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My Retired Life: डा0मधु श्रीवास्तव : स्वयं से साक्षात्कार !

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मुझे आकाशवाणी की अपनी दीर्घकालीन सेवा के दौरान ज्यादातर ऐसे लोगों का सानिध्य मिला है जो यथा नाम तथा गुण की कहावत से सम्पन्न मिले हैं ।उनके व्यक्तित्व की एक विशिष्टता यह भी रही कि वे हर परिस्थितियों में अपनी पहचान से अलग नहीं हुए ,तब भी , जबकि परिणाम उनकी अपेक्षानुरुप न रहा हो ।ऐसी ही हैं मधु जी ।मूलत:बरेली की रहने वाली डा0मधु श्रीवास्तव की मैं आज चर्चा करने जा रहा हूं जिन्होंने अपनी लम्बी सेवाएं हमेशा समर्पित भाव से आकाशवाणी को दी हैं। अपने कार्य निष्पादन के दौरान मैनें हमेशा उनको मुस्कुराते हुए पाया है ।आकाशवाणी लखनऊ में राजभाषा अधिकारी रहते हुए प्राय:उन्हें केन्द्र का डी0डी0ओ0भी बनाया जाता रहा है ।तब भी कभी उनमें तनाव या झल्लाहट नहीं दिखाई दी ।इसीलिए इस गुण के चलते वे सभी की प्रिय पात्र भी बनी रहीं ।डा. मधु श्रीवास्तव का जन्म 2 दिसम्बर 1948 को एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था।उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में पहले एम.ए. और फिर “ड्रैमेटिक मोनोलॉग इन विक्टोरियन इरा विद स्पेशल रिफ़रेन्स टु रोबर्ट ब्राउनिंग” विषय पर पी0एच0डी0की उपाधि ली ।सेवाकाल और उसके बाद भी उनकी रचनात्मक सक्रियता निरन्तर बनी रही है और हिंदी व अंग्रेज़ी के विभिन्न समाचार – पत्रों और जर्नल्स में उनके लेख समय- समय पर प्रकाशित होते रहे हैं ।

यथा नाम तथा गुण को शत प्रतिशत चरितार्थ करने वाली इन विदुषी ने फ्रांस के लघुकहानीकार मोपासां की चर्चित कहानियों का अंग्रेज़ी से हिंदी में अनुसृजन भी किया है । इनकी पुस्तक “सूनेपन का साथ” सन्मार्ग प्रकाशन, दिल्ली से वर्ष 2002 में प्रकाशित हुई थी जिसकी समीक्षकों ने भरपूर सराहना की ।एक और पुस्तक भारतीय त्यौहारों पर प्रकाशन के लिए लगभग तैयार है ।आकाशवाणी की सेवा की शुरुआत इन्होंने एक उदघोषक के रुप में की थी । वे आकाशवाणी कानपुर और आकाशवाणी लखनऊ में 1973 से 1989 तक उदघोषक के रूप में नियुक्त रहीं। इस अवधि में ओ.बी. पर आधारित अनेक रूपक बनाए और कलाजगत कार्यक्रम की कवरेज व संचालन भी करती रहीं । आगे फ़रवरी 1989 से31दिसम्बर2008तक अपनी आगे के सेवाकाल में उन्होंने आकाशवाणी लखनऊ, उच्च शक्ति प्रेषित्र, किंग्ज़वे कैंप, दिल्ली और मुख्य अमियंता कार्यालय (उत्तर क्षेत्र), आकाशवाणी एवं दूरदर्शन, नई दिल्ली में हिंदी अधिकारी के रूप में कार्य किया। आकाशवाणी लखनऊ में कार्य करने के दौरान नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, लखनऊ से हिन्दी के कार्यान्वयन के लिए निरंतर प्रथम पुरस्कार मिलता रहा। राजभाषा विभाग, (गृह मंत्रालय) के (उत्तर क्षेत्र) गाज़ियाबाद स्थित कार्यालय द्वारा “क” क्षेत्र में राजभाषा के कार्यान्वयन के लिए सन् 1998 और 1999 में इनकी तत्परता और सेवा भावना से आकाशवाणी लखनऊ को प्रथम पुरस्कार मिला।आकाशवाणी को लगभग पैंतीस साल अपनी मूल्यवान सेवाएं देकर सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने क्लासिकल साहित्य पढ़ने, शास्त्रीय, उपशास्त्रीय संगीत सुनने, अनुवाद करनेऔर उसकी वेटिंग करने तथा शेयर मार्केट में रुचि लेना अपनी दिनचर्या का अंग बना लिया है ।उन्होंने ब्लाग लेखक से बातचीत के दौरान बताया कि "सेवानिवृत्ति के बाद यह जीवन का वह सुनहरा अवसर है जब हम स्वयं से साक्षात्कार करते हैं। हर दिन अपने को बेहतर इंसान बनाने का प्रयास करते हैं। जब हम कुछ देर ठहर कर “म्यूज़िक ऑव द स्फ़ियर्स” सुनने की कोशिश कर सकते हैं। सच में यह अद्भुत अनुभव है। जीवन का अमृत है - “अच्छा करो, अच्छा बनो”। उनके प्रिय गायक कलाकार हैं पं0जसराज,पं0भीमसेन जोशी,उस्ताद बड़े गुलाम अली खां,पं0डी0बी0पलुस्कर ।हां,एक और बात यह कि उन्हें संस्कृत hymns सुनना बेहद पसंद है ।साथ ही फूलों और pets में उनकी जान बसती है ।उन्होंने एक स्थान पर अपनी जिन्दगी का फलसफा कुछ इन शब्दों में बयां किया है;

"Some roses and some thorns make life lively.Different shades on the canvas of life make it attractive."मधु जी अब स्थाई रुप से लखनऊ के इन्दिरा नगर स्थित अपने आवास में रहती हैं और उनका मोबाइल नं0है 9336090275.
प्रसार भारती परिवार मधु जी के स्वस्थ और प्रसन्नचित्त जीवन की शुभकामनाएं करता है। 

ब्लाग रिपोर्ट- प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी,सेवा निवृत्त वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी,आकाशवाणी,लखनऊ; मोबाईल नं09839229128  

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