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सपने देखना सिखाने वाले फादर गिल्सन - a beautiful memoir from Sh. Jawhar Sircar

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प्रेरणा... पढ़ानेके हुनर और विशेष देखभाल से नाकाम बच्चे को भी टॉपर में बदला जा सकता है......


मुझे आजभी याद है कि जब दसवीं कक्षा के 'ह्यूमेनिटीज'सेक्शन में नई क्लास में शामिल हुआ तो कितना घबराया हुआ था। नौवीं कक्षा पास करने के बाद मुझे 'साइंस'पढ़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया था। इसके पहले मैं 8वीं कक्षा में फेल हो चुका था और उन दिनों मुझे सारे लोग स्कूल के 'खराब लड़कों'में शूमार करते थे। ऐसा लड़का जो हमेशा किसी किसी से लड़ता रहता है और पढ़ाई में जिसकी बिल्कुल रुचि नहीं है। एेसे में नए विषय के साथ नई कक्षा।

मेरी इस नई क्लास में सबकुछ बड़ा अजीब-सा था: कक्षा का कमरा, वहां के बच्चे और यहां तक की पढ़ाए जाने वाले विषय भी मेरे लिए तो अनजाने ही थे। वहां फिजिक्स, केमेस्ट्री या मैथ्स की पढ़ाई नहीं होती थी, केवल हिस्ट्री, ज्यॉग्रफी अौर लिटरेटर जैसे मूर्खतापूर्ण (तब मुझे ऐसा ही लगता था) विषय पढ़ाए जाते थे। लेकिन इन सबसे अजीब तो मेरे शिक्षक थे, फादर पी.वाई. गिल्सन। उन्हें तब तक मैंने सिर्फ गलियारों में इधर-उधर गुजरते ही देखा था। मैं जब भी उन्हें देखता तो यह सोचकर हैरान होता कि यह इतना शांत, सौम्य बेल्जियन मिशनरी, जिसका एक खास तरह का फ्रांसीसी लहजा है, अपने लंबे सफेद पादरियों वाले कैसक गाउन में भारत की भीषण गर्मी से बच कैसे गया। पहले ही दिन फादर गिल्सन ने मुझे आगे आकर पहली बेंच पर बैठने को कहा। अब तो हद ही हो गई थी, क्योंकि सबसे आगे की बेंच तो 'अच्छे बच्चों'के लिए होती थी। मैं उस तरह का बच्चा तो कतई नहीं माना जाता था। मुझे आगे बुलाकर वे सीधे अपने लेसन पर गए। अपनी खास शैली से पढ़ाने लगे। उन्हें जरा भी ख्याल नहीं था कि मुझे शायद ही कुछ समझ में रहा था। मैंने ह्यूमेनिटीज के इन विषयों के बेसिक्स की कक्षा नौवीं में पढ़ाई नहीं की थी। फिर मुझे इतिहास पसंद भी नहीं था, जो मेरे ख्याल से बहुत उबाऊ विषय था। लेकिन बड़ी अजीब बात थी कि फादर विल्सन यह विषय इस तरह नहीं पढ़ाते थे, जैसे वह कोई राजाओं के कामकाज और युद्धों की तारीखों की लंबी, रसहीन, शुष्क सूची हो। मैं अनचाहे ही वे जो पढ़ा रहे थे, उसकी ओर आकर्षित हो गया, क्योंकि वे इतनी रोचक कहानियों का वर्णन क्या, चित्रण ही कर रहे थे।

उनका वर्णन इतना जीवंत था कि मैं तो मंत्र-मुग्ध होकर उन्हें सुनने लगा और जाने कब धीरे से किसी जादुई कालीन पर सवार होकर फैंटसी की दुनिया में पहुंच गया। जब कक्षा का समय खत्म हुआ तो मुझे खुद पर ही विश्वास नहीं हो रहा था कि मुझे वाकई इतिहास पढ़ने में मजा आया। फिर मैंने पाया कि फादर जब इंग्लिश लिटरेचर पढ़ाते तो उसमें भी मुझे बहुत आनंद आता, जबकि लिटरेचर से तो पहले मुझे नफरत थी। अभी तो आश्चर्य लोक के और भी दरवाजे खुलने थे। इस जादूगर की टोपी से और कहानियां निकलीं और जल्दी ही ऐसी हालत हो गई कि मैं उनकी कक्षाओं का बेसब्री से इंतजार करने लगा। फादर गिल्सन ने मेरा सबसे बड़ा रूपांतरण शायद यह किया कि उन्होंने मुझमें सिर्फ उनके विषयों के प्रति मेरे भीतर उत्सुकता, रुचि जगा दी बल्कि पढ़ाई के प्रति मुझे जिज्ञासु बना दिया। क्लास टीचर के रूप में वे अध्ययन संबंधी मेरे सारे मामलों के प्रभारी थे। कक्षा के दौरान और बाद में वे आमतौर पर मुझे एक्स्ट्रा लेसन हेतु उनसे मिलने के लिए प्रोत्साहित करते ताकि पूरे साल की पढ़ाई में जो छूट गया था, मैं उसकी भरपाई कर सकूं। वे जो मेरा खास ध्यान रख रहे थे उसका दुनिया के प्रति मेरे नज़रिये में सुकूनदायक असर पड़ा।

लेकिन मेरी सपनों की यह दुनिया पहले क्लास टेस्ट की कठोर वास्तविकता से बिखर गई, क्योंकि मुझे पक्का अहसास था कि मैं तो कक्षा की अंतिम पंक्ति में खड़ा रहने के लिए ही अभिशप्त हूं। पहला ही टेस्ट 'इंग्लिश एसे'का था और मुझे तो हमेशा ही शब्दों का अकाल सताता था। किंतु जब टेस्ट का परिणाम घोषित हुआ तो मैं स्तब्ध रह गया। कोई हल्के से धक्का देता तो मैं नीचे गिर जाता, ऐसी दशा थी : मैं कक्षा में चौथे स्थान पर आया था! मेरे पैरेंट्स की खुशी का तो ठिकाना नहीं रहा। मेरे दोस्तों ने मुझे पिंच किया, लेकिन किसी को इस बात का अहसास नहीं था कि इस सफलता से मेरा आत्म-विश्वास कितना बढ़ गया था। अगला 'आश्चर्य'तब आया जब मैं एरिथमैटिक्स में 'प्रथम'आया, जो इतना कठिन नहीं था, क्योंकि मैं विज्ान की पढ़ाई करके आया था। मैंने सपने देखना सीख लिया था। फिर इतिहास, भूगोल और अन्य विषयों के नतीजे आए, लेकिन अब प्रथम आने का यह जो नया रोमांच था उसे मैं रोक नहीं सकता था। एक छोटी सफलता के बाद दूसरी सफलता, बेशक उसके पीछे बहुत कठिन परिश्रम और संतों जैसे शिक्षक का सतत मार्गदर्शन होता था। कुछ महीनों बाद हमें पता चला कि फादर गिल्सन अब किसी दूसरे स्कूल में पढ़ाने जाने वाले हैं और एक-दो दिन बाद वे चुपचाप चले भी गए। मैं खूब रोया, क्योंकि और कोई इस तरह मुझे पूरी तरह नहीं बदल सकता था। मैं आज जो भी हूं, जहां भी हूं, यह उनका ही करिश्मा है। उनका आभार किन शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है, मुझे नहीं पता।

एक दशक बाद मैं पश्चिम बंगाल के बर्दवान जिले के आसनसोल दुर्गापुर का अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट नियुक्त हुआ। वहां मुझे एक दोस्त से यह सुनकर बहुत खुशी हुई कि फादर गिल्सन दुर्गापुर में सेंट जेवियर स्कूल के हैडमास्टर हैं। मैं सीधे उनसे मिलने गया। मैंने जैसे ही फादर के कमरे में प्रवेश किया एक परिचित खुशबू ने मेरा स्वागत किया। उन्होंने बहुत गर्मजोशी से मुझसे हाथ मिलाए। उन्होंने मुझे कहा, 'मुझे तुम पर गर्व है।'वे बिल्कुल वैसे ही थे, हां कुछ बूढ़े जरूर हुए थे। मैं अब मजिस्ट्रेट था, जो पूरी दृढ़ता के साथ विशाल भीड़ के सामने खड़ा हो सकता था, लेकिन उनके सामने मैं पूरी तरह बदल गया। आत्म-विश्वास की प्रतिमूर्ति से अब मैं ऐसा थरथराता, घबराया हुआ 'स्टूडेंट'हो गया था, जिसे बोलने के लिए शब्द नहीं मिल रहे थे।

इसके पहले कि मैं अपनी कृतज्ञता को उचित शब्दों में व्यक्त कर सकू, घंटी बज गई और फादर गिल्सन अपनी कुर्सी से उछलकर खड़े हो गए और कुछ हैरानी के स्वर में कहने लगे, 'ओ माय गॉड, अभी तो एक और कक्षा में जाना है। वहां छोटे-छोटे बच्चे इंतजार कर रहे हैं। नटखट बच्चे, जैसे तुम थे। मुझे जाना चाहिए। गॉड ब्लेस यू, माय सन। और तरक्की करो। पर अब मुझे जाना ही होगा।'उनके पास उस आभार के शब्द सुनने का वक्त नहीं था, जो हमेशा बने रहने वाला है। वह मेरी उनसे अंतिम मुलाकात थी।

जवाहर  सरकार प्रसारभारती के सीईओ 
facebook.com/sircar.j.
sircar.j@gmail.com

Source and Credit :- http://epaper.bhaskar.com/detail/?id=785133&boxid=92614746500&view=text&editioncode=194&pagedate=09/26/2016&pageno=10&map=map&ch=cph
Forwarded by :- Shri. Jainendra Nigam PB News Desk prasarbharati.newsdesk@gmail.com and Shri. Sachin Bhagwat.      sachinbhagwat69@gmail.com

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