कंप्यूटर के लिए सॉफ्टवेयर बनाने वाले हाथों ने खेतों में जादू बो दिया। उसने अपनी अक्लमंदी से जर्जर खेतों में जांन फूंक दी जिससे माटी सोना और फसलें हीरा-मोती हो गईं। किसानों के चेहरे खिल उठे। बड़े इलाके की किस्मत बदल गई। महज चार महीने में एक शख्स ने एक करोड़ रुपए की सेल कर किसानों के चेहरों पर से मायूसी को मुसकुराहट में बदल दिया है।साल भर पहले पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर मधुचंदन सी. अमेरिका के कैलीफोर्निया में बतौर आईटी प्रोफेशनल लक्जरी लाइफ बिता रहे थे। लेकिन अपने देश के किसानों के हालात देख उनके सीने में टीस उठी और वे सबकुछ छोड़ इंडिया वापस आ गए।
37 वर्षीय मधुचंदन मूलरूप से कर्नाटक के मांड्या से ही हैं। वे अमेरिका में काम जरूर कर रहे थे लेकिन उनकी आत्मा बसती मांड्या में ही थी। किसान परिवार से ही ताल्लुक रखते हैं इसलिए बचपन खेत-खलिहानों में खेलते बीता। पिता बेंगलुरु के कृषि विश्वविद्यालय में वाइस चांसलर थे। विश्वविद्यालय के आस-पास करीब 300 एकड़ में खेत फैले थे। आखिरकार साल 2014 में मधु ने किसानों और उनके खेतों के लिए कुछ कर गुजरने की ठानी और सबकुछ छोड़कर मांड्या आ गए।मधु कहते हैं कि किसान हमेशा होलसेल में बेचता है, लेकिन उसे हमेशा फुटकर खरीदना पड़ता है। वे अपनी और अपने परिवारों की देखभाल नहीं कर पाते हैं। आखिर में भारी कर्ज तले वे आत्महत्या कर लेते हैं। यह एक दिल को कंपा देने वाली स्थिती है। किसानों को खुशहाल करने की जरूरत है ताकि कोई इस पेशे को छोड़े नहीं।
मधु ने सबसे पहले जुझारू लोगों को इकट्ठा किया। इनमें ज्यादातर लोग उनके साथ काम करने वाले और दोस्त थे। सबने मिलकर एक करोड़ रुपए लगाकर मांड्या ऑर्गैनिक फार्मर्स को-ऑपरेटिव सोसायटी बनाई। पहले फेज में करीब 240 किसानों को साथ लिया। सोसायटी के पंजीकरण और तमाम सरकारी औपचारिकताओं के पूरा होने में करीब आठ महीने का वक्त लगा। इस दौरान ऑर्गैनिक मांड्या ब्रैंड बनकर तैयार हुआ जिसके अंतर्गत किसान खुद की उगाई फसलों और खाद्य पदार्थों को बेचने लगे।मधु ने बेंगलुरु और मैसूर को जोड़ने वाले मांड्या हाईवे पर लोगों का ध्यान खींचने के लिए ऑर्गैनिक रेस्टोरेंट खोला। इसी में एक कोने में जैविक चीजों की दुकान भी बनाई। मधु के मुताबिक उन्हें लगा था कि वहां से आने-जाने वाले लोग कम से कम खाने-पीने के बहाने वहां ठहरेंगे और कभी-कभार जैविक दुकान की ओर भी रुख कर लेंगे। लेकिन एक महीने बाद सूरत ही बदल गई। लोग पहले उस ऑर्गेनिक दुकान में घुसते फिर खाने के लिए जाते।
मधु की मानें तो ऑर्गेनिक मांड्या की असली खूबसूरती है ग्राहकों और किसानों का मेल।
मधु कहते हैं कि ग्राहक को ऑर्गैनिक चीजों से हिचकिचाहट होती है, वहीं एक 24 साल का किसान ज्यादा केमिकल की वजह से कैंसर से दम तोड़ देता है तो ऐसे में जैविक खेती के लिए सामंजस्य बैठाना बड़ा मुश्किल होता है। इसके लिए ग्राहकों और किसानों को एक कॉमन प्लेटफॉर्म पर आना बेहद जरूरी है ताकि दोनों मिलकर समस्या का हल खोज सकें। इसी को ध्यान में रखकर कंपनी ने ऑर्गैनिक टूरिज्म यानी जैविक पर्यटन की शुरुआत की। स्वेट डोनेशन कैंपेन, फार्म शेयर, टीम एट फार्म जैविक टूरिज्म के हिस्सा हैं।टीम एट फार्म की पहल कुछ कंपनियों को इतनी पसंद आई के वे अपने कर्मचारियों को एक दिन के टूर पर भेजने लगीं। इस टूर के लिए एक दिन की फीस 1300 रुपए रखी गई है।
6 महीनों में जैविक मांड्या सफलता का स्वाद चखने लगा है। 500 पंजीकृत किसान 200 एकड़ जमीन में दाल, चावल, खाद्य तेल, पेय पदार्थ, मसालों और हेल्थ केयर उत्पादों समेत तमाम चीजों की 70 अलग-अलग किस्में पैदा कर रहे हैं। इन सभी चीजों की बिक्री से चार महीने में एक करोड़ की बिक्री हुई है। सबसे बड़ी बात अब मांड्या में पलायन कर जा चुके किसान वापस आने लगे हैं। अब तक 57 किसानों की अपनी जमीन पर वापसी हुई है।अगले एक साल में मधु ने 10 हजार परिवारों के लिए खेती कर 30 करोड़ के खाद्य पदार्थों की सप्लाई करने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए 1000 रुपए सालाना देकर वे परिवार पंजीकरण करा सकते हैं। इसके जरिए वे हर उत्पाद पर भारी छूट पाएंगे और उन्हें हेल्दी ईटिंग प्रेक्टिस से रूबरू कराया जाएगा।साल 2020 तक पूरे मांड्या जिले में कृषि की सफलता के झंडे गाड़ना मधु का सपना है। मधु की तरह आप भी खेत-खलिहानों और किसानों के चेहरे पर फिर से रौनक ला सकते हैं।
स्टोरी सोर्स- social.yourstory.com