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आकाशवाणी वार्षिक पुरस्कार 2015 के अंतर्गत आकाशवाणी भोपाल को दो पुरस्कार

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आकाशवाणी वार्षिक पुरस्कार 2015 के अंतर्गत आकाशवाणी महानिदेशालय द्वारा विभिन्न कार्यक्रम वर्ग में प्रविष्टियां मांगी गईं थी जिन पर विगत 06 अक्तूबर, 2016 को आकाशवाणी महानिदेशालय में गठित एक तीन दिवसीय जूरी सेशन आयोजित किया गया जिसमें प्रविष्टियों पर अंतिम निर्णय हुआ तथा निर्णय के पश्चात् आकाशवाणी भोपाल के रेडियो डाॅक्यूमेंट्री (रेडियो रूपक वर्ग) केटेगरी के अंतर्गत, आकाशवाणी भोपाल के रेडियो वृत्त रूपक ‘‘आते रहना नानू-थंगू’’ तथा आकाशवाणी नागपुर के हिन्दी रेडियो रूपक ‘‘कौन हूं मैं’’ को संयुक्त रूप से इस वर्ग में द्वितीय पुरस्कार प्रदान किया गया है, जबकि बेस्ट साइंस प्रोग्राम (उत्तम विज्ञान कार्यक्रम वर्ग) केटेगरी के अंतर्गत आकाशवाणी भोपाल के हिन्दी कार्यक्रम ‘‘गीधगढ़’’ को विशेष पुरस्कार प्रदान किया गया है। उल्लेखनीय है कि, आते रहना नानू-थंगू भारतीय परम्पराओं से जल संकट समाधान विषय पर केन्द्रित रेडियो रूपक है

यह रेडियो रूपक इस सदी की सबसे बड़ी चुनौती जल-संकट पर केन्द्रित है जिसमें इस रूपक का शीर्षक ‘‘आते रहना नानू-थंगू’’ पूर्वोत्तर क्षेत्र के मणिपुर में स्थित ‘‘लोकतक सरोवर’’ में सदियों से आने वाले उन प्रवासी पक्षियों के प्रतिवर्ष इस सरोवर में आने से लिया गया है जिन्हें ‘‘नानू-थंगू’’ कहा जाता है। उस क्षेत्र के मैतेयी लोगों का यह विश्वास है कि, जब तक ‘‘नानू-थंगू’’ प्रवासी पक्षी इस सरोवर में आते रहेंगे यह सरोवर, जल से सदा परिपूर्ण रहेगा और यही कारण है कि, इस क्षेत्र के लोग सदियों से अपने लोकगीतों में गाते आए हैं कि जब तक ‘नानू-थंगू’ आते रहेंगे, लोकतक सरोवर जीवित रहेगा ।

इस रूपक में भारत की पुरातन अरण्य संस्कृति जो हमें जल संकट से उबरने का मार्ग दिखाती है के आधार पर यह बताने की कोशिश की गई है कि, हमारे लोक तथा जनजातीय जीवन में जल और सम्पूर्ण पर्यावरण में एक ऐसी गहन समझ के अनेकों उदाहरण मौजूद हैं जिनसे जल संकट का समाधान प्रकृति के बहुत समीप जाकर खोजा जा सकता है । लेकिन पिछले कुछ समय से लोकतक सरोवर में प्रवासी पक्षियों ‘‘नानू-थंगू’’ की संख्या लगातार घटने के पश्चात् जब उस जल का परीक्षण किया गया तो वह प्रदूषित पाया गया जो पक्षियों के लगातार घटने का मुख्य कारण है । इस तथ्य को भी इस रूपक में समाहित किया गया है । इस संबंध में प्रसिद्ध मानवशास्त्री.- एन. सकमाचा सिंह, का कहना है कि, मैतेयी लोग सदियों से अपने लोकगीतों में गाते आए हैं कि जब तक ‘नानू-थंगू’ आते रहेंगे, लोकतक सरोवर जीवित रहेगा। जबकि प्रख्यात पर्यावरणविद.- अनुपम मिश्र, कहते हैं कि, यह परम्पराएँ स्वयं-सिद्ध एवम् समय-सिद्ध हैं। उल्लेखनीय है कि रेडियो वृत्त रूपक ‘‘नानू-थंगू’’ के लेखक और प्रस्तुतकर्ता आकाशवाणी भोपाल के कार्यक्रम अधिकारी श्री राकेश ढौंड़ियाल हैं।

इस रेडियो रूपके के साथ-साथ बेस्ट साइंस प्रोग्राम (उत्तम विज्ञान कार्यक्रम वर्ग) केटेगरी के अंतर्गत आकाशवाणी भोपाल के हिन्दी कार्यक्रम ‘‘गीधगढ़’’ को विशेष पुरस्कार प्रदान किया गया है ।

यह विज्ञान कार्यक्रम देश में लगातार घट रही गिद्धों की संख्या तथा गिद्धों की प्रजाति के विलुप्तिकरण के खतरों व कारणों के पड़ताल पर केन्द्रित है जिसमें इन पक्षियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रयासरत् व्यक्तियों और संस्थाओं द्वार किए जा रहे प्रयासों का समावेश किया गया है । इसके साथ ही इस कार्यक्रम में पारसी समुदाय के अंतिम संस्कार की परम्परा में आने वाली बाधाओं पर प्रकाश डालते हुए त्रेतायुग में गिद्ध, जटायु और उनके छोटे भाई संपाति का उल्लेख रामचरित्र मानस में मिलता है, इस तथ्य को भी शामिल किया गया है । कार्यक्रम में इस समस्या के कारणों के मूल को जानने और इसके समाधान हेतु प्रसिद्व वैाज्ञानिक डाॅ. जमील अंसारी तथा श्री दिलशेर ख़ान से बात-चीत तथा गिद्ध संवर्धन केन्द्र भोपाल में इस विषय पर किए जा रहे शोध परक कार्यो को भी समाहित किया गया है । इस कार्यक्रम का शीर्षक भेापाल से 20 किलो मीटर दूर ‘‘गीधगढ़’’ ग्राम से प्रेरित है जहां कभी गिद्धों की बस्तियां हुआ करती थीं ऐसा माना जाता है।

इस विज्ञान कार्यक्रम के प्रस्तुतकर्ता आकाशवाणी भोपाल के कार्यक्रम अधिकारी श्री सचिन भागवत हैं, जबकि इस कार्यक्रम के लेखक आकाशवाणी भोपाल के पूर्व कार्यक्रम अधिकारी डाॅ. साकेत अग्निहोत्री हैं।

Source : Rajeev Shrivastava
Congratulations and heartiest best wishes from PB Parivar. Similar write-ups about other award winners can be sent on pbparivar@gmail.com for possible publication on Prasar Bharati Parivar Blog www.airddfamily.blogspot.in 

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