी है जहां उन अस्त्रों को देखा जा सकता है जिनसे स्वतंत्रता सैनानियों पर अत्याचार किए जाते थे।विनायक दामोदर सावरकर हिंदुस्तान की आजादी के लिये अपने जीवन को कुर्बान कर गये ।ब्रिटिश राज में काला पानी की इस जेल का इतना खौफ था जितना कि फांसी या गोली मार देने का नही था । एकांत कारावास ही एकमात्र यातना नही थी उससे भी बडी यातना थी कोल्हू तेल की घानी । बंदियो से जो काम यहां पर कराये जाते थे उसमें से ये सबसे कठिन काम था । इसके कारण कई बंदी मर गये और कई का मानसिक संतुलन खराब हो गया । कोल्हू के बैल की तरह इसमें बंदियो को जोता जाता था । इससे मना करने पर उन्हे बैल की तरह ही डंडे से बांधकर पिटाई की जाती थी । इस कोल्हू की घानी के कारण ही इस जेल में विद्रोह हो पाया ।जहां पर इन दिनों लाइट और साउंड शो दिखाया जाता है उसी स्थल पर कोल्हू की घानी के अलावा नारियल की रस्सी बुनना , रस्सी बनाना , छिलके कूटने जैसे और भी काम थे जिन्हे कैदियों को निर्धारित समय व लक्ष्य के साथ पूरा करना पडता था । जो कैदी विरोध करते थे उन्हे तिरस्कृत कोठरी में रखा जाता था । मौत की सजा पाये कैदियो को भी फांसी की सजा हो जाने तक इन कोठरियो में रखा जाता था । इन कोठरियो के सामने ही फांसी घर था और वे कैदी सिर्फ फांसीघर को ही देखते रहते थे । वीर सावरकर को भी ऐसी ही तिरस्कृत कोठरी में रखा गया था । उस वीर शहीद की कोठरी को देखने के बाद कठोर से कठोर हृदय भी भावुक हो जाते हैं। कालापानी सम्बोधन देशनिकाला का पर्याय था । ऐसा स्थान जहां से एक बार जाने के बाद कोई वापस नही आ सकता था ।उसे भले फांसी ना मिले पर उसे वहीं पर मरना था । उस जमाने में इस द्वीप पर पहुंचना भी बहुत मुश्किल था और केवल सरकारी पानी के जहाज से ही कोई जा सकता था जो कि सरकारी नियंत्रण में थे । वैसे यहां पर बंदियो को रखा गया इससे ब्रिटिशो को दो फायदे होने वाले थे । तूफान में फंसे या यात्रा में रूकने के लिये ब्रिटेन से आने वाले जहाजो को यहां पर रूकाया जा सकता था पर तभी जब कोई स्थायी बस्ती इस द्धीप पर रहती हो और उस समय यहां पर कोई भी रहने के लिये तैयार नही होता तो बंदियो को लाने की वजह से यहां पर वो संभव हो पाया । बंदी आये तो उनको संभालने के लिये सैनिक , जेलर और अन्य कामो के लिये ब्रिटेन और भारत के लोगो को लाया गया और बन गयी यहां पर स्थायी बस्ती । जब तक इसका निर्माण नहीं हुआ था कैदियों को चाथम द्वीप के सा मिल परिसर में रखा गया ।
सबसे पहले 200 स्वतंत्रता सेनानियो को यहां पर लाया गया । एक क्रूरतम सजा में यहां के बंदियो पर और ज्यादा अत्याचार करने के लिये चेन गैंग बनाया गया । इसमें कई कैदियो को एक चैन से दिन रात बांधकर रखा जाता था । बताते हैं कि कैदियों की संख्या ज्यादाहोने पर वाइपर और रोज द्धीप पर भी जेलो का निर्माण कराया गया । एक बार यहां से दो सौ से ज्यादा कैदियो ने भागने की कोशिश की जिनमें से ज्यादतर कैदी भागने की कोशिश के दौरान मर गये और जो पकड़े गये उन सभी को एक ही दिन और समय में फांसी पर लटका दिया गया । कई बार तो यहां के आदिवासियो ने इन बस्तियो पर आक्रमण किया और उसमें भी बंदी ही मारे गये । कई सालो के बाद थोड़ी बहुत हड़ताल की शुरूआत हुई और उसके बाद जब अंडमान के यातनाओ के किस्से बाहर आने लगे तो विरोध प्रदर्शनो की भी शुरूआत हो गयी । हड़ताल को खत्म कराने के लिये उन सभी के मुंह में जबरदस्ती खाना ठूंसा गया लेकिन फिर भी कई राजनीतिक बंदियो की मृत्यु हो गयी । बहुत विरोध प्रदर्शनो के बाद कहीं जाकर वहां से ब्रिटिश सरकार ने वहां से बचे हुए राजनीतिक बंदियो को वापस बुला लिया गया । तब जाकर ये देश निकाला प्रथा समाप्त हुई ।
शाम ढल चुकी थी,रात उतरने लगी थी।हम लोग अब वापस होटल आ गये और रात का भोजन लेकर नींद की बाहों में चले गये।नींद ...लेकिन आज नींद आ क्यों नहीं रही है..शायद अब भी सेल्यूलर जेल के भयानक बैरक और यातना गृह ज़ेहन में हैं !
अपने जीवन की यह एक और नई सुबह थी ,एक बेहद खुशनुमा मौसम में हम अंडमान की धरती पर विचरण कर रहे थे,क़ैदी बन कर नहीं सैलानी बन कर ।आज हमें लोकल पर्यटन स्थल देखने हैं।
समुद्रिका:नवल मैरीन म्यूजियम
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पोर्ट ब्लेयर की घूमने वाली एक जगह है।वयस्क के लिए पचास रुपये का टिकट है।मैरीन एक्वैरियम कक्ष के अलावे फोटोग्राफी की जा सकती है।
गवर्मेन्ट सा मिल:चाथम
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प्रदेश के पर्यावरण और वन विभाग के नियंत्रण में काम कर रही इस सा मिल का ऐतिहासिक महत्व रहा है।इसका प्रवेश शुल्क दस रुपये है और यदि आपको गाइड लेना है तो उसका शुल्क अलग है।पोर्ट ब्लेयर प्रवास की अपनी अंतिम सुबह थी जब हम चाथम सा मिल देखने गये।इसका इतिहास सेल्युलर जेल बनने से भी पहले का है।पहले निजी स्वामित्व में था अब सरकारी।पहले चाथम आइलैन्ड हुआ करता था किन्तु द्वितीय विश्व युद्ध में जब इस पर भी बमबारी हुई तो यह क्षतिग्रस्त हो गया ।अब एक पुल के जरिये यह शहर से जुड़ा है।यहां नेताजी सुभाष चन्द्र बोस भी आजादी से पहले आ चुके हैं।इसी परिसर में शुरुआत में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में बन्द आन्दोलन कारियों को लाया गया था फिर उन्हें सेल्युलर जेल बनने पर शिफ्ट किया गया।अब भी इस मिल में हजारों लोग काम कर रहे हैं।इसके चारो ओर समुद्र है।मनोरम दृश्य है।
अंडमान प्रवास (पोर्ट ब्लेयर)की दूसरी रात।हमनें तलाश लिया है अपनी पसंद का शुद्ध शाकाहारी पंजाबी ढाबा जो कम लोकप्रिय है।उचित मूल्य पर भरपेट भोजन सुलभ हुआ।अगली सुबह हैवलाक द्वीप की तैयारी।वही हैवलाक जहां दिसम्बर में भारी बरसात और तूफान के चलते कुछ दिन पर्यटक फंस गये थे और जो पिछले दिनों काफ़ी सुर्खियों में रहा ।
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हैवलॉक द्वीप-ख़ूबसूरत ख़्वाब का हक़ीकत में तब्दील होना !
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यात्रा का तीसरा दिन।पोर्ट ब्लेयर से हैवलाक जाने के लिए सुबह 7 बजे हम बंदरगाह पर थे ।मरकज़ नामक डबल डेकर पानी के जहाज से हम सुबह 8बजे रवाना हुए और 9-30बजे हैवलाक पहुंचे।डिलक्स श्रेणी प्रति टिकट रु01400/-देना पड़ा और लगभग सभी औपचारिकताएं एयरपोर्ट जैसी ही निभानी पड़ी ।बंदरगाह पर लोकल ट्रेवेल एजेंट टैक्सी सहित मिला ।अब हम हैवलाक के समुद्री तट से काटेज में आ चुके हैं।पहले कुछ जानकारी । इस स्थान का नाम अंग्रेज़ हुकूमत के प्रधान हेनरी हैवलॉक के नाम पर रखा गयाहै। यह अंडमान का प्रमुख पर्यटक स्थल है और हर साल हजारों की संख्या में सैलानी इसे देखने आते हैं। यहाँ के पांचों गाँव गोविन्द नगर, राधा नगर, बिजोय नगर, शाम नगर, और कृष्णा नगर के समुंद्री तट अपने आप में बहुत अलग है। यहाँ का राधा नगर समुंद्री तट सब से बढ़िया समुंद्री तट है और 2004 में टाइम पत्रिका ने इसे एशिया का सबसे बेहतरीन तट घोषित किया है।
पोर्ट ब्लेयर से 55 कि.मी दूर और उत्तरी पूर्वी दिशा में स्थित हैवलॉक द्वीप के लिए पोर्ट ब्लेयर से दिन में 2 या 3 बार नियमित समय पर फैरी की सेवा उपलब्ध है। इसकी टिकट लग भग 5 से 8 अमेरिकी डॉलर के आस पास है। जबकि कटमरैन फैरी की टिकेट थोड़ी से ज्यादा है। अगर आप समय के पाबंद है तो पोर्ट ब्लेयर से पवन हंस चौपर द्वारा हैवलॉक पहुँच सकते हैं।बीच का पानी सच मानिए आइने की तरह साफ है।चांदी की तरह चमकती रेत और अदभुत कोरल इसकी ख़ूबसूरती में इजाफा करते मिलते हैं।अगर जीवन की भागम भाग से फ़ुर्सत पानी हो तो ज़रुर यहां आना चाहिए।सुकून मिलेगा आपके तन और मन को।सैर करते हुए हैवलॉक द्वीप देखना बढ़िया लगता है, सैर करते हुए आप यहाँ के सुन्दर समुंद्री तट, तटों पर बसे छोटे होटल और कुछ खरीदारी भी कर सकते हैं। राधा नगर तट की सफ़ेद रेत, समुद्र का नीला पानी ,यहाँ के लजीज सीफूड का आनंदलेते आराम से अपनी दुपहरिया कट गई । राधा नगर तट से थोड़ी दूर एलिफेंट तट है जो यहाँ का एक और पर्यटक स्थल है।सैलानियों को हैवलॉक द्वीप पर स्कूबा डाइविंग बहुत पसंद आती है। हैवलाक द्वीप पर स्कूबा डाइविंग बहुत किफ़ायती है और यहाँ अभियानी, शुरुआती, मध्यमवर्ती और अनुभवी डायवर्स के लिए डाइविंग की सेवा उपलब्ध है। स्कूबा डाइविंग समुद्र के अन्दर बसते जीवों को देखने का अच्छा विकल्प है।इसके अलावा ट्रैकिंग भी बहुत लोकप्रिय है ।यहाँ कई टूर आपरेटर सही और निर्देशित ट्रैकर्स की सूचना प्रदान करते हैं।
अगर आप तटों को देख कर थक चुके है और कुछ खरीददारी करना चाहते हैं तो यहाँ के स्थानीय बाज़ार में खरीदने के लिए हाथ से बनी चीज़े और एक्सेसरीस मिल जायेंगी। और हां, यहाँ तक आकर नारियल पानी पीना न भूले।यहां के कई होटलों में काफी किफायती दामों पर शराब और बीयर भी उपलब्ध है।सचमुच यहां आना,रहना,घूमना,खाना पीना मानो किसी ख़ूबसूरत ख़्वाब का हक़ीकत में तब्दील होने जैसा है।
नील आइलैन्ड:हैवलाक आइलैन्ड के पास ही यह छोटा टापू है जहां अक्सर टूरिस्ट एक दिन का प्रवास अवश्य करते हैं और यहीं से वे पोर्ट ब्लेयर वापस चले जाते हैं।एक ख़ास बात यह कि इस टापू के अधिकतल गांवों का नाम रामायण के चरित्रों पर पड़ा है,मसलन-भरतपुर,लक्ष्मणपुर,सीतापुर और रामपुर ।सूरज,चांद,समुद्र की लहरों का अजीब अठखेलियां करता दृश्य है हैवेलाक के इन बीचों पर।चाहे वह राधा नगर बीच हो,एलिफैन्ट बीच या काला पहाड़ बीच ।आप रोमांचित हुए बग़ैर नहीं रह सकते हैं।अगर आपको तैरना आता हो और वाटर स्पोर्ट्स में दिलचस्पी हो तो यहां और भी मजा ले सकते हैं।विकल्प में हमने ग्लास बोट से समुद्री तलहटी में तैर रही मछलियों और शैवालों को देखा ।
पोर्ट ब्लेयर-हैवेलाक में खान पान:
★★
पोर्ट ब्लेयर में सामिष निरामिष सभी प्रकार के भोजन लगभग ठीक दाम पर सुलभ हैं।मौसमी सब्जियां भी।सामिष भोजकों के ठाठ हैं।बिरियानी चिकन,चिकन रेशमी कबाब,फिश टिक्का,टांगरी कबाब,चिकन-फिश मंचूरियन,सी फूड की तमाम वेरायटी ,इटैलियन,आप ले सकते हैं।बिना लहसुन प्याज वालों के लिए थोड़ी दिक्कत है लेकिन होटल वाले व्यवस्था कर देते हैं।हैवेलाक में कुछ ज्यादा ही दिक्कत हमने महसूस की ।प्राय:होटल रुम के दैनिक किराये में ब्रेकफास्ट शामिल होता है इसलिए बेहिचक दबा लीजिएगा।हैवलाक में हम लोग बन्दरगाह के पास के गोविन्द नगर के एक बड़े होटल दि किंगडम के एसी डुप्लेक्स डबल स्टोरी सुविधा सम्पन्न काटेज में ठहरे थे जिसका किराया 6,200 रुपये प्रतिदिन था।डिलक्स रुम भी था जिसका किराया 4200/-था ।समुद्र एकदम बगल में।पोर्ट ब्लेयर में एम ए रोड,फोनिक्स बे स्थित हैवाज़ होटल में हम ठहरे थे।रुम सर्विस,बार,कार पार्किंग सुविधायुक्त।हर जगह स्कूबा डाइविंग और स्नोर्कलिंग की सुविधा मिलेगी जिसके लिए कुछ चार्जेज हैं।ग्लास बोट भी मिलेगी जिससे आप समुद्री जीव,शैवाल आदि देख सकते हैं।मून लाइट नाइट क्रूज,सनसेट क्रूज,ग्रैन्ड क्रूज,सुपर सेवर स्पीड बोट थोड़े मंहगे हैं और उपलब्ध हैं।एम0जी0रोड पोर्ट ब्लेयर में सागरिका इम्पोरियम से आप रुद्राक्ष,शंख आदि की खरीदारी कर सकते हैं।
हैवलाक में घूमने के लिए हालांकि दो दिन पर्याप्त है लेकिन हमारे टूर आपरेटर ने चार दिन रहने का प्रोग्राम बना डाला था।हैवलाक से सुबह 9-45पर हमने ग्रीन ओशन नामक जहाज पकड़ा ।लक्जरी क्लास के लिए किराया एक हजार प्रति व्यक्ति देना पड़ा।दिन में 12-15पर हम एक बार फिर पोर्ट ब्लेयर आ चुके थे।एक दिन यहां रुक कर हमें अगले दिन 2-55 पर स्पाइस जेट की फ्लाइट संख्याSG 254से कोलकता पहुंचना था ।इस यात्रा में इकोनामी क्लास में रु09,723/-प्रति टिकट देना पड़ा ।शाम 5-15पर हम कोलकता थे।हमारी यह काला पानी यात्रा अब अपने अंतिम पड़ाव पर थी।एक रात कोलकता रुक कर हम सभी सुबह 9-55बजे इंडिगो की फ्लाइट पकड़ कर वापस दिन में साढ़े बारह बजे के आसपास लखनऊ पहुंच गये ।हमें गर्व है कि हमने भी अपने इस जीवन में एक कीर्तिमान रचा है काला पानी की उस धरती का दर्शन करके जहां के ज़र्रे ज़र्रे में स्वतंत्रता सेनानियों का बलिदान समाया हुआ है।इसी काला पानी से भारत की गुलामी का अभिशाप आजादी के मतवालों ने समाप्त किया था ।
★★
सर्वथा अप्रकाशित-अप्रसारित ,मौलिक यात्रा वृत्तान्त है।
योगदान:प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी,पूर्व कार्यक्रम अधिकारी,आकाशवाणी,ईमेल;darshgrandpa@gmail.com
लखनऊ से कोलकता जाने-आने के लिए हमने शाम 7-35बजे छूटने वाली इंडिगो की फ्लाइट सं0 6E6716 तथा 6E339चुनी थी जिसमें इकोनोमी क्लास के रिटर्न टिकट हेतु हमें रु08,034/-प्रति टिकट देना पड़ा था ।रात21-15पर हम कोलकता एयरपोर्ट पहुंच गये थे।अगली सुबह 7-05बजे कोलकता से जेट एयरवेज की फ्लाइट संख्या 9W0963 की इकोनोमी श्रेणी से रु011,087/-प्रति व्यक्ति टिकट पर हमने पोर्ट ब्लेयर के लिए उड़ान भरी ।बंगाल की खाड़ी के नीले समुन्दर के ऊपर से होते हुए हम लोग लगभग 9-30बजे पोर्ट ब्लेयर हवाई अड्डे पर उतरे।हल्की बारिश ने हमारा स्वागत किया।मौसम बेहद सुहाना था।लोकल टूर आपरेटर टैक्सी के साथ एयरपोर्ट पर मौजूद मिला और हम होटल पहुंच गये।तय हुआ आज शाम को सेल्यूलर जेल देखा जाय और उसमें शाम 6बजे से होने वाला लाइट एंड साउंड शो भी शामिल था ।लेकिन पहले आपके साथ कुछ अंडमान की बात !
बंगाल की खाड़ी में स्थित और अंडमान सागर की जल सीमा से सटे अंडमान निकोबार द्वीप समूह 572 खूबसूरत द्वीपों, टापुओं और पन्ने व मूंगे की चट्टानों का एक वृहत समूह है। जीवन की आपाधापी में लोगों को जिन जगहों की तलाश रहती है वह है अंडमान जहां उन्हें शहरों के कोलाहल से प्रदूषण से अलग प्राकृतिक वातावरण से रूबरू होने का मौका मिलता है। जहां आप कुछ समय के लिए अपने आप को मनमोहक प्राकृतिक सौंदर्य से जुड़ा पा सकेंगे। जहां की आसपास की वादियां,बीच,सागर की लहरें आपके मन की सारी पीड़ा दूर कर सकेंगी । अंग्रेज़ी हुकूमत ने नाम तो इसका "काला पानी"रखा था लेकिन यह जगह अब प्राकृतिक सौंदर्य के हर एक पल को अपने दिलों में बसाने की चाह रखने वालों के लिए एकदम मुफीद है । अंडमान द्वीप की लुभावनी हसीन वादियां और तटों से टकराती सागर की लहरें इस द्वीप की जान हैं। प्रकृति ने इस जगह के पहाड़ों, नदियों और जंगलों के सौंदर्य को पूरी तरह से भरा-पूरा बनाया है। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भारत का एक केन्द्र शासित प्रदेश है। यह द्वीप बंगाल की खाड़ी के दक्षिण में हिन्द महासागर में स्थित है। यहां की राजधानी पोर्ट ब्लेयर है। 2001 में की गई जनगणना के अनुसार यहां की जनसंख्या 356152 है। पूरे क्षेत्र का कुल भूमि क्षेत्र लगभग 6496 किमी या 2508 वर्ग मील है।पुरातत्व प्रमाणों के आधार पर यह पता चला है कि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में सबसे पहली बस्ती पाषाण युग के मध्य थी। कहा जाता है कि अंडमानी लोग अंडमान द्वीप के सबसे पहले निवासी थे। सन् 1850 तक अंडमानी बिलकुल अलग -थलग रहते थे। सन् 1850 के बाद ही वे लोग बाहरी दुनिया के संपर्क में आए। निकोबारी लोग निकोबार द्वीप के मूल निवासी थे। वे लोग निकोबार द्वीप समूह में शोंपेन के साथ रहते थे।
18 वीं सदी में अंग्रेजों के भारत में आने के बाद यह द्वीप वैश्विक परिदृश्य में उभरा। ब्रिटिश काल के दौरान इसे ‘कालापानी’ नाम दिया गया क्योंकि भारत की आजादी के दीवानों पर गंभीर आरोप लगाकर ब्रिटिश सरकार यहां कैद रखती थी। इस खूबसूरत द्वीप को एक ‘दंड काॅलोनी’ में बदल दिया गया था जहां आजीवन कैद काटने वालों को बंद रखा जाता था। लेकिन आज़ादी के बाद यह परिदृश्य बड़े पैमाने पर बदला है। शुरुआत में इस द्वीप समूह पर जाना वर्जित था और प्रतिष्ठित लोग इस द्वीप पर जाना नापसंद करते थे। लेकिन आज अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भारत के पर्यटन का सबसे ज्यादा पसंदीदा स्थान है। यहां मौजूद कई आकर्षक स्थानों ने इस जगह के पर्यटन में बहुत बढ़ावा किया है।अंडमान द्वीप की कुछ बेहद ख़ास जगहें हैं;लांग आईलैंड,नील द्वीप,रंगत डिगलीपुर,मायाबंदर,लिटिल अंडमान द्वीप समूह, आदि।और इसी तरह निकोबार द्वीप में
कच्छलकार ,निकोबारग्रेट ,निकोबार, आदि जगहें ज़रुर देखनी चाहिए।अंडमान की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में देखने वाली जगहें हैं-भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का मूक साक्षी सेल्यूलर जेल,मेरीना पार्क,राजीव गांधी वाटर स्पोर्ट्स स्टेडियम,चाथम स्थित गवर्मेन्ट सा मिल,अबरडीन बाज़ार का घंटाघर,मानव विज्ञान संग्रहालय,समुद्रिका संग्रहालय,मिनी चिड़ियाघर,जीव प्राणी संग्रहालय,जागर्स और गांधी पार्क,चिड़िया टापू,दक्षिणी अंडमान की सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला माउंट हेरियट आदि।
अंडमान और निकोबार द्वीप में कई आदिवासी जनजातियां अब भी अपने स्वाभाविक परिवेश में रहती हैं ।पिछली सुनामी में उनके आवास उजड़ चुके थे जिन्हें सरकार ने मरम्मत करवा दिए हैं।अंडमान के मुख्य द्वीपों में लैंड फाॅल द्वीप, मिडिल अंडमान, दक्षिण अंडमान, पोर्ट ब्लेयर और लिटिल अंडमान हैं। निकोबार दक्षिण में स्थित है और इसमें कार निकोबार, ग्रेट निकोबार, छोवरा, टेरेसा, ननकोवायर, कच्छल और लिटिल निकोबार शामिल हैं। द्वीपों में 12 द्वीप, खासकर कार निकोबार उत्तर में बसे हुए हैं जबकि ग्रेट निकोबार जो सबसे बड़ा और दक्षिणी छोर पर स्थित द्वीप है वह लगभग जनशून्य है।
इन द्वीपों के अस्तित्व के बारे में पहली जानकारी 9 वीं शताब्दी में अरब व्यापारियों से मिली थी जो सुमात्रा जाते समय इन द्वीपों के रास्ते यहां से गुजरे थे। यहां आने वाला पहला पश्चिमी व्यक्ति मार्को पोलो था जिसने इस जगह को ‘लैंड आॅफ हैड हंटर’ कहा था। 17 वीं सदी के अंत में मराठों ने इन द्वीपों पर कब्जा कर लिया। 18वीं शताब्दी की शुरुआत में यह बार बार ब्रिटिश, डच और पुर्तगाली व्यापारी जहाजोें पर कब्जा करने वाले मराठा एडमिरल कान्होजी आंग्रे का ठिकाना बन गया था। सन् 1729 में हुई आंग्रे की मृत्यु तक भी ब्रिटिश और पुर्तगाली नौसेना मिलकर भी आंग्रे को हरा नहीं पाई थी। सन् 1869 में अंग्रेजों ने निकोबार द्वीपों पर कब्जा कर लिया और उन्हें सन् 1872 में एक प्रशासनिक इकाई बनाने के लिए अंडमान द्वीपों से जोड़ दिया गया। सन् 1942 में जापानी सेना ने द्वीपों पर कब्जा कर लिया जो सन् 1945 में विश्व युद्ध के अंत तक कायम रहा। बाद में सन् 1947 में ब्रिटिश शासन से भारत की आजादी के बाद इन द्वीपों का नियंत्रण भारत को सौंप दिया गया ।
समुद्र के पास स्थित होने के कारण अंडमान और निकोबार में पूरा साल तापमान सामान्य ही रहता है। 80 प्रतिशत की नमी के साथ समुद्री हवा तापमान को 23 डिग्री सेल्सियस से 31 डिग्री सेल्सियस के बीच बनाए रखती है। इस द्वीप में मानसून की बरसात साल भर में अलग अलग चरणों में होती है। दक्षिण-पश्चिम हवाओं द्वारा लाया गया मानसून मध्य मई से शुरु होकर अक्टूबर की शुरुआत तक रहता है। इसके बाद डेढ़ महीने के अंतराल के बाद नवंबर में मानसून उत्तर-पूर्व से शुरु होता है और दिसंबर तक चलता है।
सन् 2011 की जनगणना के अनुसार देश के इन लोकप्रिय द्वीपों की आबादी 380381 है और इसका घनत्व 46 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर का है। यहां का लिंग अनुपात 1000 पुरूषों के मुकाबले 878 महिलाओं का है।हम लोग ठिठुरती ठंढ में कोलकता से पोर्ट ब्लेयर के लिए उड़ान भरे थे।उन दिनों दिल्ली सहित उत्तरी भारत के लोग 6डिग्री तक के तापमान पर आकर ठिठुर रहे थे तब यहां पोर्टब्लेयर में ख़ूब अच्छी धूप खिली हुई थी ..कभी कभी चुभती सी भी..और तापमान..26-28डिग्री..इससे ज्यादा तापमान हुआ तो यहां बादल महाराज कृपा कर देते हैं और बरस भी देते हैं..सो छाता हर समय साथ रखना पड़ता है..और हां इन दिनों यहां आम के पेड़ पर आम भी दिख रहे थे..खिली धूप,प्रकृति का कोमल अक्लांत रुप और पर्यटकों के खिले खिले चेहरे..।
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सेल्यूलर जेल
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जब मैनें अपनी यात्रा की शुरुआत की थी तो मेरे मित्र पूर्व समाचार वाचक श्री नवनीत मिश्र की एक बात मुझे याद आ गई जिसे आपसे शेयर करना चाहूंगा।उन्होंने कहा था कि हर भारतीय को अपने जीवन में एक बार सेल्यूलर जेल अवश्य देखनी चाहिए जिससे वह जान सके कि देश को आज़ादी सेंती(मुफ़्त)में नहीं मिली है।हमारे आज़ादी के दीवानों ने कितनी और कैसी कैसी यंत्रणाओं को झेला है।इस जेल को देखकर और इस पर बने लाइट और साउन्ड कार्यक्रम को सुनकर मन आकुल व्याकुल हो उठता है।कदाचित अंग्रेज़ी हुकूमत द्वारा की गई बर्बरता के ख़िलाफ भी।अंग्रेजी सरकार द्वारा भारत के स्वतंत्रता सैनानियों पर किए गए अत्याचारों की मूक गवाह इस जेल की नींव 1897 में रखी गई थी। इस जेल के अंदर 694 कोठरियां हैं। इन कोठरियों को बनाने का उद्देश्य बंदियों के आपसी मेल जोल को रोकना था। आक्टोपस की तरह सात शाखाओं में फैली इस विशाल कारागार के अब केवल तीन अंश बचे हैं। कारागार की दीवारों पर वीर शहीदों के नाम लिखे हैं।जेल के सामने शहीद पार्क में उन 6महान क्रान्तिकारियों की मूर्तियां देखी जा सकती हैं जिन्होंने जान जाय पर आजादी की मांग न जाय के लिए अपनी कुर्बानी दे दी।वे हैं शहीद इन्द्र भूषण राय,सरदार भान सिंह,पंडित राम रक्खा,महावीर सिंह,मोहित मित्रा और मोहन किशोर नमो दास। यहां एक संग्रहालय भी है जहां उन अस्त्रों को देखा जा सकता है जिनसे स्वतंत्रता सैनानियों पर अत्याचार किए जाते थे।विनायक दामोदर सावरकर हिंदुस्तान की आजादी के लिये अपने जीवन को कुर्बान कर गये ।ब्रिटिश राज में काला पानी की इस जेल का इतना खौफ था जितना कि फांसी या गोली मार देने का नही था । एकांत कारावास ही एकमात्र यातना नही थी उससे भी बडी यातना थी कोल्हू तेल की घानी । बंदियो से जो काम यहां पर कराये जाते थे उसमें से ये सबसे कठिन काम था । इसके कारण कई बंदी मर गये और कई का मानसिक संतुलन खराब हो गया । कोल्हू के बैल की तरह इसमें बंदियो को जोता जाता था । इससे मना करने पर उन्हे बैल की तरह ही डंडे से बांधकर पिटाई की जाती थी । इस कोल्हू की घानी के कारण ही इस जेल में विद्रोह हो पाया ।जहां पर इन दिनों लाइट और साउंड शो दिखाया जाता है उसी स्थल पर कोल्हू की घानी के अलावा नारियल की रस्सी बुनना , रस्सी बनाना , छिलके कूटने जैसे और भी काम थे जिन्हे कैदियों को निर्धारित समय व लक्ष्य के साथ पूरा करना पडता था । जो कैदी विरोध करते थे उन्हे तिरस्कृत कोठरी में रखा जाता था । मौत की सजा पाये कैदियो को भी फांसी की सजा हो जाने तक इन कोठरियो में रखा जाता था । इन कोठरियो के सामने ही फांसी घर था और वे कैदी सिर्फ फांसीघर को ही देखते रहते थे । वीर सावरकर को भी ऐसी ही तिरस्कृत कोठरी में रखा गया था । उस वीर शहीद की कोठरी को देखने के बाद कठोर से कठोर हृदय भी भावुक हो जाते हैं। कालापानी सम्बोधन देशनिकाला का पर्याय था । ऐसा स्थान जहां से एक बार जाने के बाद कोई वापस नही आ सकता था ।उसे भले फांसी ना मिले पर उसे वहीं पर मरना था । उस जमाने में इस द्वीप पर पहुंचना भी बहुत मुश्किल था और केवल सरकारी पानी के जहाज से ही कोई जा सकता था जो कि सरकारी नियंत्रण में थे । वैसे यहां पर बंदियो को रखा गया इससे ब्रिटिशो को दो फायदे होने वाले थे । तूफान में फंसे या यात्रा में रूकने के लिये ब्रिटेन से आने वाले जहाजो को यहां पर रूकाया जा सकता था पर तभी जब कोई स्थायी बस्ती इस द्धीप पर रहती हो और उस समय यहां पर कोई भी रहने के लिये तैयार नही होता तो बंदियो को लाने की वजह से यहां पर वो संभव हो पाया । बंदी आये तो उनको संभालने के लिये सैनिक , जेलर और अन्य कामो के लिये ब्रिटेन और भारत के लोगो को लाया गया और बन गयी यहां पर स्थायी बस्ती । जब तक इसका निर्माण नहीं हुआ था कैदियों को चाथम द्वीप के सा मिल परिसर में रखा गया ।
सबसे पहले 200 स्वतंत्रता सेनानियो को यहां पर लाया गया । एक क्रूरतम सजा में यहां के बंदियो पर और ज्यादा अत्याचार करने के लिये चेन गैंग बनाया गया । इसमें कई कैदियो को एक चैन से दिन रात बांधकर रखा जाता था । बताते हैं कि कैदियों की संख्या ज्यादाहोने पर वाइपर और रोज द्धीप पर भी जेलो का निर्माण कराया गया । एक बार यहां से दो सौ से ज्यादा कैदियो ने भागने की कोशिश की जिनमें से ज्यादतर कैदी भागने की कोशिश के दौरान मर गये और जो पकड़े गये उन सभी को एक ही दिन और समय में फांसी पर लटका दिया गया । कई बार तो यहां के आदिवासियो ने इन बस्तियो पर आक्रमण किया और उसमें भी बंदी ही मारे गये । कई सालो के बाद थोड़ी बहुत हड़ताल की शुरूआत हुई और उसके बाद जब अंडमान के यातनाओ के किस्से बाहर आने लगे तो विरोध प्रदर्शनो की भी शुरूआत हो गयी । हड़ताल को खत्म कराने के लिये उन सभी के मुंह में जबरदस्ती खाना ठूंसा गया लेकिन फिर भी कई राजनीतिक बंदियो की मृत्यु हो गयी । बहुत विरोध प्रदर्शनो के बाद कहीं जाकर वहां से ब्रिटिश सरकार ने वहां से बचे हुए राजनीतिक बंदियो को वापस बुला लिया गया । तब जाकर ये देश निकाला प्रथा समाप्त हुई ।
शाम ढल चुकी थी,रात उतरने लगी थी।हम लोग अब वापस होटल आ गये और रात का भोजन लेकर नींद की बाहों में चले गये।नींद ...लेकिन आज नींद आ क्यों नहीं रही है..शायद अब भी सेल्यूलर जेल के भयानक बैरक और यातना गृह ज़ेहन में हैं !
अपने जीवन की यह एक और नई सुबह थी ,एक बेहद खुशनुमा मौसम में हम अंडमान की धरती पर विचरण कर रहे थे,क़ैदी बन कर नहीं सैलानी बन कर ।आज हमें लोकल पर्यटन स्थल देखने हैं।
समुद्रिका:नवल मैरीन म्यूजियम
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पोर्ट ब्लेयर की घूमने वाली एक जगह है।वयस्क के लिए पचास रुपये का टिकट है।मैरीन एक्वैरियम कक्ष के अलावे फोटोग्राफी की जा सकती है।
गवर्मेन्ट सा मिल:चाथम
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प्रदेश के पर्यावरण और वन विभाग के नियंत्रण में काम कर रही इस सा मिल का ऐतिहासिक महत्व रहा है।इसका प्रवेश शुल्क दस रुपये है और यदि आपको गाइड लेना है तो उसका शुल्क अलग है।पोर्ट ब्लेयर प्रवास की अपनी अंतिम सुबह थी जब हम चाथम सा मिल देखने गये।इसका इतिहास सेल्युलर जेल बनने से भी पहले का है।पहले निजी स्वामित्व में था अब सरकारी।पहले चाथम आइलैन्ड हुआ करता था किन्तु द्वितीय विश्व युद्ध में जब इस पर भी बमबारी हुई तो यह क्षतिग्रस्त हो गया ।अब एक पुल के जरिये यह शहर से जुड़ा है।यहां नेताजी सुभाष चन्द्र बोस भी आजादी से पहले आ चुके हैं।इसी परिसर में शुरुआत में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में बन्द आन्दोलन कारियों को लाया गया था फिर उन्हें सेल्युलर जेल बनने पर शिफ्ट किया गया।अब भी इस मिल में हजारों लोग काम कर रहे हैं।इसके चारो ओर समुद्र है।मनोरम दृश्य है।
अंडमान प्रवास (पोर्ट ब्लेयर)की दूसरी रात।हमनें तलाश लिया है अपनी पसंद का शुद्ध शाकाहारी पंजाबी ढाबा जो कम लोकप्रिय है।उचित मूल्य पर भरपेट भोजन सुलभ हुआ।अगली सुबह हैवलाक द्वीप की तैयारी।वही हैवलाक जहां दिसम्बर में भारी बरसात और तूफान के चलते कुछ दिन पर्यटक फंस गये थे और जो पिछले दिनों काफ़ी सुर्खियों में रहा ।
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हैवलॉक द्वीप-ख़ूबसूरत ख़्वाब का हक़ीकत में तब्दील होना !
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यात्रा का तीसरा दिन।पोर्ट ब्लेयर से हैवलाक जाने के लिए सुबह 7 बजे हम बंदरगाह पर थे ।मरकज़ नामक डबल डेकर पानी के जहाज से हम सुबह 8बजे रवाना हुए और 9-30बजे हैवलाक पहुंचे।डिलक्स श्रेणी प्रति टिकट रु01400/-देना पड़ा और लगभग सभी औपचारिकताएं एयरपोर्ट जैसी ही निभानी पड़ी ।बंदरगाह पर लोकल ट्रेवेल एजेंट टैक्सी सहित मिला ।अब हम हैवलाक के समुद्री तट से काटेज में आ चुके हैं।पहले कुछ जानकारी । इस स्थान का नाम अंग्रेज़ हुकूमत के प्रधान हेनरी हैवलॉक के नाम पर रखा गयाहै। यह अंडमान का प्रमुख पर्यटक स्थल है और हर साल हजारों की संख्या में सैलानी इसे देखने आते हैं। यहाँ के पांचों गाँव गोविन्द नगर, राधा नगर, बिजोय नगर, शाम नगर, और कृष्णा नगर के समुंद्री तट अपने आप में बहुत अलग है। यहाँ का राधा नगर समुंद्री तट सब से बढ़िया समुंद्री तट है और 2004 में टाइम पत्रिका ने इसे एशिया का सबसे बेहतरीन तट घोषित किया है।
पोर्ट ब्लेयर से 55 कि.मी दूर और उत्तरी पूर्वी दिशा में स्थित हैवलॉक द्वीप के लिए पोर्ट ब्लेयर से दिन में 2 या 3 बार नियमित समय पर फैरी की सेवा उपलब्ध है। इसकी टिकट लग भग 5 से 8 अमेरिकी डॉलर के आस पास है। जबकि कटमरैन फैरी की टिकेट थोड़ी से ज्यादा है। अगर आप समय के पाबंद है तो पोर्ट ब्लेयर से पवन हंस चौपर द्वारा हैवलॉक पहुँच सकते हैं।बीच का पानी सच मानिए आइने की तरह साफ है।चांदी की तरह चमकती रेत और अदभुत कोरल इसकी ख़ूबसूरती में इजाफा करते मिलते हैं।अगर जीवन की भागम भाग से फ़ुर्सत पानी हो तो ज़रुर यहां आना चाहिए।सुकून मिलेगा आपके तन और मन को।सैर करते हुए हैवलॉक द्वीप देखना बढ़िया लगता है, सैर करते हुए आप यहाँ के सुन्दर समुंद्री तट, तटों पर बसे छोटे होटल और कुछ खरीदारी भी कर सकते हैं। राधा नगर तट की सफ़ेद रेत, समुद्र का नीला पानी ,यहाँ के लजीज सीफूड का आनंदलेते आराम से अपनी दुपहरिया कट गई । राधा नगर तट से थोड़ी दूर एलिफेंट तट है जो यहाँ का एक और पर्यटक स्थल है।सैलानियों को हैवलॉक द्वीप पर स्कूबा डाइविंग बहुत पसंद आती है। हैवलाक द्वीप पर स्कूबा डाइविंग बहुत किफ़ायती है और यहाँ अभियानी, शुरुआती, मध्यमवर्ती और अनुभवी डायवर्स के लिए डाइविंग की सेवा उपलब्ध है। स्कूबा डाइविंग समुद्र के अन्दर बसते जीवों को देखने का अच्छा विकल्प है।इसके अलावा ट्रैकिंग भी बहुत लोकप्रिय है ।यहाँ कई टूर आपरेटर सही और निर्देशित ट्रैकर्स की सूचना प्रदान करते हैं।
अगर आप तटों को देख कर थक चुके है और कुछ खरीददारी करना चाहते हैं तो यहाँ के स्थानीय बाज़ार में खरीदने के लिए हाथ से बनी चीज़े और एक्सेसरीस मिल जायेंगी। और हां, यहाँ तक आकर नारियल पानी पीना न भूले।यहां के कई होटलों में काफी किफायती दामों पर शराब और बीयर भी उपलब्ध है।सचमुच यहां आना,रहना,घूमना,खाना पीना मानो किसी ख़ूबसूरत ख़्वाब का हक़ीकत में तब्दील होने जैसा है।
नील आइलैन्ड:हैवलाक आइलैन्ड के पास ही यह छोटा टापू है जहां अक्सर टूरिस्ट एक दिन का प्रवास अवश्य करते हैं और यहीं से वे पोर्ट ब्लेयर वापस चले जाते हैं।एक ख़ास बात यह कि इस टापू के अधिकतल गांवों का नाम रामायण के चरित्रों पर पड़ा है,मसलन-भरतपुर,लक्ष्मणपुर,सीतापुर और रामपुर ।सूरज,चांद,समुद्र की लहरों का अजीब अठखेलियां करता दृश्य है हैवेलाक के इन बीचों पर।चाहे वह राधा नगर बीच हो,एलिफैन्ट बीच या काला पहाड़ बीच ।आप रोमांचित हुए बग़ैर नहीं रह सकते हैं।अगर आपको तैरना आता हो और वाटर स्पोर्ट्स में दिलचस्पी हो तो यहां और भी मजा ले सकते हैं।विकल्प में हमने ग्लास बोट से समुद्री तलहटी में तैर रही मछलियों और शैवालों को देखा ।
पोर्ट ब्लेयर-हैवेलाक में खान पान:
★★
पोर्ट ब्लेयर में सामिष निरामिष सभी प्रकार के भोजन लगभग ठीक दाम पर सुलभ हैं।मौसमी सब्जियां भी।सामिष भोजकों के ठाठ हैं।बिरियानी चिकन,चिकन रेशमी कबाब,फिश टिक्का,टांगरी कबाब,चिकन-फिश मंचूरियन,सी फूड की तमाम वेरायटी ,इटैलियन,आप ले सकते हैं।बिना लहसुन प्याज वालों के लिए थोड़ी दिक्कत है लेकिन होटल वाले व्यवस्था कर देते हैं।हैवेलाक में कुछ ज्यादा ही दिक्कत हमने महसूस की ।प्राय:होटल रुम के दैनिक किराये में ब्रेकफास्ट शामिल होता है इसलिए बेहिचक दबा लीजिएगा।हैवलाक में हम लोग बन्दरगाह के पास के गोविन्द नगर के एक बड़े होटल दि किंगडम के एसी डुप्लेक्स डबल स्टोरी सुविधा सम्पन्न काटेज में ठहरे थे जिसका किराया 6,200 रुपये प्रतिदिन था।डिलक्स रुम भी था जिसका किराया 4200/-था ।समुद्र एकदम बगल में।पोर्ट ब्लेयर में एम ए रोड,फोनिक्स बे स्थित हैवाज़ होटल में हम ठहरे थे।रुम सर्विस,बार,कार पार्किंग सुविधायुक्त।हर जगह स्कूबा डाइविंग और स्नोर्कलिंग की सुविधा मिलेगी जिसके लिए कुछ चार्जेज हैं।ग्लास बोट भी मिलेगी जिससे आप समुद्री जीव,शैवाल आदि देख सकते हैं।मून लाइट नाइट क्रूज,सनसेट क्रूज,ग्रैन्ड क्रूज,सुपर सेवर स्पीड बोट थोड़े मंहगे हैं और उपलब्ध हैं।एम0जी0रोड पोर्ट ब्लेयर में सागरिका इम्पोरियम से आप रुद्राक्ष,शंख आदि की खरीदारी कर सकते हैं।
हैवलाक में घूमने के लिए हालांकि दो दिन पर्याप्त है लेकिन हमारे टूर आपरेटर ने चार दिन रहने का प्रोग्राम बना डाला था।हैवलाक से सुबह 9-45पर हमने ग्रीन ओशन नामक जहाज पकड़ा ।लक्जरी क्लास के लिए किराया एक हजार प्रति व्यक्ति देना पड़ा।दिन में 12-15पर हम एक बार फिर पोर्ट ब्लेयर आ चुके थे।एक दिन यहां रुक कर हमें अगले दिन 2-55 पर स्पाइस जेट की फ्लाइट संख्याSG 254से कोलकता पहुंचना था ।इस यात्रा में इकोनामी क्लास में रु09,723/-प्रति टिकट देना पड़ा ।शाम 5-15पर हम कोलकता थे।हमारी यह काला पानी यात्रा अब अपने अंतिम पड़ाव पर थी।एक रात कोलकता रुक कर हम सभी सुबह 9-55बजे इंडिगो की फ्लाइट पकड़ कर वापस दिन में साढ़े बारह बजे के आसपास लखनऊ पहुंच गये ।हमें गर्व है कि हमने भी अपने इस जीवन में एक कीर्तिमान रचा है काला पानी की उस धरती का दर्शन करके जहां के ज़र्रे ज़र्रे में स्वतंत्रता सेनानियों का बलिदान समाया हुआ है।इसी काला पानी से भारत की गुलामी का अभिशाप आजादी के मतवालों ने समाप्त किया था ।
★★
सर्वथा अप्रकाशित-अप्रसारित ,मौलिक यात्रा वृत्तान्त है।
योगदान:प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी,पूर्व कार्यक्रम अधिकारी,आकाशवाणी,ईमेल;darshgrandpa@gmail.com