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संगीत विरासत को सहेजने के लिए नये पंख मिले !

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अपने देश में संगीत,नृत्य और कला की अपनी समृद्ध विरासत से अनभिज्ञ लोगों के लिए यह शुभ संदेश है।जातीय और सांस्कृतिक समृद्धि के रुप में कई बड़े शहरों के कुछ कस्बे भी अपनी विशिष्टता के रुप में जाने जाते रहे हैं।कुछ ऐसा ही किस्सा है कथक नृत्य के जन्म और पोषण के एक ऐसे ही केन्द्र से जुड़ा जो आज इतिहास के गलियारों में गुम सा हो गया है।इलाहाबाद- वाराणसी मार्ग के बीच में पड़ने वाले हंडिया तहसील का एक गांव है किचकिला जिसकी अंतरंगता किसी ज़माने में कथक नृत्य,तबला वादन और सारंगी वादन जैसी विशिष्ट विधाओं से रही है।मुगलों के आने के पहले यहां के निवासी मिश्र ब्राम्हण ईश्वरी प्रसाद शास्त्रीय संगीत एवं नृत्य के पुरोधाओं में गिने जाते थे।बाद में इनकी वंशजों अड़गू महराज,खड़गू महराज व तुलगू महराज ने उस विधा को आगे बढ़ाया।इन्ही की वंश परम्परा में लच्छू महराज,बिरजू महराज,सितारा देवी,किशन महराज जैसी अंतरराष्ट्रीय ख्याति वाली विभूतियां सामने आईं।

अंग्रेजी शासन काल में उनके अत्याचारों और उपेक्षा के चलते जब इनका पलायन शुरु हुआ तो हंडिया का यह इलाका अपनी प्राचीनतम समृद्ध संगीत परम्परा से कटता चला गया और अब इतिहास के हाशिए पर आ चुका है ।आगे चलकर लखनऊ,जयपुर,बनारस जैसे संगीत घराने बने और यह इलाका भुला दिया गया ।पिछले दिनों कथक केन्द्र इलाहाबाद की निदेशक गुरु उर्मिला शर्मा ने हंडिया की इस संगीत विरासत को नए सिरे से शोधपूर्वक खंगालने और संरक्षित करने का बीड़ा उठाया है और इसे स्थानीय जिला प्रशासन के सहयोग से कथक केन्द्र के रुप में पुन:विकसित करने की योजना बनाई है।यहां से निकली कथक और संगीत से जुड़ी विभूतियों के लिए प्रेरणा स्थल परिसर बनाकर उनकी प्रतिमा स्थापित करने,कथक नृत्य का विश्वविद्यालय स्थापित करने की उनकी महत्वाकांक्षी योजनाएं हैं।केन्द्रीय सांस्कृतिक मंत्रालय की टीम ने इस बाबत शुरुआती सर्वेक्षण भी कर लिया है।इस योजना से नि:सन्देह नई पीढ़ी को अपनी समृद्ध संगीत विरासत से जुड़ने और उस दिशा में समृद्धि को नये पंख मिलने की आशा बलवती हुई है।

दैनिक जागरण(लखनऊ)से साभार इनपुट के साथ प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी,कार्यक्रम अधिकारी,(से0नि0)आकाशवाणी,लखनऊ।मोबाइल नं09839229128ईमेलdarshgrandpa@gmail.com

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