कई बार रेडियो रात का लौटना सुखद बना देता है। सायमा की पुरानी जीन्स ढूँढते ढूँढते एक ऐसे स्टेशन पर ठहर गया जहाँ रिक्शा पर डाक्यू चल रही थी। जसलीन वोहरा की नफ़ीस और ठहरी हुई अंग्रेज़ी में रिक्शे की कहानी चली जा रही थी।चलती हुई कार में रिक्शा चलने लगता है।ऑल इंडिया रेडियो की यह डाक्यूमेंट्री इतनी अच्छी है कि इसे हर किसी को सुननी चाहिए। भरोसा दिलाती है कि जन माध्यम में क्वालिटी कार्यक्रम बन सकते हैं। मीडिया के प्राध्यापक विनीत कुमार को बताया तो कहा कि पब्लिक ब्राडकास्टिंग की भूमिका पूरी बहस से ही ग़ायब है जबकि वहाँ कितनी संभावना है।
रिक्शा जापानी शब्द से आया है।हाथ रिक्शा जापान में ही आया। जाधवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर की वृद्ध आवाज़ में रिक्शे की दास्तान ने रोमांचित कर दिया। कोलकाता में हाथ रिक्शा चीन से आए दस्तकार ले आए। कोलकाता से निकलकर कहानी शिमला आती है। शिमला के इतिहासकार भसीन साहब बताते हैं कि छोटा शिमला में एक पार्टी के दौरान एक अंग्रेज़ एक हाथ रिक्शेवाले को इतनी मारता है कि वो मर जाता है। सभी रिक्शेवाले मिलकर रायबहादुर मोहनलाल के पास जाते हैं। ब्रितानी पुलिस केस दर्ज नहीं करती है। रायबहादुर के दबाव में मुक़दमा चलता है और ब्रिटिश सेना के कैंटीन प्रमुख को जेल होती है।जहाँ वो ख़ुदकुशी कर लेता है। इतिहास को किस्से में बदलने का अच्छा फन दिखाया स्क्रिप्ट राइटर सरिता बरारा ने।प्रोड्यूसर कोई चटर्जी या बनर्जी थीं। उनका नाम नहीं नोट कर पाया। पता चलते ही सुधार कर दूँगा। उसके बाद कहानी दिल्ली आती है। मधु किश्वर का इंटरव्यू चलता है। उनकी संस्था मानुषी ने रिक्शेवाले पर काम किया है। मधु किश्वर बताती हैं कि ई रिक्शा पर्यावरण का मित्र नहीं है बल्कि इसमें इस्तमाल होने वाली बैटरी पर्यावरण को नुक़सान पहुँचा रही है। सेंट स्टीफेन्स अस्पताल के आमोद कुमार से बात होती है।रेडियो डाक्यू जानकारी से भरपूर है। एक कमी रह गई। इस मसले पर काम करने वाले राजेंद्र रवि की आवाज़ नहीं सुनाई दी। जबकि रिक्शा पर उन्होंने कई किताबें लिखी हैं। स्क्रिप्ट की एक कमी थी। सिर्फ एक। Drudgery का कई बार इस्तमाल हुआ है।बस यही खटका।जसलीन की आवाज़ अच्छी है। अंदाज़ भी। कोई नाटकीयता नहीं।
102.60 के साथ रिक्शा की यह कहानी याद रहेगी। इस डाक्यूमेंट्री ने मुझे बाँध लिया। मैं पार्किंग में पहुँच कर भी ख़त्म होने तक कार में बैठा सुनता रहा। ख़ास बात यह रही कि डाक्यू के बीच बीच में गाना नहीं चला। गाना चला लेकिन बैकग्राउंड में सिर्फ अहसास के लिए बजा। दो बीघा ज़मीन के संवाद,स्टेशन, संगीत और घंटी की ध्वनि का बेहद ख़ूबसूरती से इस्तमाल हुआ। इसकी एडिटिंग शानदार है। आमी जे रिस्कावाला…बिनती एमॉन जाबे…इस गाने को सुनते सुनते लगा कि कार से नहीं रिक्शे से लौट रहा हूँ । घर आकर भी यही गाना सुन रहा हूँ। आमी जे रिस्का कोबी…रिक्शा नहीं रिस्कावाला। गायक ने रिस्का ही गाया है।ऑल इंडिया रेडियो को बधाई।
श्री. रवीश कुमारSource and Credit :- http://naisadak.org/excellent-radio-docu-on-rickshaw/
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