खूबसूरत और बड़े-बड़े कजरारे नैनों वाली बॉलीवुड अभिनेत्री माला सिन्हा की अभिनय प्रतिभा ने हर किसी को अपना दीवाना बना लिया। 78 वर्ष की होने के बावजूद उनके चेहरे पर आज भी वही चमक बरकरार है। माला सिन्हा ऑल इंडिया रेडियो यानी आकाशवाणी की अनुमोदित गायिका रह चुकी हैं।
जब वह महज सोलह साल की थीं, तो उन्हीं दिनों आकाशवाणी के कलकत्ता (अब कोलकाता) केंद्र के स्टूडियो में लोकगीत गाया करती थीं। उन्होंने भले ही फिल्मों के लिए गीत न गाए हों, लेकिन 1947 से 1975 तक कई भाषाओं में मंच पर गायन किया। उनका जन्म 11 नवंबर, 1936 को कलकत्ता के एक ईसाई परिवार में हुआ। उनके माता-पिता मूल रूप से नेपाल के रहने वाले थे। माला के जन्म से पहले ही वे कलकत्ता आकर बस गए। बचपन में माला का आलडा रख गया था, लेकिन उनकी सहेलियां व दोस्त उन्हें डालडा (वनस्पति तेल का एक ब्रांड) कहकर चिढ़ाते थे। बेटी को परेशान देख माता-पिता ने नाम बदलकर माला रख दिया। माला सिन्हा को बचपन से ही गीत और नृत्य में बड़ी दिलचस्पी थी। उन्होंने हिंदी के अलावा बांग्ला और नेपाली फिल्मों में भी काम किया है। वह अपनी प्रतिभा और सौंदर्य के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने वर्ष 1950 से लेकर 1960 के दशक तक सौ से अधिक हिंदी फिल्मों में अपने अभिनय के जलवे बिखेरे। माला सिन्हा ने अपने करियर की शुरुआत एक बांग्ला फिल्म 'जय वैष्णो देवी'में एक बाल कलाकार के रूप में की। इसके बाद वह एक के बाद एक कई फिल्मों में अपनी अदाओं से दर्शकों को मोहती रहीं और नए कीर्तिमान स्थापित किए।
माला सिन्हा का विवाह मुंबई में 1968 में चिदंबर प्रसाद लोहनी से हुआ। इसके बाद दोनों ने नेपाली फिल्म 'माइती घर'में साथ में काम किया। इस दंपति की एक बेटी है- प्रतिभा सिन्हा। प्रतिभा को भी कई फिल्में मिलीं, मगर मां जितनी शोहरत नहीं मिल सकी। माला सिन्हा की यादगार फिल्में हैं 'प्यासा', 'धूल का फूल', 'दिल तेरा दीवाना', 'गुमराह'और 'हिमालय की गोद में'। इसके अलावा 'पैसा ही पैसा', 'एक शोला', 'नया जमाना', 'फैशन', 'प्यासा', 'फिर सुबह होगी', 'परवरिश', 'मैं नशे में हूं', 'लव मैरिज', 'माया', 'सुहाग सिन्दूर', 'धर्मपुत्र', 'हरियाली और रास्ता', 'दिल तेरा दीवाना', ,'सुहागन', 'जहां आरा', 'पूजा के फूल', 'अपने हुए पराये', 'बहू बेटी'व 'नई रोशनी'जैसी फिल्मों में भी उन्होंने अपने अभिनय की छाप छोड़ी। माला बड़ी अभिनेत्री बनीं, लेकिन किसी को उनमें जरा भी घमंड नहीं दिखा। वह अपने संस्कार नहीं भूलीं। वह अपने पिता की आज्ञाकारी बेटी रही हैं। मां उन्हें घरेलू लड़की ही मानती थीं। वह घरेलू कामों में निपुण हैं। आज भी वह सादगी भरा जीवन व्यतीत करती हैं। सन् 1950 से 1960 के दशक की इस अभिनेत्री से कोई मिले तो बातचीत में वह आज भी उसे वही ताजगी का अहसास कराती हैं और मन मोह लेती हैं। आज की नई अभिनेत्रियां उनसे काफी कुछ सीखकर अभिनय के क्षेत्र में आगे बढ़ सकती हैं।
Forwarded By :- Shri. Jainender Nigam, PB NewsDesk prasarbharati.newsdeskgmail.com