अक्सर कानून की दुनियाँ के लोग अपनी मशरूफियत के चलते साहित्य, संगीत और सामाजिक सरोकारों से चाहकर भी जुड़ नहीं पाते हैं ।लेकिन मैने अपनी सेवाकाल में अपवाद स्वरूप कुछ उन महान हस्तियों का सानिध्य भी पाया है जिन्होंने कानून के साथ साथ अन्य क्षेत्रों में भी अपनी उत्कृष्ट सहभागिताएं दर्ज की थीं और इसीलिए वे आज भी हम सबकी यादों में रचे बसे हुए हैं ।आज मैं बात करूंगा जस्टिस हरिश्चन्द्र पति त्रिपाठी की जो इलाहाबाद उच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश और रिटायरमेंट के बाद अनेक आयोगों के चेयरमैन तो थे ही लम्बे अरसे तक आकाशवाणी गोरखपुर और इलाहाबाद के एक उम्दा वार्ताकार भी थे ।
उनका जन्म पहली सितम्बर उन्नीस सौ नौ को गोरखपुर के भिटहां(डवरपार) गांव में हुआ था ।इनके पिता संस्कृत के लब्ध प्रतिष्ठित विद्वान पं० शिवशंकर त्रिपाठी थे जिन्होंने विख्यात संस्कृत ग्रन्थ "सनातन धर्म कल्पद्रुमः"की रचना की थी ।इनके बड़े भाई पं० श्रीकांत त्रिपाठी भी संस्कृत व्याकरण और साहित्य के मर्मज्ञ थे जिन्होंने "बालगीतम"और "श्रीकांत कविता कलापम"की रचनाएँ कीं ।पं० मदनमोहन मालवीय जी की छत्रछाया में का० हि० वि० वि० में जस्टिस त्रिपाठी की शिक्षा दीक्षा बी० ए०, एल० एल० बी० स्तर तक की सम्पन्न हुईं और इतना ही नहीं पढ़ाई के दौरान 1929-30 में महामना मालवीय जी के साथ सत्याग्रह में शरीक होकर जेल भी गये ।मालवीय जी ने इन्हें का० हि० वि० वि० में ही सेवा करने का प्रस्ताव दिया किन्तु अपने पिताजी की असमय मृत्यु के कारण उन्हें वाराणसी छोड़ कर गोरखपुर आना पड़ा जहां उन्होंने 1934 से वकालत शुरू की ।इन्हीं दिनों इनकी शादी असुरैना(नेपाल) के एक प्रतिष्ठित परिवार के श्री लखपति शुक्ल की एकमात्र पुत्री मूर्ति देवी से हुई । इनको एक पुत्री हुई जिनका नाम सरोजिनी रखा गया ।मां सरस्वती की कृपा तो इस परिवार पर पहले से ही थी ,सरोजिनी के आगमन से मानो इस परिवार में लक्ष्मी का भी आगमन हो गया ।पूर्वी उ० प्र० की चौदह चीनी मिलों ने इन्हें अपना कानूनी सलाहकार नियुक्त किया ।गोरखपुर में इनका एक शानदार मकान बना ।किन्तु 1937 में इनकी पत्नी मूर्ति देवी क्षयरोग के चलते असमय दिवंगत हो गई । छोटी बच्ची का लालन पालन और आगे चलकर उसकी शादी का कर्तव्य निर्वहन उनके बड़े भाई ने किया ।थोड़े ही समय में इनकी विधिक विशेषज्ञता ने इन्हें सुर्खियों में ला दिया । पहले गोरखपुर की जिला कचहरी और फिर1961 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में इन्हें फौजदारी के शासकीय अधिवक्ता की जिम्मेदारी मिली ।1963 में इन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनाया गया जहां 1971 तक इन्होंने उच्च कोटि का दायित्व निर्वहन किया ।परिवार चलाने के लिए अग्रजों ने संस्कृत के उदभट विद्वान आचार्य मंडन मिश्र के परम मित्र पं० काली प्रसाद मिश्र की पुत्री सुशीला से इनका दूसरा विवाह कराया था जिनसे इनकी दो और पुत्रियाँ तथा चार पुत्र हुए ।
सेवानिवृत्त होते ही इन्हें हिमाचल उच्च न्यायालय शिमला में अस्थायी न्यायाधीश, रेलवे रेट्स ट्रिब्यूनल चेन्नई के चेयरमैन सहित अनेक जिम्मेदारी अंतिम दिनों तक सौंपी जाती रही ।इन सभी के अलावा वे आकाशवाणी के एक नियमित वार्ताकार बने रहे ।कानूनी विषयों पर इनकी वार्ताओं का प्रसारण होता रहा ।साथ ही गोरखपुर और इलाहाबाद के सामाजिक जीवन में भी इनकी सक्रियता बनी रही ।आज भी इलाहाबाद में हिन्दुस्तानी एकेडमी, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, नागरी प्रचारिणी सभा और अनेक शिक्षण संस्थाओं के लोग इनकी सहभागिता को याद किया करते हैं ।लगभग तीन दशक तक अपने ओजस्वी स्वर ,चुम्बकीय व्यक्तित्व और त्रिभाषीय ज्ञान से इलाहाबाद के साहित्य, संगीत और संस्कृति संसार को इन्होंने आलोकित किया ।अन्ततः7अप्रैल 1995 को इस महान कर्मयोगी ने संसार से विदाई ली ।इनके चारो पुत्र आई० ए० एस० हुए जिनमें से तीन(सर्वश्री धनन्जय पति, सुशील चन्द्र और प्रकाश चन्द्र त्रिपाठी) सेवानिवृत्त होकर दिल्ली में ही बस गये हैं और एक सबसे छोटे श्री सुधीर चन्द्र त्रिपाठी अभी भी झारखंड कैडरबद्ध होकर दिल्ली में प्रतिनियुक्ति पर हैं ।पहली पत्नी मूर्ति देवी से पैदा संतान सरोजिनी की शादी गोरखपुर के गांव सरयां विश्वनाथपुर के पं० भानुप्रताप राम त्रिपाठी के पुत्र प्रख्यात एडवोकेट आचार्य प्रतापादित्य से हुई थी जिनका परिवार गोरखपुर में ही रहता है और ब्लॉग लेखक उन्हीं की संतान हैं ।
जस्टिस त्रिपाठी को आकाशवाणी गोरखपुर ने अपने लोकप्रिय कार्यक्रम "समय के हस्ताक्षर"में जिन दिनों रिकार्डिंग हेतु बुलाया तो उन दिनों केन्द्र निदेशक के रूप में काजी अनीस उल हक़ पोस्टेड थे ।इनके व्यक्तित्व और कृतित्त्व पर गोरखपुर के जिला सरकारी अधिवक्ता( फौजदारी)जनाब वकील अहमद साहब ने बातचीत की थी । इनके व्यक्तित्व से केन्द्र के निदेशक इतना प्रभावित हुए कि प्रायः इन्हें गोरखपुर रिकार्डिंग हेतु बुलाने लगे ।उधर आकाशवाणी इलाहाबाद में पं० नर्मदेश्वर चतुर्वेदी हिन्दी कार्यक्रम के प्रोडयूसर हुआ करते थे ।वे या तो उन्हें सादर स्टूडियो बुलाया करते थे अथवा अक्सर अपना छोटा मेलट्रान लेकर किसी सहयोगी के साथ कमला नेहरू मार्ग स्थित इनके बंगले पर ही रिकार्डिंग के लिए पहुंच जाया करते थे ।जिन दिनों मैं भी इलाहाबाद में पोस्टेड था तो वे मुझे भी साथ ले जाते और खुश होकर कहा करते थे कि वैसे तो इलाहाबाद में विद्वानों की कमी नहीं है किन्तु हिन्दी, अंग्रेज़ी और संस्कृत की विलक्षण वक्तृत्वकला सिर्फ जस्टिस त्रिपाठी में ही मिलती है ।इलाहाबाद प्रवास में मैंनें भी कुछ महीनों तक उनका सानिध्य पाया था ।यद्यपि आज उनके कठोर परिश्रम के परिचायक गोरखपुर और इलाहाबाद के आलीशान भवन बिक चुके हैं जिसने अपने आंगन से इस परिवार को ढेरों उपलब्धियां दी थीं फिर भी उनके व्यक्तित्व की सुरभि अब भी लोगों के मन मंदिर में मौजूद है ।
आज हमारे बीच यद्यपि जस्टिस एच० सी० पी० त्रिपाठी मूर्त रूप में विद्यमान नहीं हैं किन्तु उनकी विलक्षण वक्तृत्वकला की याद अब भी मन मस्तिष्क में रची बसी है ।उन्हींकी तरह मुझे याद आता है एक और इसी कोटि के बहुआयामी प्रतिभा के धनी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के ही माननीय जस्टिस पालोक बसु का नाम जिन्होंने बरसों तक आकाशवाणी इलाहाबाद के नाटकों में भाग लिया था और प्रोडयूसर विनोद रस्तोगी के अत्यंत प्रिय कलाकार थे ।ऐसे विलक्षण संस्मरणों को याद करते हुए आज भी मैं रोमांच का अनुभव करता हूँ और ऐसे प्रसंगों और उससे जुड़े लोगों को याद करते हुए भावाकुल हो उठता हूँ ।
ब्लॉग रिपोर्ट - प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी, लखनऊ; मोबाइल नंबर 9839229128.