आकाशवाणी और दूरदर्शन का महत्वपूर्ण इतिहास
जब से मनुष्य ने अपनी दुनिया को जाना है, तब से उसकी संघर्ष-यात्रा इस नारे से प्रेरित है कि “कर लो दुनिया मुटठी में”। विज्ञान और तकनीक के ऐताहासिक विकास के दौरान आविष्कारों की कहानी बड़ी मजेदार है। रेडियो और टेलिविजन विज्ञान के ऐसे चमत्कारों में से दो मुख्य चमत्कार हैं। जिन्होंने मनुष्य की व्यक्तिगत और सामूहिक प्रगति में विशेष योगदान दिया है।
आकाशवाणी
वैसे तो वर्ष 1820 से रेडियो के बारे खोजें शुरू हो गई थीं लेकिन रेडियो के खोज में पूर्ण रूप से सफलता इटली निवासी श्री गुलयेलमो मार्कोनी (Sh. Gugliemo Morconi) को वर्ष 1901 में मिली थी। वह पेशे से इलैक्ट्रिकल इंजीनियर थे। बीसवीं सदी को विज्ञानिक खोजों की सदी मानी जाती है। संसार में रेडियो का प्रसारण वर्ष 1901 में अटलांटिक महासागर के आर-पार शुरू हुआ था। भारत में रेडियो का प्रथम प्रसारण मुम्बई शहर से जून 1923 से एक प्राइवेट रेडियो क्लब, मुम्बई द्वारा शुरू किया गया था। इसलिए भारत में रेडियो के प्रसारण का आगाज़ 1923 से माना जाता है। फिर एक और दूसरा रेडियो प्रसारण नवम्बर 1923 से कलकत्ता रेडियो क्लब द्वारा शुरू किया गया । वर्ष 1924 से इंडियन ब्राडकास्टिंग नामक एक कंपनी की उत्पति हुई। वह दोनों रेडियो प्रसारण उस कंपनी के अधीन चले गए थे।
भारत में नियमित प्रसारण सेवा के उस विचार को सर्वप्रथम 1926 में भारत सरकार और “दि इंडियन ब्राडकास्टिंग कंपनी” के बीच हुए एक समझौते के रूप में मूर्तरूप दिया गया। इस समझौते के अधीन एक मुम्बई में तथा दूसरा कलकत्ता केंद्रों के निर्माण के लिए लाईसेंस दिये गये थे। तदानुसार, 23 जुलाई, 1927 को मुम्बई केंद्र का उद्घाटन किया गया। कुछ महीनों के बाद कलकत्ता केंद्र का उद्घाटन हुआ। भारत सरकार और “दि इंडियन ब्राडकास्टिंग कंपनी” के बीच हुए उस समझौते के तहत उन दोनों केंद्रों पर कार्य फरवरी 1930 तक चलता रहा। अप्रत्याशित रूप से लगभग तीन वर्ष बाद 01 मार्च, 1930 को कंपनी बंद होने के कारण वह समझौता टूट गया और रेडियो प्रसारण बंद हो गया। इस से ऐसा लगने लगा था कि भारत में प्रसारण का कार्य विफल हो गया जबकि अन्य देश बहुत अच्छी प्रगति कर रहे थे। लेकिन सरकार ने जनता की माँग को ध्यान में रखते हुए इंडियन ब्राडकास्टगिंग कंपनी की परिसंपत्तिया अधिग्रहण करके दोनों केंद्रों को 01 अप्रैल, 1930 से दो वर्षों की अवधि के लिए प्रयोगात्मक आधार पर स्वंय चलाने का निर्णय लिया। अंतिम रूप से भारत सरकार ने मई 1932 में अपने प्रबंध के अधीन इंडियन स्टेट ब्राडकास्टिंग सेवा को जारी रखने का निर्णय किया तथा उसे उद्योग और श्रम विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण में कर दिया। मार्च, 1935 में उद्योग और श्रम विभाग के अधीन कार्य करने के लिए प्रसारण नियंत्रक के अधीन एक स्वतंत्र विभाग का गठन किया गया। आकाशवाणी विभाग के प्रथम प्रसारण नियंत्रक (महानिदेशक) श्री ‘लियोनल फ़ीलडन’ (Lionel Fielden) को कार्यभार संभाला गया। जून, 1936 में ‘इंडियन स्टेट ब्राडकास्टिंग सेवा’ का नाम बदलकर ‘आकाशवाणी’ कर दिया गया। नवम्बर, 1937 में प्रसारण को संचार विभाग में स्थानान्तरित कर दिया गया। 23 फरवरी, 1946 से इस विभाग को ‘सूचना और कला’ विभाग के रूप में पुनर्गठन किया गया। 10 सितंबर, 1946 से विभाग का नाम बदलकर पुन: ‘सूचना और प्रसारण’ विभाग कर दिया। सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अधीन महानिदेशक, आकाशवाणी का विभागाध्यक्ष महानिदेशक है।
भारत में प्रसारण को एक राष्ट्रीय सेवा माना गया है। स्वतंत्रता के पश्चात आकाशवाणी ने काफी प्रगति की है। आज आकाशवाणी संसार का एक प्रमुख प्रसारण संगठन बन गया है। आकाशवाणी नेटवर्क में 406 ट्रांसमीटर सहित 231 प्रसारण केन्द हैं। जिनके माध्यम से देश के 91.85 प्रतिशत भू-भाग में 99.18 प्रतिशत लोगों तक आकाशवाणी के प्रसारण पहुँचते हैं। नैशनल चैनल 18 मई,1988 को प्रारंभ किया गया और दिल्ली से एफ॰ एम॰ चैनल पर 24 घंटे प्रसारण होता है। आकाशवाणी ने अब चौबीस घंटे इंटरनेट आधारित रेडियो सेवाएं भी देनी शुरू कर दी हैं ।
दूरदर्शन
संसार में दूरदर्शन के बारे कई साल से हो रही खोजों के बाद वर्ष 1926 में सफलता मिली थी। स्काटलैंड श्री जॉन लोगी बेयर्ड (Sh. John Logie Baird) ने टेलिविज़न का आविष्कार किया था। सन 1959 में जब आकाशवाणी प्रगति की और बढ़ रहा था। तब दिल्ली में सर्वप्रथम 15 सितंबर 1959 में टेलिक्लब्बों में देखने के लिए प्रयोगत्मक सेवा के रूप में दूरदर्शन का उद्घाटन किया गया था। 15 सितंबर, 1965 से दैनिक सामन्य सेवा प्रारंभ की गई। प्रारंभ में दूरदर्शन ने आकाशवाणी के एक भाग के रूप में कार्य करना शुरू किया। आकाशवाणी और दूरदर्शन का पहले एक ही निदेशालय ‘आकाशवाणी निदेशालय’ था। लेकिन दिनांक 01.04.1976 से दूरदर्शन के अलग निदेशालय की स्थापना की गयी। अलग-अलग महानिदेशालय के बावजूद अभी भी दोनों विभागों के कई संयुकत कार्यों की देखभाल आकाशवाणी निदेशालय के पास हैं। दोनों विभागों के कई सामूहिक काम कर्मचारियों की वरियता सूची (seniority list) एक ही है। दोनों विभागों के तबादला और पदोन्नति पर कर्मचारियों को एक दूसरे विभाग में भेजने का प्रावधान अभी भी आकाशवाणी निदेशालय के पास है। वर्ष 1977 में दूरदर्शन का प्रसारण भारत के दूसरे राज्यों में शुरू होने लगा था। वर्ष 1982 में भारत की राजधानी दिल्ली में एशियन खेलें आयोजित होने और टेलीविज़न पर रंगीन कार्यक्रम शुरू होने से दूरदर्शन की लोकप्रियता बढ़ने लगी। जल्दी ही दूरदर्शन का प्रसारण तेज़ी से बढ़ने लगा था। दूरदर्शन की बढ़ती लोकप्रियता को देखने से यह लगने लगा था कि आकाशवाणी का प्रसारण पीछे रह जाएगा और इसकी लोकप्रियता ख़त्म हो जाएगी। लेकिन ऐसा न हुआ क्योंकि रेडियो सैट सस्ते थे और आम लोगों की पहुँच में होने के कारण रेडियो प्रसारण पहले की तरह चलता रहा। जब कि टी॰ वी॰ सैट महंगे होने के कारण आम जनता की पहुँच से बाहर थे। दूसरा आकाशवाणी के प्रयत्नों और आधुनिकीकरण के कारण बढ़िया प्रसारण देकर अपनी लोकप्रियता बनाए रखी। उधर दूरदर्शन ने भी अपनी लोकप्रियता को बरकरार रखने के लिए पुर-ज़ोर कार्य किया। विभिन्न प्रकार के नए-नए दूरदर्शन चैनल व अन्तर्राष्ट्रीय चैनल चलने से वह अपनी लोकप्रियता बनाए हुये हैं। देश की 87% से अधिक लोग 1042 ट्रांसमीटर की मदद से दूरदर्शन के कार्यक्रम देख रही है। दूरदर्शन जो किसी समय आकाशवाणी का हिस्सा रहा था, वह अलग विभाग बनकर आकाशवाणी की तरह वह भी संसार का एक प्रमुख प्रसारण संगठन बन गया है। रेडियो और टेलिविज़न निसन्देह एक दूसरे के पूरक बन गए हैं।
आकाशवाणी और दूरदर्शन को प्रसार भारती के अधीन सौंपना
भारत सरकार द्वारा 12-05-1990 को प्रसार भारती (भारतीय प्रसारण निगम ) अधिनियम बनाया गया। इस अधिनियम के पास होने पर यह दोनों विभाग जो कि पहले सूचना व प्रसारण मंत्रालय के तहत मीडिया इकाइयों के रूप में काम कर रहे थे वह फिर इस अधिनियम के तहत प्रसार भारती के अंतर्गत हो गए। भारत सरकार द्वारा फिर समय-समय पर इस अधीनियम पर संशोघन किए गए। अधिनियम की संशोघन के तहत दोनों विभागों के सभी कर्मचारियों को सरकारी कर्मचारी का दर्ज़ा वैसे ही रखते हुये उनको प्रसार भारती को प्रतिनियुकित पर दीमड (Deemed on deputation) पर स्थानांतरित कर दिये गए। लेकिन दोनों विभागों का कार्यभार प्रसार भारती के अधीन ही रहा। हालांकि अभी भी पूरा नियंत्रक केंद्र सरकार के पास ही है। संशोधन में यह दर्शाया गया की 05.10.2007 के बाद भर्ती होने वाले कर्मचारियों को सरकारी कर्मचारी के वर्ग में न रखते हुए वह प्रसार भारती के कर्मचारी होंगे।
विज्ञान के यह चमत्कार आकाशवाणी और दूरदर्शन न केवल राष्ट्रीयता में भावातमक एकता ही पैदा करते हैं, बलिके अंत्र-राष्ट्रीय एकता पैदा करते में भी यह विशेष योगदान पा रहे हैं। आकाशवाणी और दूरदरर्शन द्वारा संचालित लोक प्रसारण के घटक हैं। पूरे देश में आज भी इन दो सेवाओं की अपनी एक अलग पहचान है। जहाँ कोई अन्य मनोरंजन और सूचना के साधन न हों वहाँ ये दो सेवाएं (AIR & TV) महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाती हैं।
आकाशवाणी और दूरदर्शन की कार्य-प्रणाली समय-समय पर विभिन्न पृस्थितियो से गुजरने का इतिहास बहुत ही विचित्र और महत्वपूर्ण रहा है। यह दोनों विभाग सप्राण संभरण संगठन (living organism) रहे हैं। नवीन्तम और मुकाबले के इस युग के दौर में इनको और नए तौर-तरीकों को अपनाना पड़ेगा क्योंकि समाज कि जिन आवश्यकताओं को वह पूरी करते हैं वे प्रतिदिन बदलती रहती हैं। बदलती हूई नई मांगों को पूरा करने के लिए इन संगठनों को निरंतर अपने आपको बदलते रहना होगा। ताकि प्रसारणों को और बढ़िया तरीकों से प्रस्तुत करके अपने चिन्ह ‘बहुजन हिताय और बहुजन सुखाय’ के लक्ष्य को पूरा करते हुए भारत का लोक प्रसारक बने रहें।