वो भोपाल वाले बचपन के दिन थे। कंधे पर बस्ता होता था और भाई-बहन हाथ पकड़कर लौटते थे। तब साथ में चलती थीं कुछ आवाज़ें। हर घर विविध-भारती बज रही होती। शायद 'मनचाहे गीत'चल रहा होता था। गाने की एक लाइन इस घर से सुनाई देती अगली लाइन अगले घर से। क़दम क़दम पर विविध भारती साथ होती और घर लौटते तो अपना रेडियो ट्यून हो जाता। तीन बजे लोक-संगीत तक चलता।
तब टीवी और सोशल/मोबाइल नेटवर्किंग ने हमारी दिनचर्या को अस्त व्यस्त नहीं किया था। रात नौ बजे हवामहल आता तो हमारे सोने का समय हो जाता। वो मुहल्लों में 'काग़ज़ की कश्ती और बारिश के पानी'वाले दिन थे। छिपन-छिपईया और गुल्ली डंडा या कैंची साइकिल वाले दिन। जब विविध भारती पर रविवार चित्रध्वनि होता। रेडियो पर फिल्म सुनने के दिन थे वो। बिनाका गीत माला तब सिबाका का रूप लेकर विविध भारती पर अवतरित होने लगी थी। वो दिन, रेडियो के उन उद्घोषकों को कॉपी करने के दिन। फिल्मों के प्रायोजित कार्यक्रम आते तो उत्कंठा बढ़ जाती थी, उन फिल्मों को देखने की।
वो दिन...जब हम विज्ञापनों और जिंगल को हम फिल्मी गानों की तरह गाते। 'याद आ गया वो गुज़रा जमाना/ महक भीनी भीनी और ज़ायका सुहाना'... शायद ब्रूक बॉन्ड रेड लेबल का रेडियो जिंगल था। तब भोपाल में 'संजय रोलिंग शटर'का विज्ञापन खूब अच्छा लगता था। जाने क्यों। तब विविध भारती पर दिल्ली से समाचार आते तो देवकीनंदन पांडे, रामानुज प्रसाद सिंह, अज़ीज़ हसन, बोरून हालदार वग़ैरह की आवाज़ें हमें नि:शब्द कर देती थीं। शायद तब जिज्जी शुभ्रा शर्मा ने भी समाचार पढ़ती रही होंगी। समाचारों का मतलब होता था शोरगुल बंद करके अच्छे बच्चों की तरह सुनना।
शायद इसके कुछ साल बाद के दिन थे, जब विविध-भारती के कार्यक्रमों के ज़रिए गीतकारों, संगीतकारों और गायकों से परिचय हुआ। जब विशेष जयमाला के ज़रिए उनकी आवाज़ें सुनने के संस्कार पड़े। शायद इन दिनों में ही हमने विविध भारती से तलफ्फुज़ और अदायगी सीखी। और यही वो दिन थे जब पिता ने बच्चों के कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए हमें आकाशवाणी भोपाल ले जाना शुरू किया। मकबूल हसन और पुष्पा जी की निगहबानी में वहां हमने बोलना शुरू किया।
हमारे बचपन का विविध भारती सिर्फ एक रेडियो चैनल नहीं था। वो परिवार का हिस्सा रहा। कभी दोस्त, कभी हमसफर, कभी गाइड या टीचर, तो कभी ग़मगुसार बना रहा। तब सोचा भी नहीं था कि जिन माईक्रोफ़ोन और जिन स्टूडियो से आपके बहुत चहेते और नामी उद्घोषकों ने अपनी बात कही, वहीं हमें से भी बोलने का मौक़ा मिलेगा। विविध भारती का हिस्सा बनकर जो प्यार मिला है, जो इज्जत आप सभी ने बख्शी है, आज हम बाक़ायदा झुककर उसका शुक्रिया अदा करते हैं।
अभी उस दिन निर्माता निर्देशक शूजीत सरकार ने कितनी बढिया बात कही थी, कि विविध भारती वो रेडियो चैनल है जिस पर देर तक रूका जा सकता है, जिसे सुकून से सुना जा सकता है। विविध-भारती अपने सफर के साठवें बरस में प्रवेश कर रही है। बहुत बहुत शुभकामनाएं।
बताइये आपकी जिंदगी में क्या मायने रखती है विविध भारती।
शुक्रिया जिंदगी। शुक्रिया विविध भारती।