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रचना : न पासपोर्ट न वीसा ,क्यों न चलें ओड़िसा !

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रिटायरमेंट के बाद ब्लाग लेखन और पर्यटन के एक जबर्दस्त जुनून ने मेरे जीवन में प्रवेश किया है।30 अगस्त 2013 को जब मैं रिटायर हुआ तो पहले कुछ महीने री -डिप्लायमेंट की मृग मरीचिका ने मुझे भटकाया और फिर आगे के कुछ महीने उस मृग मरीचिका से उपजे मानसिक अवसाद से उबरने में लगे।सच मानिए लगभग एक साल(2014) तो इसी में गुजर गया ।अचानक मुझे ख़याल आया कि बरसों से मन में दबी कुचली विदेश यात्रा की चाह को क्यों न पूरी कर ली जाय !मैं इतना खुशनसीब तो था नहीं कि सरकारी खर्चे पर ही विदेश घूम पाऊं ।विदेश को कौन कहे स्वदेश में भी जब सरकारी अवसर मिलता तो सहकर्मी भाई लोग(और ख़ास तौर से बहन लोग)लपक लेते थे ।सो,मौका भी था और दस्तूर भी कि अब घूम ही लें ।वर्ष 2015 के शुरुआती तीन महीने में मैनें यूरोपीय देशों की सैर करने की तैयारी की औपचारिकताओं को पूरी करने में बिताते हुए ब्रिटेन सहित लगभग एक दर्जन देशों की यात्राएं कीं और कुछ नये रोमांच और अनुभव के पृष्ठ अपनी जिन्दगी की किताब में जोड़े ।महसूस हुआ कि तमाम सरकारी दावों के बावज़ूद अभी भी विदेश यात्रा में पासपोर्ट और वीसा की औपचारिकताएं एक आम नागरिक के लिए बेहद थकाने वाली हुआ करती हैं।कार्पोरेट घरानों,पूंजीपतियों और पोलिटिकल लोग अपवाद हो सकते हैं जो साम,दाम,दन्ड से काम करा लें।ख़ैर,हम भी उस दौर से गुजरे और विदेश घूमने की हसरत पूरी हुई।लेकिन इस साल मेरे पर्यटन स्थल का प्रोजेक्ट था-उड़ीसा । 

तो मैनें भी सोचा कि - न पासपोर्ट न वीसा क्यों न चलें ओड़िसा ! ओड़िसा विभिन्न नामों से जाना जाता है यथा,कलिंग,उत्कल,कोंगद,ओड्रदेश,ओड़िसा ।भारत के पूर्वी समुद्र तट पर स्थित यह राज्य प्राचीन कलाकृति,भव्य मंदिर,मनोरम हस्तशिल्प और विस्तृत फल फूलों के लिए जाना जाता है।ओड़िसा के स्वर्ण त्रिभुज के रुप में पुरी के जगन्नाथ मंदिर,कोणार्क के सूर्य मंदिर और राजधानी भुवनेश्वर के लिंगराज मंदिर को माना जाता है। हमनें अपनी यात्रा लखनऊ से कानपुर तक सड़क मार्ग से तय करके नई दिल्ली -भुवनेश्वर राजधानी सुपर फास्ट ट्रेन पकड़ी।नियत समय से लगभग दो घंटे की विलम्ब से बिना किसी तात्कालिक उदघोषणा के ट्रेन प्लेटफार्म पर आ गई ।यात्रा में चौंकने की मानो यह शुरुआत थी।अगली शाम पांच बजे इसे भुवनेश्वर पहुंचना था लेकिन कटक में यह तीन घंटे विलम्बित होकर आगे सिग्नल फेल की घोषणा के साथ खड़ी हो गई।पैन्ट्री सेवा बंद हो गई थी और सिग्नल कब ठीक होगा यह तय नहीं।मैनें प्रभु जी (रेल मंत्रालय)को ट्वीट किया और प्रभु ने देर से ही सही भुवनेश्वर के लिए लटके यात्रियों को चाय पिलवाई।सुपर फास्ट ट्रेन सुपर लेट ट्रेन बनकर रात 10-30बजे भुवनेश्वर पहुंची,पूरे पांच घटे लेट ।देर रात हम होटल में।हां,अगली सुबह ब्रेकफास्ट लेकर घूमने के लिए हमने एक टैक्सी तय कर ली।दुर्गाष्टमी का दिन था ।हमने भोजनादि करके देर रात तक आसपास के भव्य पंडालों की आकर्षक दुर्गा प्रतिमाओं का आशीष लिया ।माइक पर भजन उड़िया में बज रहे थे सो हमनें अपनी भावांजलि दी।

ब्लाग रिपोर्ट-प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी,कार्यक्रम अधिकारी(आकाशवाणी)लखनऊ(से0नि0),मोबाइल 9839229128.
ओड़िसा का मुख्य आकर्षण है उसका मनोहारी समुद्र और उसके ऐतिहासिक धार्मिक मंदिर ।नारियल और केले के फैले बागीचे और चारो ओर फैली हरियाली इसकी प्राकृतिक सुंदरता को और बढ़ाते हैं।प्रदेश के मुख्य शहर कटक,भुवनेश्वर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विख्यात श्री जगन्नाथ पुरी हैं जिसे संस्कारी हिन्दुओं का एक अनिवार्य धाम भी कहा जाता है।भुवनेश्वर या पुरी को केन्द्र बनाकर पर्यटक अनेक मशहूर स्थलों को देखने जा सकते हैं।गोल्डेन सी बीच चन्द्रभागा,सूर्य मंदिर कोनार्क,रामचन्दी मंदिर,पंचमुखी हनुमान मंदिर एक दिवसीय ट्रिप में,सतपदा टूर (बरकुल स्थित चिलका लेक टूर और डाल्फिन प्रोजेक्ट)और अलरनाथ मंदिर दूसरे दिन,रघुराज पुर(क्राफ्ट विलेज),पिपिली,मीरापुर स्थित चौरासी योगिनी मंदिर,भगवान श्रीकृष्ण का साक्षी गोपाल मंदिर तीसरे दिन घूमा जा सकता है।चौथे दिन नन्दन कानन जू,खन्डागिरी हिल,उदयागिरी और धौलागिरी गुफ़ाओं को देखने के लिए रखा जा सकता है।यदि पर्यटन के रोमांच को और बढ़ाना हो तो गोपालपुर सी बीच,तप्तापानी,सिमिलीपल,नेशनल टाइगर रिसर्व फारेस्ट,फुलबनी हिल स्टेशन और ट्राइबल विलेज कोरापुट को देखना चाहिए।इस यात्रा में मेरा अनुभव यह रहा है कि कुछ अवांछित तत्व हर कदम पर बाहरी पर्यटकों को ठगने के लिए जाल बिछाए बैठे मिले ,हम भी कई बार कई तरीके से ठगे गये जिसका जिक्र आगे करुंगा।इसलिए इस ठगी से बचने के लिए उड़ीसा की स्टेट टूरिज्म की बस या टैक्सी,उनके स्टीमर बोट और उनके गाइडों की सेवाएं ही लेनी चाहिए।प्राइवेट दुकान या विक्रेताओं से काजू किशमिश या स्टोन आदि कत्तई मत खरीदेंगे वरना घर आकर पछताएंगे,हम सबकी तरह।हां,यहां के मंदिरों में पंडागिरी का भी रौद्र रुप दिखा।असहाय लोगों के हाथ से नोट तक छीन लेने का घृणित दृश्य देखने को मिला ।पता नहीं प्रदेश सरकार को इन सबकी जानकारी है या नहीं।अनुभव बताता है कि उड़ीसा के पर्यटन उद्योग को रसातल में ले जाने के लिए कुछ लोग उद्यत हैं।उन पर नियंत्रण होना चाहिए।

सचमुच ओड़िसा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित लिंगराज मंदिर को यहां मौजूद मंदिरों में सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है। इसका निर्माण 1800 ई0में उत्कल के केशरी वंशी नरेश ललाटेन्दु केशरी द्वारा हुआ था । इस मंदिर के लिए मान्यता है कि लिट्टी एवं वसा नामक दो राक्षसों का वध देवी पार्वती ने यहीं पर किया था, लड़ाई के बाद जब उन्हें प्यास लगी तो भगवान शिव ने कुआं बना कर सभी नदियों का आह्वान किया।यह मंदिर वैसे तो भगवान शिव को समर्पित है परन्तु शालिग्राम के रूप में भगवान विष्णु भी यहां मौजूद हैं। मंदिर के निकट बिंदुसागर सरोवर है। 180 फुट के शिखर वाले मंदिर का प्रांगण 150 मीटर वर्गाकार का है और कलश की ऊंचाई 40 मीटर है।वास्तुकला की दृष्टि से लिंगराज मंदिर, जगन्नाथपुरी मंदिर और कोणार्क मंदिर लगभग एक जैसी विशेषताएं समेटे हुए हैं। बाहर से देखने पर मंदिर चारों ओर से फूलों के मोटे गजरे पहना हुआ-सा दिखाई देता है। मंदिर के चार हिस्से हैं - मुख्य मंदिर और इसकेअलावा यज्ञशाला, भोग मंडप और नाट्यशाला।एक बात समान मिली और वह यह कि यहां भी पंडा जी लोगों की छापामारी प्रचुर मात्रा में चाहे अनचाहे सुलभ है,अपने उत्तर भारतीय तीर्थ स्थलों की तरह ।फिर भी भुवन के इस स्वामी जी के मंदिर का दर्शन लाभ सुखकर है। ओड़िसा प्रदेश के समुद्री अप्रवाही जल में बनी झील है चिलिका झील । यह भारत की सबसे बड़ी एवं विश्व की दूसरी सबसे बड़ी समुद्री झील है।इसको चिल्का झील के नाम से भी जाना जाता है। यह एक अनूप है एवं उड़ीसा के तटीय भाग में नाशपाती की आकृति में पुरी जिले में स्थित है। यह 70 किलोमीटर लम्बी तथा 30 किलोमीटर चौड़ी है। यह समुद्र का ही एक भाग है जो महानदी द्वारा लायी गई मिट्टी के जमा हो जाने से समुद्र से अलग होकर एक छिछली झील के रूप में हो गया है। दिसम्बर से जून तक इस झील का जल खारा रहता है किन्तु वर्षा ऋतु में इसका जल मीठा हो जाता है। इसकी औसत गहराई 3 मीटर है।इस झील के पारिस्थितिक तंत्र में बेहद जैव विविधताएँ हैं। यह एक विशाल मछली पकड़ने की जगह है। यह झील 132 गाँवों में रह रहे 150,000 मछुआरों को आजीविका का साधन उपलब्ध कराती है।इस खाड़ी में लगभग 160 प्रजातियों के पंछी पाए जाते हैं। कैस्पियन सागर, बैकाल झील, अरब सागर और रूस, मंगोलिया, लद्दाख, मध्य एशिया आदि विभिन्न दूर दराज़ के क्षेत्रों से यहाँ पछी उड़ कर आते हैं। ये पंछी विशाल दूरियाँ तय करते हैं। प्रवासी पंछी तो लगभग 12000किमी से भी ज्यादा की दूरियाँ तय करके चिल्का झील पंहुचते हैं।1981 में, चिल्का झील को रामसर घोषणापत्र के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय महत्व की आद्र भूमि के रूप में चुना गया। यह इस महत्व वाली पहली भारतीय झील थी।एक सर्वेक्षण के मुताबिक यहाँ 45% पछी भूमि, 32% जलपक्षी और 23% बगुले हैं। यह झील 14 प्रकार के रैपटरों का भी निवास स्थान है। लगभग 152 संकटग्रस्त व रेयर इरावती डॉल्फ़िनों का भी ये घर है। इसके साथ ही यह झील 37 प्रकार के सरीसृपों और उभयचरों का भी निवास स्थान है। उच्च उत्पादकता वाली मत्स्य प्रणाली वाली चिल्का झील की पारिस्थिकी आसपास के लोगों व मछुआरों के लिये आजीविका उपलब्ध कराती है। मॉनसून व गर्मियों में झील में पानी का क्षेत्र क्रमश: 1165 से 906 किमी2 तक हो जाता है। एक 32 किमी लंबी, संकरी, बाहरी नहर इसे बंगाल की खाड़ी से जोड़ती है। सीडीए द्वारा हाल ही में एक नई नहर भी बनाई गयी है जिससे झील को एक और जीवनदान मिला है।लघु शैवाल, समुद्री घास, समुद्री बीज, मछलियाँ, झींगे, केकणे आदि चिल्का झील के खारे जल में फलते फूलते हैं।लगभग पूरा दिन इस झील को देखने में लग जाता है और डाल्फिनों की उछल कूद देखना संयोग पर निर्भर करता है।

पुरी,कोणार्क और भुवनेश्वर के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं-श्री जगन्नाथ मंदिर और आषाढ़ शुक्ल द्वितीय में निकलने वाली रथ यात्रा,श्री गुन्डीचा मंदिर जनकपुर,श्री लोकनाथ जी मंदिर,नरेन्द्र चंदन पुरी,विशाल समुद्र तट ,साक्षी गोपाल मंदिर(पुरी),मुख्य द्वार ,सूर्य मंदिर,तीन आकृतियों में सूर्य देवता,रथ चक्र,योद्धा घोड़े (कोणार्क),और भुवनेश्वर में धउली गिरी शांति स्तूफ,मुक्तेश्वर मंदिर,लिंगराज मंदिर,खन्डगिरि-उदया गिरि गुफ़ाएं और नन्दन कानन जू जो सफेद बाघ और बंगाल टाइगर के लिए मशहूर है ।श्री जगन्नाथ मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में गंग वंश के प्रतापी राजा अनंग भीमदेव द्वारा हुआ था।यह मंदिर कलिंग स्थापत्य कला और शिल्पकला अआ अदभुत उदाहरण है।पंच रथ का आकार लिए इस मंदिर की ऊंचाई 214फुट है।चारो तरफ की दीवारों को मेघनाद प्राचीर कहते हैं जिसकी लम्बाई 660फुट और ऊंचाई 20फुट है।इस मंदिर के चार भाग हैं-विमान,जगमोहन,नाट्य मंडप और भोग मंडप ।आषाढ़ शुक्ल द्वितीय तिथि में यहां से रथ यात्रा निकलती है।श्री जगन्नाथ जी ,बड़े भाई श्री बलभद्र जी और बहन सुभद्रा देवी के साथ सुसज्जित तीन रथों पर बैठकर श्री गुंडीचा मंदिर को जाते हैं।श्री जगन्नाथ जी के रथ को नन्दिघोष,श्री बलभद्र जी के रथ को तालध्वज और श्री सुभद्रा जी के रथ को देव दलन कहा जाता है।इस मंदिर में मुख्यत: तीन विग्रह हैं-बायें ओर से श्री बलभद्र जी,बीच में श्री सुभद्रा मैय्या और दाहिने ओर श्री जगन्नाथ जी ।ये विग्रह नींम की लकड़ी के बने हैं ।लगभग 12साल के अंतराल पर जिस साल मलमास या दो आषाढ़ आता है उसी साल नव कलेवर यानी नई मूर्तियां बनाई जाती हैं।

श्री जगन्नाथ मंदिर से लगभग दो कि0मी0की दूरी पर श्री गुन्डीचा मंदिर है जिसकी लम्बाई 430फुट और चौड़ाई 320फुट है।राजा इन्द्रमदुम्न की रानी गुन्डीचा के नाम पर स्थित इस मंदिर में श्री जगन्नाथ महाप्रभु रथयात्रा के दौरान यहीं लगभग एक सप्ताह रहते हैं।पुरी का सबसे प्राचीन मंदिर है श्री लोकनाथ जी मंदिर जिसमें शंकर भगवान श्री लोकनाथ जी के नाम से पूजित होते हैं।वे श्री जगन्नाथ जी के भंडार रक्षक हैं।शिवरात्रि में यहां एक बड़ा मेला लगता है।बताया जाता है कि श्री रामचन्द्र जी ने लंका जाते समय यहां शिव जी की पूजा अर्चना की थी।
यहीं पर चन्दन तालाब(नरेन्द्र तालाब)भी है जिसकी लम्बाई 873फुट और चौड़ाई 834फुट है ।उत्कल नरेश भानुदेव जी के मंत्री नरेन्द्र देव ने इसे खुदवाया था जहां 21दिनों तक जगन्नाथ जी का जल विहार उत्सव मनाया जाता है।पुरी के समुद्र तट के क्या कहने हैं।श्री मंदिर के दक्षिण पूर्व दिशा में बंगाल की खाड़ी अपने मनोरम आकर्षण में पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देती है।यहां की शाम सैलानियों से रंगीन हो उठती है।बच्चों के लिए घोड़े,ऊंट की सवारी उपलब्ध है तो वृद्ध जन किराए की कुर्सी पर बैठकर लहरें गिन सकते हैं ।युवाओं का समुद्र स्नान भी आनन्द देने वाला है ।खाने पीने के भरपूर इंतजाम हैं।उत्ताल तरंगों का अपना आकर्षण है जो आप तक आकर मानों चरण छूकर लौट जाती हैं।यहीं एक स्वर्ग द्वार नामक घाट भी है जहां दाह संस्कार करके आत्माओं को मुक्ति मिलने की धारणा है।

पुरी से लगभग 18कि0मी0दूर साक्षी गोपाल मंदिर है जिसमें श्रीकृष्ण जी की सुंदर मूर्ति विराजमान है।पुरी से लगभग 36कि0मी0चलकर इसी मार्ग पर कोणार्क का यूनेस्को संरक्षित विश्व प्रसिद्ध सूर्य मंदिर मिलता है।यह सूर्य उपासना का प्रधान पीठ है जो सन 1200ई0में उत्कल नरेश लांगुला नरसिंह देव जी द्वारा निर्मित हुआ ।बारह साल ,बारह साल के राजस्व खर्च में 1200शिल्पियों की कड़ी मेहनत से बने इस मंदिर की कारीगरी कौशल अद्वितीय है।मंदिर की पूर्व दिशा में मंदिर के प्रवेश द्वार पर दोनों ओर ऐश्वर्यपूर्ण सिंह ने हाथी को दबा रखा है । इन दो सिंहों की लम्बाई 8.4फुट,चौड़ाई 4.9फुट,ऊंचाई 9.2फुट और वज़न......आप सुनकर चौंक जाएंगे 27.48टन ।जी हां, और यह सब कुछ एक ही पत्थर से बना है।यहां तीन आकृति में सूर्य देवता हैं।मंदिर के दक्षिण ओर उदित सूर्यदेव(ऊंचाई8.3फुट)पश्चिम की ओर मध्यान्ह सू्र्य देव(ऊंचाई 9.6फुट) और उत्तर की ओर अस्त सूर्यदेव(ऊंचाई3.49मीटर)विराजमान हैं।और अब सूर्य देवता के रथ चक्रों की बात।कोणार्क सूर्यमंदिर का निर्माण एक रथ समान सूर्यदेव के लिए बनाया गया था।इसमें24पहिए(चक्र)हैं।हर पहिए में 8 आरा हैं जिसकी व्यास9.9फुट है।पूरा पहिया उत्कृष्ट शिल्पकला से सुसज्जित है।बात यहीं ख़त्म नहीं होगी।मंदिर के दक्षिण ओर अलंकार से विभूषित दो भड़कीले योद्धा घोड़े भी हैं ।हर घोड़े की लम्बाई 10फुट और चौडाई7फुट की है।हुज़ूर,ये मामूली घोड़े नहीं हैं क्योंकि ओडिसा सरकार ने अपनी सरकारी मुहर में इन्हें ही प्रतीक चिन्ह बनाया है।

मित्रों,कोणार्क की अपनी रोचक कहानी है।इस कहानी को फिर कभी सुनाऊंगा।फिलहाल तो इतना ही।और हां,छुट्टियां आने ही वाली हैं ।आप भी हो आइये ओड़िसा।न पासपोर्ट न वीसा,क्यों न चलें ओड़िसा !




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